Thursday, August 23, 2018

स्ट्रीट वेन्डर्स एक्ट-2014 और थड़ी-गाड़ेवालों के हक-हकूक

पिछले सप्ताह मीडिया में फोटो सहित सुर्खियां थीं कि जूनागढ़ के सामने लगने वाले खान-पान के संध्या बाजार के गाड़ों को यातायात पुलिस ने अपने थाने में लाकर खड़ा कर लिया। जैसा कि सुनते आ रहे हैंशहर की सड़कों पर लगने वाले प्रत्येक गाड़े का हफ्ता या मंथली तय है, उसको उगहाने और पहुंचाने वाले भी तय हैं। बावजूद इसके बिना इसका खयाल रखे कि खान-पान की ये वस्तुएं दूसरे दिन खराब हो जाएंगी, दूसरे तरीके से कहें तो इन दिहाडिय़ों की एक दिन की ना केवल मजदूरी मार दी बल्कि सामान का नुकसान जो करवाया वो अलग।

चूंकि इन थड़ी-गाड़े वालों का कोई संगठन नहीं है, इसलिए ये दुगुनी-तिगुनी मार के शिकार हो जाते हैं, वह भी उगाही देने के बावजूद। अन्यथा ठीक इनके समानान्तर ऑटो रिक्शा वालों को देख लें-नाबालिग चलाते हैं, बिना लाइसेंस वाले चलाते हैं, परिवहन विभाग के पूरे कागजों के बिना चलती है, और तो और बिना स्टैण्ड के खड़े रहते हैं और बिना साइड के चलते हैं, चूंकि संगठित हैं। इसलिए पुलिस वालों को भाव नहीं देते और होमगार्ड से आंख दिखाकर बात करते हैं।
थड़ी-गाड़े वालों की दुर्दशा केवल बीकानेर में ही हो ऐसी बात नहीं, कमोबेश पूरे देश में इनकी और हाथरिक्शा वालों की गत यही है। शायद इसीलिए जाते-जाते ही सही संप्रग-2 की मनमोहन सरकार ने इन थड़ी गाड़े वालों के हित में मार्च 2014 में 'द स्ट्रीट वेन्डर्स' (प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलीहुड एण्ड रेगुलेशन ऑफ स्ट्रीट वेंडिंग) एक्ट-2014 पारित कर दिया। लेकिन जिन स्थानीय निकायों को इसे लागू करना है वे आज भी उसे अछूत मानती हैं।  मनमोहन सरकार बदनाम भी खूब हुई लेकिन आरटीआई, मनरेगा और स्ट्रीट वेन्डर्स एक्ट जैसे दमित पीडि़त हित के कई कानून वह पास करवा गई। बीकानेर के सन्दर्भ से बात करें तो इस 'स्ट्रीट वेन्डर्स एक्ट 2014' को लागू करने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। चार वर्ष बीत गये लेकिन सर्वे जैसा प्रथम चरण का कार्य भी उसने पूरा नहीं किया है। वेन्डर्स जोन और नॉन वेन्डर्स जोन इस सर्वे से ही तय होने हैं और निगम को एक 'टाउन वेंडिंग कमेटीÓ भी गठित करनी होती है। जो सर्वे के परिणामों के आधार पर वेंडिंग जोन के अनुसार पहले से ही थड़ी-गाड़ा लगाने वालों के लिए नई-पुरानी जगह तय करेगी। इसका मतलब यह नहीं कि इन्हें ऐसी जगह भेज दिया जाए कि जहां कोई ग्राहक ही नहीं पहुंचे। ये वेंडिंग जोन उन चौड़ी सड़कों पर भी बन सकते हैं जहां इनके खड़े होकर आजीविका पालने से यातायात में कोई बाधा ना हो। बाकायदा इनका पंजीकरण होगा और निश्चित अवधि में स्थानविशेष का निगम को भुगतान भी करनाइतना ही नहीं, इस एक्ट के अध्याय 2 के सेक्शन 3 के बिन्दु तीन में स्पष्ट लिखा गया है कि बिना सर्वे और बिना सर्टिफिकेट जारी किये जमे-जमाए इन वेन्डर्स को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही स्थान बदलने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इस तरह यातायात पुलिस की पिछले सप्ताह की कार्रवाई गैरकानूनी कही जा सकती है।
इस एक्ट के अनुसार देखें तो जूनागढ़ के सामने लगने वाला खान-पान का संध्या बाजार वेंडिंग जोन के हिसाब से सही है, ठीक इसी तरह पब्लिक पार्क में भी एक वेंडिंग जोन विकसित किया जा सकता है। जबकि पिछले दिनों सुना यह भी था कि पब्लिक पार्क में लगने वाले ठेले-गाड़ों को निकाल बाहर किया जाएगा। क्यों भाई! कोई धंधा करके कमा रहा है, आपको क्या तकलीफ है? क्या आप चाहते हैं कि ये लोग उजड़ के चेन स्नेचिंग, उठाईगीर, ठगी और चोरी-चकारी करें। स्थानीय निकाय-प्रशासन की जिम्मेदारी तो यह है कि वे खान-पान का काम करने वालों की निगरानी रखें कि वे स्वच्छता और शुद्धता के मानकों पर खरे हैं या नहीं-और अपने ग्राहकों के साथ किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी तो नहीं कर रहे हैं।
कुछ चन्द स्थानों का उल्लेख हाल ही में मिली नकारात्मक सुर्खियों के चलते कर दिया। जरूरत निगम क्षेत्र के सभी हिस्सों में रोटी-रोजी कमाने वाले ऐसे थड़ी-गाड़ेवालों की व्यवस्था एक्ट के अनुसार कर उन्हें सम्मान के साथ रोटी-रोजी कमाने में सहयोग करने की है। मीडिया भी इस तरह के मामलों में ना केवल संवेदनहीन दिखाई देता है बल्कि बहुधा अपनी समझ की कमी भी जाहिर करता है। इस तरह के काम-धंधों से आजीविका कमाने वालों को लेकर खबरें लगाते हुवे मीडिया या तो यह कहता है कि ये सौंदर्य में बाधा है। या फिर उन्हें यातायात में बाधा बता कर उखाड़ फेंकने की पैरवी करता है, जबकि होना यह चाहिए कि थड़ी-गाड़े वालों की रोटी-रोजी और सौंदर्य-यातायात के बीच संतुलन रखते हुए उन्हें खबरें लगानी चाहिए।
देश में रोजगार के अवसर लगातार घट रहे हैं। सरकारी नौकरियों में लगातार कटौती हो रही है, इन परिस्थितियों में कोई इज्जत के साथ अपना और अपने परिवार का पेट पालना चाहता है-उसके लिए बजाय अनुकूलताएं बनाने के ये शासन-प्रशासन मय पुलिस जब चाहे ना केवल उन्हें हड़काने-बेइज्जत करने की कार्रवाई करते हैं बल्कि उन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचाने से भी बाज नहीं आते।
शहर के प्रथम नागरिक होने के नाते महापौर को इसे अपनी महती जिम्मेदारी मानना चाहिए और इस बात की वे पुख्ता व्यवस्था करें कि स्ट्रीट वेन्डर्स एक्ट-2014 बीकानेर में समयबद्धता के साथ लागू हो। संगठित, समर्थ और दबंगों से संबंधित कामों में कुछ देरी भी हो तो उनके कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन स्ट्रीट वेन्डर्स एक्ट-2014 से लाभान्वित होने वाले लोगों को एक्ट का लाभ प्राथमिकता से मिलना चाहिए, जिसके कि वे हकदार हैं।
दीपचन्द सांखला
23 अगस्त, 2018

Thursday, August 16, 2018

विधानसभा चुनाव, बीकानेर की सात सीटें और कांग्रेस : एक पड़ताल


यह कहने की वैसे तो जरूरत नहीं कि जो बात आज कही जा रही है, वह आज के माहौल और सन्दर्भों के आधार पर ही कही है। इसलिए इसे आज के सन्दर्भ में ही लेना चाहिए। बीकानेर जिले की सात सीटों पर भाजपा के सन्दर्भ से चर्चा कर चुके हैं, इस बार कांग्रेस के सन्दर्भ से कर लेते हैं।
बीकानेर पूर्व से बात शुरू इसलिए करना चाह रहे हैं कि जिले की सात सीटों में यही एक सीट है जो कांग्रेस के लिए इस बार भी ना केवल चुनौतीपूर्ण है बल्कि भाजपा यहां से सिद्धिकुमारी को ही मैदान में उतारती है तो जिले की एकमात्र यही सीट भाजपा की पक्कम-पक्का कही जा सकती है। ऐसा क्यों? उसके कारणों की पूर्व में चर्चा कर चुके हैं। बात अलग तब हो सकती है जब खुद सिद्धिकुमारी टिकट लेने से इनकार कर दे या भाजपा अपने प्रतिकूल ऐसा निर्णय लेने का दुस्साहस कर ले। बीकानेर पूर्व के लिए फिलहाल कांग्रेस के पास ऐसा कोई नाम नहीं जो इन अनुकूल चुनावों में भी सीट निकाल सके। हालांकि पिछला चुनाव हार चुके गोपाल गहलोत क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं लेकिन वे सिद्धिकुमारी के होते सीट निकाल ले जाएंगे, कहना मुश्किल है।
बात श्रीडूँगरगढ़ की करने से पूर्व इसे खोल लेते हैं कि शेष छहों सीटों पर कांग्रेस को अपने पूर्व के उम्मीदवारों को बदलने का विचार कम से कम इस बार तो नहीं करना चाहिएउसके उम्मीदवार चाहे पिछला एक चुनाव हारे हों या दो, इसलिए नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के न चाहने के बावजूद श्रीडूँगरगढ़ की उम्मीदवारी मंगलाराम को ही दी जानी चाहिए। चूंकि रामेश्वर डूडी नेता प्रतिपक्ष के तमगे के बावजूद नोखा में खुद बीड़ में रहेंगे, ऐसे में अपनी को बचाने के अलावा अन्यत्र कुछ करने की गुंजाइश ही उनके पास नहीं रहेगी, चाहे वो जिले की कांग्रेस राजनीति में प्रतिद्वंद्वी वीरेन्द्र बेनीवाल की लूनकरणसर की सीट हो या मंगलाराम की श्रीडँूगरगढ़। यह सब बताना इसलिए जरूरी है कि हार का झफीड़ खाए जिले के पांचों कांग्रेसी उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में जैसे-तैसे भी लगे रहे हैं।
कांग्रेस के लिए जो दूसरी सीट भारी पड़ सकती है, वह नोखा की है। नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी का जैसा हेकड़ स्वभाव है, उसमें वे आदमी कमाते कम हैं, बिगाड़ते ज्यादा हैं। ऐसे में नोखा में कन्हैयालाल झंवर चाहे निर्दलीय फिर से मैदान में आ जाएं तो वे कांग्रेस-भाजपा दोनों का खेल बिगाडऩे की कूवत तो रखते ही हैं और यदि भाजपा झंवर या झंवर के पुत्र नारायण को उम्मीदवार बनाने में सफल हो जाती है तो जिले की यह दूसरी सीट होगी जहां से भाजपा इस बार के प्रतिकूल माहौल में भी सीट निकाल ले जा सकती है।
कोलायत में भंवरसिंह भाटी ने अपना ठाठा ना केवल ठीक-ठाक जमा लिया है बल्कि देवीसिंह जैसे दिग्गज प्रतिद्वंद्वी होने पर भी जीत का फासला बढ़ा चुके हैं। यही वजह है कि भाटी न केवल चुनाव ना लडऩे की बात करने लगे हैं बल्कि अपने किसी परिजन को चुनाव में उतारने में भी झिझकने लगे हैं। खुद देवीसिंह हों या उनका कोई परिजन, यह दूसरी हार उनके रोब-रुआब में बट्टा ही लगाएगी। ऐसे में कोलायत से भाजपा को अपना हिसाब-किताब बनाए रखना है तो किसी साफ सुथरी छवि वाले गैर राजपूत उम्मीदवार पर दावं लगाना चाहिए, जो कोलायत में भाजपा का भविष्य हो सके।
खाजूवाला में गोविन्द मेघवाल पर दावं लगाना ही कांग्रेस के लिए अनुकूल रहेगा। कांग्रेस किसी दूसरे नाम पर विचार भी करेगी तो गोविन्द मेघवाल जिस तासीर के हैं, उसमें वे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने से बाज नहीं आएंगे। ऐसे में नुकसान कांग्रेसी उम्मीदवार को ही होगा। नोखा में जैसे कन्हैयालाल झंवर खेल बिगाडऩे-बनाने की क्षमता रखते हैं, ऐसे ही खाजूवाला में नोखा की राजनीति से आए गोविन्द मेघवाल भी ऐसी ही तुनक रखते हैं। अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहना उनकी इस मंशा को जाहिर करता है कि उन्हें चुनाव तो लडऩा ही है।
कन्हैयालाल झंवर और गोविन्द मेघवाल के हठ से तो तुलना नहीं कर सकते लेकिन जिले में एक असल पेशेवर राजनेता मानिकचंद सुराना भी चुनाव लडऩे को संकल्पबद्ध हमेशा रहते हैं, चाहे पार्टी उन्हें टिकट दे या ना दे। सुराना ना केवल अपनी पार्टी बनाकर मैदान में उतर सकते हैं, नहीं तो निर्दलीय उतर कर भी चुनाव जीत कर दिखा सकते हैं। इसीलिए खुद सुराना या उनके पौत्र सिद्धार्थ सुराना मैदान में आ धमकने की स्थिति में लूनकरणसर विधानसभा क्षेत्र की सीट भी ऐसी है जहां का अनुमान चुनावी चौसर बिछने के बाद ही लगाया जा सकता है।
भाजपा यदि सुराना या उनके पौत्र को उम्मीदवार नहीं बनाती है तो हो सकता है सुराना मुकालबे को त्रिकोणीय बना दें, अपने क्षेत्र में सुराना की इतनी पैठ तो है ही। ऐसे में कांग्रेस के लिए वीरेन्द्र बेनीवाल के नाम पर विचार करना मजबूरी हो सकता है। लूनकरणसर में मुकाबला त्रिकोणीय रहे या सीधा, सत्ता में हाने के बावजूद भाजपा की पेठ जाटों में खत्म होने के चलते कांग्रेस के लिए बेनीवाल ही फायदेमन्द हो सकते हैं। हालांकि पिछले एक अरसे से डॉ. राजेन्द्र मूंड क्षेत्र में राजनीतिक बुआई जरूर कर रहे हैं लेकिन माहौल की अनुकूलता उनका साथ कितना देगी, कह नहीं सकते।
फेरी पूरी कर बीकानेर लौट आते हैं और सुर्खियों में रहने वाली बीकानेर पश्चिम की सीट पर बात कर लेते हैं। यहां से दो बार हार चुके कांग्रेस के दिग्गज डॉ. बीडी कल्ला खुद अपने टिकट पर आश्वस्त नहीं हैं। पार्टी अध्यक्ष राहुल क्या फार्मूला लाते हैं, उसकी वे जानें। बीकानेर पश्चिम की सीट निकालने की कूवत अब भी किसी में दिखाई देती है तो वह डॉ. बीडी कल्ला ही हो सकते हैं। हालांकि राजकुमार किराड़ू क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं लेकिन सामने भाजपा ने कोई गंभीर उम्मीदवार उतार दिया तो उससे पार पाना कल्ला के अलावा अन्य किसी के लिए मुश्किल होगा। इसीलिए बीकानेर पश्चिम से यदि कल्ला ही उम्मीदवार होते हैं तो यह सीट भी कांग्रेस के लिए आसान हो सकती है।
