Monday, November 12, 2018

ऊंट उत्सव के बहाने पुलिस महकमे की बात (9 जनवरी, 2012)

पुलिस महकमे में सुधार की जरूरत और मांग पिछले कुछ समय से महसूस की जा रही है। जिसमें सबसे जरूरी है महकमे में राजनैतिक हस्तक्षेप को कम करना दूसरा उनकी दैनंदिन सेवा के घंटे निश्चित होना और तीसरा है साप्ताहिक अवकाश। इनके बाद जिस कार्यक्रम की महती जरूरत होगी वह उनके लिए ऐसी रिफ्रेशर कक्षाएं लगाना जिनके माध्यम से वे न केवल संवेदनशील बनें बल्कि ऐसी कक्षाओं में विभिन्न कर्तव्यों की समझ बनाने वाले पाठ भी पढ़ाये जाने चाहिए।
बीकानेर ट्रैफिक पुलिस के सन्दर्भ में पिछले दिनों खबरें थीं कि वह लगभग निष्क्रिय है और चौराहों और तिराहों पर इस तरह खड़ी रहती हैं, मानों उसकी इतनी ही जिम्मेदारी हो कि वहां किसी तरह की बदमजगी ना हो या कि उन्हें ट्रैफिक पॉइंट पर खड़े होने में शर्म आती है। ऐसा होना क्या अपने आप शुरू हो गया? आज से बीस-पचीस वर्ष पहले तक इसी शहर में देखा जाता था कि ट्रैफिक पॉइंट पर सिपाही पूरे समय खड़े रहते थे और यदि उसे विश्राम या पानी-पेशाब के लिए भी जाना होता तो वह किसी अन्य साथी को पॉइंट पर खड़ा करके ही  पॉइंट छोड़ता। धीरे-धीरे ऐसा होना शुरू हुआ--जो मोबाइल आने के बाद और भी ज्यादा होने लगा--कहा जाता है कि शहर के राजनेता जिनमें शहर अध्यक्ष, विधायक और पूर्व विधायक, यहां तक कि पत्रकार भी शामिल हैं ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों की सिफारिशें करके छोड़ने का निवेदन--यहां तक कि आदेश तक देने लगे हैं। इस तरह से जब ज्यादा होने लगा तो ट्रैफिक पुलिस में भी यह धारणा पैठने लगी कि वे क्यों उलझाड़ में पड़ें, कोई ना कोई सिफारिश आ जाएगी। यह भी होने लगा कि कई मनचलों ने तो ट्रैफिक नियम तोड़ने को अपने रुतबे का जरिया भी बना लिया। ऐेसे ही उदाहरण पुलिस के अन्य विभागों के भी दिये जा सकते हैं। ट्रैफिक पुलिस या पुलिस महकमे को उसकी ड्यूटी से बरी करने को यह सब नहीं लिखा जा रहा--यह सब लिखने के मानी कारणों की पड़ताल भर है। कोई-सा भी कारण हो पुलिस पर कर्तव्यच्युत होने का आरोप तो बना ही रहेगा।
अभी कल ही की बात है करणीसिंह स्टेडियम में ऊंट उत्सव के कार्यक्रमों में दोपहर बाद थोड़ी अव्यवस्था हुई तो पुलिस को लाठियां बजानी पड़ी। प्रशासन को नागवार गुजरा होगा और पुलिस को ऐसा ना करने की हिदायत दी होगी तभी शाम छह बजे शुरू होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में अव्यवस्था का बोलबाला था और पुुलिस मात्र तमाशबीन की भूमिका में ही रही। स्टेडियम के बीच में मुख्य पेवेलियन के मुखातिब मंच था, वहीं कुर्सियां लगाकर दर्शक दीर्घा बनाई हुई थी। मुख्य पेवेलियन के ठीक आगे की कुर्सियों पर बैठे दर्शक काफी देर तक वहीं बैठे रहे लेकिन इर्द-गिर्द की कुर्सियों और अन्य पेवेलियन पर बैठे दर्शक, मंच के ठीक आगे आकर कुछ खड़े और कुछ बैठ गये। इससे हुआ यह कि मुख्य पेवेलियन में और उसके आगे बैठे दर्शक जिनमें विदेशी भी थे, देखने में असुविधा महसूस करने लगे। पुलिस से व्यवस्था बनाने को कहा तो शायद दोपहर बाद की घटना से मिले सबक के चलते अनसुना कर दिया। थोड़ी देर में कुर्सियों पर बैठे दर्शक भी खड़े हो गये तो मुख्य पेवेलियन में बैठे पुलिस अधिकारियों को भी कार्यक्रम देखने में असुविधा होने लगी। तब बजाय मंच के सामने खड़े लोगों को बिठाने के पुलिस वाले विशिष्ट दीर्घा में खड़े दर्शकों को हटाने की कोशिश करने लगे। इस पर किसी ने विरोध जताया तो शायद कनिष्ठ अधिकारियों को अच्छा नहीं लगा, वे भी आ गये। जब उनसे कहा कि आगे वालों को क्यों नहीं बिठाया जा रहा है, इस पर शायद उनके कुछ समझ में आया और तब जाकर पुलिस वाले आगे वालों को बिठाने लगे। यहां इस सबके उल्लेख का मकसद इतना ही है कि इस अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन में कुछ न्यूनतम व्यवस्थाओं की जरूरत न आयोजकों ने महसूस की और ना ही पुलिस महकमे ने। ऊंट उत्सव के आयोजकों पर कल बात करेंगे।
-- दीपचंद सांखला
09 जनवरी, 2012

No comments: