Monday, September 30, 2013

गोपाल गहलोत की कवायद

आजादी बाद की बीकानेर शहर की राजनीति में दलित, अल्पसंख्यक और अन्य पिछड़ा वर्ग के किसी नेता में यह भरोसा नहीं देखा गया कि वे एक सीरियस केण्डीडेट हो सकते हैं। अहमद बक्स सिन्धी और महबूब अली की उम्मीदवारी को अपवाद मान सकते हैं। पिछले दस वर्षों में अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले भाजपा नेता गोपाल गहलोत ने ना केवल भरोसा दिखाया बल्कि महापौरी की सामान्य वर्ग की दावेदारी की बारी में भाजपा से उम्मीदवारी भी हासिल कर ली। इस चुनाव में हार जीत के कारणों का विश्लेषण करना फिलहाल जरूरी नहीं, पर गोपाल गहलोत ने अपने को पहला गैर उच्च जातीय वर्ग का सशक्त उम्मीदवार साबित किया है।
पिछले विधानसभा चुनाव के बाद गोपाल गहलोत को लगने लगा था कि बीकानेर शहर के विधानसभा क्षेत्रों की चुनावी राजनीति में उनके लिएस्पेशनहीं है और वे इसी सोच के साथ कुण्ठित भी होते गये। अपनी इन कुण्ठाओं की सार्वजनिक अभिव्यक्ति को ना रोक पाना उनकी बड़ी असफलता माना जा सकता है, जिसके चलते उनकी लोकछवि का क्षरण भी हुआ। गोपाल गहलोत अपने बूते भाजपा की प्रदेश कार्य समिति के सदस्य हैं, बावजूद इसके उन्हें वह मुकाम हासिल नहीं हुआ जिसके योग्य वे अपने को मानते हैं।
इसी असन्तोष की पहली अभिव्यक्ति 2 दिसम्बर, 2011 की वह बैठक थी जिसमें उन्होंने पूर्व भाजपाई गोविन्द मेघवाल और पूर्व वाम और कांग्रेसी मुहम्मद मुश्ताक भाटी के साथ मिलकर तय किया कि 6 दिसम्बर से वे दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के लिए मिल कर काम करेंगे। इस बैठक के दूसरे दिनविनायकने अपने सम्पादकीय में इस बैठक पर जो प्रतिक्रिया दी उसके अंश आज भी प्रासंगिक है--
दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बात करें तो यह कॉम्बो बहुत महत्त्वपूर्ण हो सकता है। जिले की सात में से तीन--लूणकरनसर, श्रीडूंगरगढ़ और नोखा के विधानसभा क्षेत्रों को छोड़ दें तो बाकी की चार विधानसभा सीटों बीकानेर पूर्व, बीकानेर पश्चिम, कोलायत और खाजूवाला के समीकरणों को गड़बड़ाने का माद्दा यह कॉम्बो रखता है। केवल गड़बड़ाने का ही नहीं समीकरणों को बदलने का काम भी यह तीनों कर सकते हैं। बशर्ते यह तीनों ही अपनी-अपनी छवियों को एक समयबद्ध योजना के तहत ठीक-ठाक करवाने की ठान लें तो।
इन तीनों ने कुछ तो अपनी करतूतों से और कुछ इन तीनों के विरोधियों ने बहुत ही सफाई से इनकी छवियों को लगातार धूमिल किया है। वो भी तब जब आज की राजनीति में सर्फऐक्सेलऔरटाइडसे धुली कमीज पहने कम ही नेता मिलते हैं। लगभग सभी की कमीज पर कोई कोई दाग है, जिन्हें धोना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि किसी के यह दाग अनैतिक या आर्थिक है और किसी के दबंगई के। क्योंकि हमारे यहां अनैतिक और आर्थिक दागों को नजरअंदाज करने का चलन है लेकिन दबंगई के दागों को नजरअंदाज करने का चलन फिलहाल नहीं है। विनायक यहां यह स्पष्ट करता है कि इस तरह की दागी राजनीति का वह कतई समर्थक नहीं है। लेकिन जिस परिदृश्य और क्षेत्र की बात करेंगे तब जो कुछ भी और जैसा भी वहां है उन्हीं सन्दर्भों में ही बातचीत हो सकती है।
30 नवंबर के विनायक के संपादकीय के अंत में जातीय जनगणना के परिणामों के हवाले से जिक्र किया था। उसी जातीय जनगणना के संभावित आंकड़ों की रोशनी में बात करें और कोई बड़ा राजनैतिक दल इस कॉम्बो को मान्यता दे दे तो कोलायत, खाजूवाला, बीकानेर, पूर्व और पश्चिम इन चारों ही विधानसभा क्षेत्रों में कइयों के जमे जमाए ठाठे बिखर सकते हैं।
यह बात हवा में इसलिए नहीं है कि उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों में इसी तरह की सोशल इंजीनियरिंग के चलते मायावती ने लगभग चामत्कारिक पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना ली थी।
विनायक, 3 दिसम्बर 2011
उक्त उल्लेखित घोषणा के अनुसार दलित, पिछड़ा, अल्प संख्यक महासभा का गठन किया गया और 6 दिसम्बर, 2011 को सम्मेलन आयोजित कर इसकी घोषणा भी कर दी। सम्मेलन में कई भाजपाई और कांग्रेसी भी शामिल हुए लेकिन सभी सहमें और ठिठके से देखे गये, ठीक गोपाल गहलोत की तरह। जबकि महासभा को पूरी तरह गैर राजनीतिक घोषित किया गया था और जो उद्देश्य गिनाए गये वे सभी गैर राजनीतिक ही थे। इस सम्मेलन के दूसरे दिन विनायक ने अपने सम्पादकीय में जो विश्लेषण किया उसे अर्थ भी पाठकों को पुनः पढ़ लेना चाहिए।
विभिन्न राजनैतिक पार्टियों से नाउम्मीद हुए नेताओं में से कुछ खुलेआम और कुछ ने ठिठकते हुए कल दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक महासभा के गठन के साथ ही अपनी खुदमुख्त्यारी की घोषणा कर दी है। इनमें प्रमुख हैं गोविन्द मेघवाल और गोपाल गहलोत। गोविन्द मेघवाल तो पहले से भाजपा से बाहर हैं, इसलिए उन्होंने खुलकर अपना एजेन्डा जाहिर कर दिया। गोपाल गहलोत अभी भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं। पार्टी ने पहले भी एक से अधिक बार केवल उनमें भरोसा जताया बल्कि मौके भी दिये हैं। वे शहर भाजपा के अध्यक्ष रहे हैं, विधानसभा का टिकट भी उन्हें दिया गया और महापौर का भी। शायद इसीलिए कल वे ठिठके सहमे रहे। यह भी हो सकता है गोपाल गहलोत इस तरह से दबाव बना कर पार्टी से कोई पुख्ता आश्वासन चाहते हों। लेकिन इसकी संभावना कम इसलिए लग रही है कि गहलोत कोलायत से चुनाव लड़ना नहीं चाहेंगे, बीकानेर पूर्व से सिद्धीकुमारी की दावेदारी पुख्ता है। बीकानेर पश्चिम में कांग्रेस हो या भाजपा किसी गैर पुष्करणा को टिकट देने का साहस जुटा नहीं पायेगी। शायद यही सब सोच कर और पार्टी ने पूर्व में जताये भरोसे के दबाव में ही गोपाल गहलोत ऊहा-पोह में हैं। गोविन्द मेघवाल ने गोपाल गहलोत की इसी ऊहापोह को भांप लिया होगा तभी उन्हें नवगठित महासभा का केवल अध्यक्ष मनोनीत कर दिया बल्कि कार्यालय भी गहलोत के ही हीरालाल मॉल में खोलने की घोषणा कर दी!
विनायक, 7 दिसम्बर 2011
6 दिसम्बर 2011 के इस सम्मेलन में यह घोषणा की गई थी कि 23 जनवरी, 2012 को दलितों, अल्प संख्यकों और अन्य पिछड़ों की महापंचायत बुलाएंगे, किन्हीं कारणों से शायद यह महापंचायत सिरे नहीं चढ़ सकी। लेकिन 21 फरवरी, 2012 को महासभा के बैनर तले शहर के विभिन्न क्षेत्रों से वाहनों पर सवार कुछ जत्थे कलक्ट्री पहुंचे और सरकार को कोसने के बहाने शक्ति प्रदर्शन किया। इसके बाद उक्त महासभा ठण्डे बस्ते में चलती चली गई। गोविन्द मेघवाल कांग्रेस की ओर मुखातिब हो लिए तो इस दौरान गोपाल गहलोत लगभग गुमनामी में रहे। मोहम्मद मुश्ताक भाटी ने खोने को अपने पास कुछ रहने ही नहीं दिया तो गोविन्द मेघवाल हो सकता है कुछ ना कुछ हासिल कर ही लेंगे पर पिछले दो वर्षों में गोपाल गहलोत का ऊहा-पोह में रहना उनके लिए भारी लग रहा है, वे चाहते तो अपनी छवि बदल कर और इस अरसे में सक्रीय रह कर अन्य पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के सशक्त नेता बन सकते थे, समय उन्होंने खो दिया। अब उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग के नाम पर जो कवायद शुरू की वह शुद्ध रूप से टिकट के लिए अपनी पार्टी पर दबाव बनाने की कवायद भर है, इसका असर और हासिल कुछ हो पायेगा कहना मुश्किल है, और ऐसा ही हुआ तो गोपाल गहलोत को अपने को सम्हालना जरूरी है अन्यथा कुण्ठाओं का प्रदर्शन किया तो हो सकता है व्यावहारिक राजनीति से वह बाहर हो जाएंगे, और सबक लेकर योजनाबद्ध तरीके से सक्रिय होंगे तो 2013 नहीं तो बाद के चुनावों में जरूर कुछ सार्थक भूमिका हासिल कर सकेंगे और भाजपा यदि उन्हें झुंझुनूं जिले में कोई चुनावी अवसर देती है तो उसे तत्काल लपकना उनके राजनीतिक हित में होगा।

30 सितम्बर, 2013