दीपचन्द सांखला
16 अगस्त, 2018

Thursday, August 9, 2018

विधानसभा चुनाव, बीकानेर की सात सीटें और भाजपा : एक पड़ताल


राजस्थान में बने अपने प्रतिकूल माहौल के बीच बीती 28 जुलाई को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जब करोड़ों खर्च से आयोजित डिजिफेस्ट के बहाने अपने प्रचार के लिए बीकानेर आयीं तो कई सुर्खियां छोड़ गईं। गुरुडम के बहाने अपनी रहनुमाई को साधने वाले धर्मगुरु हों, चाहे राजनेता या फिर कोई दबंग ही क्यों ना हो, दृश-अदृश मोरपंख की झाडू हाथ में रखता ही है। काले झण्डों से बिदकने से बचने के लिए राजे ने नाल हवाई अड्डे से नागणेचीजी मन्दिर तक के मात्र 18 किलोमीटर के रास्ते के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया। जाहिर है हेलीकॉप्टर को उतारने के लिए मेडिकल कॉलेज मैदान पर आनन-फानन में हेलीपैड भी बनाया गया। जनता के पैसे के दुरुपयोग का उदाहरण तो डिजिफेस्ट का पूरा आयोजन ही था लेकिन फिलहाल उसकी बात छोड़ देते हैं क्योंकि ये नेता सत्ता में आते ही पठान हो जाते हैं और 'पठान पैसा खाता है' वाली कहावत को अच्छे से चरितार्थ करने लगते हैं।
लेकिन जनता जब खुद ही भोली प्रजा बने रहने की फितरत आजादी के 70 वर्षों बाद भी पाले रखे तो शासकों को निरंकुश होने से कौन बरजेगा।
बात मोरपंख की झाडू से चली तो वहीं लौट लेते हैं। सूबे में भाजपा की असल खेवनहार वसुंधरा राजे जब मेडिकल कॉलेज के मैदान में उतरीं तो मानों मोरपंख का झाडू लिए ही उतरी हों। पहले पूर्व देहात अध्यक्ष रामगोपाल सुथार पर हाथ रखा तो फिर किसान मोर्चे के धूड़ाराम डेलू परदोनों के लिए ही भाजपा की टिकट केवल इस बिना पर पक्की मान ली गई। बाद में जब ध्यान आया कि ये तो दोनों ही श्रीडंूगरगढ़ विधानसभा सीट से हैं तो फुसकियां छोडऩे वाले बगलें झांकने लगे।
बात इत्ती से ही आई-गई नहीं होगीसो बात श्रीडूंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से शुरू करते हैं। दसवें दशक को हासिल वर्तमान विधायक किसनाराम नाई के सामने यदि उनका पोता ही अपनी दावेदारी की सोच ले तो किसनाराम श्लोक बोलते देर नहीं लगाते, इसीलिए अन्य कोई उनकी उम्र का लिहाज कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को कम से कम नाई के सम्मुख तो दबाये ही रखता है। इतना ही नहीं, खुद उनके रिश्तेदार और सांसद अर्जुनराम मेघवाल के प्रवक्ता अशोक भाटी को मिलती सुर्खियों पर ही किसनाराम भौहें तानते देर नहीं लगाते। पार्टी यदि उम्र का बहाना कर किसनाराम को किनारे ही लगाती है तो उनके स्वभाव का शिकार खुद उनका महत्त्वाकांक्षी पोता ही होगा। संभावित उम्मीदवारों के लिए करवाये गये पार्टी के सर्वे में उसका नाम ही नहीं गया। सर्वे से जो तीन नाम गये बताते हैं उनमें खुद किसनाराम नाई का पहला, दूसरा रामगोपाल सुथार का तो तीसरा तोलाराम जाखड़ का गया बताते हैं। कांग्रेस से लगभग तय उम्मीदवार मंगलाराम जाट समुदाय से हैं। ऐसे में भाजपा इस सीट पर गैर जाट को ही उम्मीदवार बनाती लगती है।
