पिछले सप्ताह मीडिया में
फोटो सहित सुर्खियां थीं कि जूनागढ़ के सामने लगने वाले खान-पान के संध्या बाजार
के गाड़ों को यातायात पुलिस ने अपने थाने में लाकर खड़ा कर लिया। जैसा कि सुनते आ
रहे हैं—शहर की सड़कों पर लगने वाले प्रत्येक गाड़े का हफ्ता या
मंथली तय है, उसको उगहाने और पहुंचाने वाले भी तय हैं। बावजूद इसके बिना
इसका खयाल रखे कि खान-पान की ये वस्तुएं दूसरे दिन खराब हो जाएंगी, दूसरे तरीके से
कहें तो इन दिहाडिय़ों की एक दिन की ना केवल मजदूरी मार दी बल्कि सामान का नुकसान
जो करवाया वो अलग।
चूंकि इन थड़ी-गाड़े वालों
का कोई संगठन नहीं है, इसलिए ये दुगुनी-तिगुनी मार के शिकार हो जाते
हैं, वह भी उगाही देने के बावजूद। अन्यथा ठीक इनके समानान्तर ऑटो
रिक्शा वालों को देख लें-नाबालिग चलाते हैं, बिना लाइसेंस
वाले चलाते हैं, परिवहन विभाग के पूरे कागजों के बिना चलती है, और तो और बिना
स्टैण्ड के खड़े रहते हैं और बिना साइड के चलते हैं, चूंकि संगठित
हैं। इसलिए पुलिस वालों को भाव नहीं देते और होमगार्ड से आंख दिखाकर बात करते हैं।
थड़ी-गाड़े वालों की
दुर्दशा केवल बीकानेर में ही हो ऐसी बात नहीं, कमोबेश पूरे देश
में इनकी और हाथरिक्शा वालों की गत यही है। शायद इसीलिए जाते-जाते ही सही संप्रग-2
की मनमोहन सरकार ने इन थड़ी गाड़े वालों के हित में मार्च 2014 में 'द स्ट्रीट
वेन्डर्स' (प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलीहुड एण्ड रेगुलेशन ऑफ स्ट्रीट वेंडिंग)
एक्ट-2014 पारित कर दिया। लेकिन जिन स्थानीय निकायों को इसे लागू करना है वे आज भी
उसे अछूत मानती हैं। मनमोहन सरकार बदनाम
भी खूब हुई लेकिन आरटीआई, मनरेगा और स्ट्रीट वेन्डर्स एक्ट जैसे दमित
पीडि़त हित के कई कानून वह पास करवा गई। बीकानेर के सन्दर्भ से बात करें तो इस 'स्ट्रीट वेन्डर्स
एक्ट 2014' को लागू करने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। चार वर्ष बीत
गये लेकिन सर्वे जैसा प्रथम चरण का कार्य भी उसने पूरा नहीं किया है। वेन्डर्स जोन
और नॉन वेन्डर्स जोन इस सर्वे से ही तय होने हैं और निगम को एक 'टाउन वेंडिंग
कमेटीÓ भी गठित करनी होती है। जो सर्वे के परिणामों के आधार पर वेंडिंग
जोन के अनुसार पहले से ही थड़ी-गाड़ा लगाने वालों के लिए नई-पुरानी जगह तय करेगी।
इसका मतलब यह नहीं कि इन्हें ऐसी जगह भेज दिया जाए कि जहां कोई ग्राहक ही नहीं
पहुंचे। ये वेंडिंग जोन उन चौड़ी सड़कों पर भी बन सकते हैं जहां इनके खड़े होकर
आजीविका पालने से यातायात में कोई बाधा ना हो। बाकायदा इनका पंजीकरण होगा और
निश्चित अवधि में स्थानविशेष का निगम को भुगतान भी करना—इतना ही नहीं, इस एक्ट के
अध्याय 2 के सेक्शन 3 के बिन्दु तीन में स्पष्ट लिखा गया है कि बिना सर्वे और बिना
सर्टिफिकेट जारी किये जमे-जमाए इन वेन्डर्स को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही
स्थान बदलने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इस तरह यातायात पुलिस की पिछले सप्ताह
की कार्रवाई गैरकानूनी कही जा सकती है।
इस एक्ट के अनुसार देखें
तो जूनागढ़ के सामने लगने वाला खान-पान का संध्या बाजार वेंडिंग जोन के हिसाब से सही
है, ठीक इसी तरह पब्लिक पार्क में भी एक वेंडिंग जोन विकसित
किया जा सकता है। जबकि पिछले दिनों सुना यह भी था कि पब्लिक पार्क में लगने वाले
ठेले-गाड़ों को निकाल बाहर किया जाएगा। क्यों भाई! कोई धंधा करके कमा रहा है, आपको क्या तकलीफ
है? क्या आप चाहते हैं कि ये लोग उजड़ के चेन स्नेचिंग, उठाईगीर, ठगी और
चोरी-चकारी करें। स्थानीय निकाय-प्रशासन की जिम्मेदारी तो यह है कि वे खान-पान का
काम करने वालों की निगरानी रखें कि वे स्वच्छता और शुद्धता के मानकों पर खरे हैं
या नहीं-और अपने ग्राहकों के साथ किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी तो नहीं कर रहे हैं।
कुछ चन्द स्थानों का
उल्लेख हाल ही में मिली नकारात्मक सुर्खियों के चलते कर दिया। जरूरत निगम क्षेत्र
के सभी हिस्सों में रोटी-रोजी कमाने वाले ऐसे थड़ी-गाड़ेवालों की व्यवस्था एक्ट के
अनुसार कर उन्हें सम्मान के साथ रोटी-रोजी कमाने में सहयोग करने की है। मीडिया भी
इस तरह के मामलों में ना केवल संवेदनहीन दिखाई देता है बल्कि बहुधा अपनी समझ की
कमी भी जाहिर करता है। इस तरह के काम-धंधों से आजीविका कमाने वालों को लेकर खबरें
लगाते हुवे मीडिया या तो यह कहता है कि ये सौंदर्य में बाधा है। या फिर उन्हें
यातायात में बाधा बता कर उखाड़ फेंकने की पैरवी करता है, जबकि होना यह
चाहिए कि थड़ी-गाड़े वालों की रोटी-रोजी और सौंदर्य-यातायात के बीच संतुलन रखते
हुए उन्हें खबरें लगानी चाहिए।
देश में रोजगार के अवसर
लगातार घट रहे हैं। सरकारी नौकरियों में लगातार कटौती हो रही है, इन परिस्थितियों
में कोई इज्जत के साथ अपना और अपने परिवार का पेट पालना चाहता है-उसके लिए बजाय
अनुकूलताएं बनाने के ये शासन-प्रशासन मय पुलिस जब चाहे ना केवल उन्हें
हड़काने-बेइज्जत करने की कार्रवाई करते हैं बल्कि उन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचाने
से भी बाज नहीं आते।
शहर के प्रथम नागरिक होने
के नाते महापौर को इसे अपनी महती जिम्मेदारी मानना चाहिए और इस बात की वे पुख्ता
व्यवस्था करें कि स्ट्रीट वेन्डर्स एक्ट-2014 बीकानेर में समयबद्धता के साथ लागू
हो। संगठित, समर्थ और दबंगों से संबंधित कामों में कुछ देरी भी हो तो
उनके कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन स्ट्रीट वेन्डर्स एक्ट-2014 से लाभान्वित होने
वाले लोगों को एक्ट का लाभ प्राथमिकता से मिलना चाहिए, जिसके कि वे
हकदार हैं।
—दीपचन्द सांखला
23 अगस्त, 2018