बीकानेर पश्चिम के अस्सी पार के विधायक गोपाल जोशी कभी हां तो कभी ना करते-कहते अब खुलकर ना कहने लगे हैं। ऐसे में उनके पुत्र गोकुल जोशी किसनाराम नाई के पोते की गर्त को हासिल होने से बच गये। कहा जा रहा है कि पार्टी के सर्वे में जो तीन नाम उभर कर आये हैं उनमें खुद गोपाल जोशी के अलावा उनके पुत्र गोकुल जोशी का नाम भी गया है। हालांकि करंट जोशी के पौत्र विजयमोहन ज्यादा दिखा रहे हैं लेकिन सर्वे में वे नहीं आए, यह आश्चर्य है। तीसरा नाम अविनाश जोशी का बताया जा रहा है। मक्खन जोशी के पौत्र और केवल बीकानेर पश्चिम से टिकट हासिल करने के लक्ष्य को लेकर गोटियां बिठाते रहने वाले अविनाश खुद की जमीन पर कितने टिके हैं, नहीं पता लेकिन प्रदेश में शीर्ष के सभी नेता उनके नाम और चेहरे से वाकिफीयत रखते हैं।
बीकानेर पूर्व की गति सबसे न्यारी है। जिले की सात सीटों में मात्र एक सीट जहां से भाजपा की जीत पुख्ता मानी जा रही है, वह बीकानेर पूर्व की है और यह निश्चितता भी वर्तमान विधायक सिद्धिकुमारी का रियासती परिवार से होना मात्र है। जबकि सिद्धिकुमारी जिले के सातों विधायकों में ना केवल सबसे नाकारा हैं बल्कि वह अपने क्षेत्र में कभी रहती भी नहीं हैं। सामन्ती मानसिकता से जनता नहीं निकलेगी और प्रजा बनी रहेगी तो उसकी नियति यही है। हालांकि पार्टी सर्वे में जिन दो अन्य नामों की चर्चा है, उनमें नगर विकास न्यास अध्यक्ष महावीर रांका और पार्टी प्रशिक्षण प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह संयोजक सुरेन्द्रसिंह शेखावत का भी है, सिद्धिकुमारी खुद ही पीछे हट जाए तो बात अलग है। लगता तो नहीं है कि लगभग पक्की जीत वाली इस उम्मीदवार को पार्टी हटायेगी। ऐसे में उम्मीदवारी हासिल करने के लिए लगभग सभी तरह की कोशिशों में लगे महावीर रांका को बीकानेर पश्चिम से भाजपा उतार दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
नोखा से जिन तीन नामों पर विचार होना बताया जा रहा है उनमें 2013 में पार्टी उम्मीदवार रहे और जमानत जब्त करवा चुके सहीराम बिश्नोई के अलावा अच्छी खासी सरकारी नौकरी छोड़कर आए और अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय बिहारीलाल बिश्नोई की दावेदारी काफी वजनी मानी जा रही है। तीसरा नाम कन्हैयालाल जाट का भी है। कांग्रेस से नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी की पक्की उम्मीदवारी को देखते हुए भाजपा चाहे तो इसे प्रतिष्ठा की सीट कन्हैयालाल झंवर को पार्टी में लाकर बना सकती है। अस्वस्था के बावजूद झंवर डूडी को जोर कराने का जोम अब भी रखते हैं। पार्टी सूत्र बताते हैं कि भाजपा इस तरह का दावं खेल सकती है।
लूनकरणसर विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो किसनाराम नाई और गोपाल जोशी की उम्र के वर्तमान विधायक मानिकचंद सुराना खुद की उम्मीदवारी की संभावना से अस्वस्थता के बावजूद इनकार नहीं करते, इसीलिए भाजपा में ना होते हुए भी जिन तीन नामों की चर्चा है उनमें एक मानिकचन्द सुराना का भी है। हालांकि कहा यह जा रहा है कि सुराना अपने पोते सिद्धार्थ को टिकट दिलवाना चाह रहे हैं। अन्य जो दो नाम गए बताते हैं उनमें 2013 में पार्टी से उम्मीदवार रहे सुमित गोदारा और देहात अध्यक्ष सहीराम दुसाद के हैं। सुमित अपने क्षेत्र में जहां लगातार दस्तक देते रहे वहीं दुसाद के लिए अभी भी देवीसिंह भाटी दु:साध्य बने हुए हैं। भाटी किसी को टिकट दिलवाने का दबदबा अब भले ही ना रखते हों-कटवाने भर का तो रखते ही हैं।
खाजूवाला से जो तीन नाम चर्चा में हैं, उनमें वर्तमान विधायक और संसदीय सचिव डॉ. विश्वनाथ मेघवाल तो हैं ही, जिसे लगभग तय ही माना जा रहा है। लेकिन संभावितों में जिस एक नाम का होना और एक अन्य नाम का नहीं होना, कम अचरज की बात नहीं है। पार्टी में विश्वनाथ के धुर विरोधी सांसद अर्जुनराम मेघवाल के पुत्र रविशेखर का नाम पार्टी सर्वे में ना होना जहां अचरज की बात है तो वहीं डॉ. विश्वनाथ की पत्नी और होमसाइंस कॉलेज की डीन डॉ. विमला डुकवाल का नाम आना डॉ. विश्वनाथ के नाम पर किस संशय की चुगली कर रहा है, नहीं पता लेकिन इस से यह तय हो गया है कि बीकानेर के आगामी लोकसभा के संभावित उम्मीदवारों में
डॉ. विमला डुकवाल का नाम जरूर होगा। एक तीसरा नाम जो खाजूवाला से गयावह भोजराज मेघवाल का है। सरपंच भोजराज का नाम कहीं अर्जुनराम मेघवाल की ओर से तो नहीं चलाया गया है?
कोलायत से अजेय माने जाने वाले देवीसिंह भाटी की 2013 की पराजय ने इस विधानसभा क्षेत्र में बहुत उलटफेर कर दिया है। सुनते हैं, रही सही कसर सरकार द्वारा पुलिस महकमे के कुछ माह पहले करवाए गए उस सर्वे ने पूरी कर दी जिसमें बताया गया कि 2018 में देवीसिंह भाटी और भंवरसिंह भाटी ही आमने-सामने यदि होते हैं तो दोनों के बीच वोटों का फासला बजाय कम होने के बढ़ेगा। शायद इसीलिए हां-ना, हां-ना करते देवीसिंह भाटी ना के लिए किसी पुख्ता बहाने की तलाश में हैं- यह तय है कि इस चुनाव से देवीसिंह भाटी यदि बाहर हो जाते हैं तो राजनीति में उनकी बची-खुची चौधर भी खत्म हो जानी है, दबंगई की धार भी कम होगी, वह अलग। देवीसिंह भाटी के पौत्र कम उम्र के चलते इस चुनाव में अपनी पात्रता नहीं रखते हैं। ऐसे में जो तीन नाम पार्टी सर्वे में आए हैं उनमें खुद देवीसिंह भाटी के अलावा उनकी पुत्रवधू और पूर्व सांसद महेन्द्रसिंह भाटी की पत्नी पूनमकंवर का नाम भी बताया जा रहा है। वहीं तीसरा नाम कोलायत प्रधान जयवीर सिंह भाटी का दिया गया है। भाजपा को इस सीट से अब किसी गैर राजपूत उम्मीदवार पर विचार करना चाहिए क्योंकि कांग्रेस के लगभग तय उम्मीदवारों में विधायक भंवरसिंह भाटी राजपूत समुदाय से हैं। यदि पार्टी गैर राजपूत युवा उम्मीदवार पर दावं खेलेगी तो 2023 तक वह पार्टी के लिए उपलब्धि कारक हो सकता है।
दीपचन्द सांखला
09 अगस्त, 2018