Saturday, November 24, 2018

जनरल वीके सिंह प्रकरण : सुखद पटाक्षेप (11 फरवरी, 2012)

थल सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह की उम्र को लेकर विवाद का पटाक्षेप सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक और सद्भावपूर्ण तरीके से कर दिया। विद्वान् न्यायाधीशों ने बहुत समझदारी से पहले तो सरकार को बैकफुट करते हुए 30 दिसम्बर के उस निर्णय को वापस करवाया जिसमें सरकार ने जनरल की शिकायत को नामंजूर किया गया था और फिर जनरल को कहा कि दोपहर दो बजे तक वे अपनी याचिका वापस ले लें अन्यथा दो बजे बाद न्यायालय अपना फैसला दे देगा। यह व्यवस्था देते हुए न्यायाधीशों ने जनरल से पूछा कि इससे पूर्व आपने अपनी जन्म तारीख को संघ लोक सेवा आयोग, इंडियन मिलिटरी अकादमी और नेशनल डिफेंस अकादमी के रिकार्ड में ठीक क्यों नहीं करवाया। न्यायालय ने उन्हें यह भी ध्यान दिलाया कि सन् 2008-09 में उनके द्वारा दिये पत्रों में उन्होंने अपना जन्म वर्ष 1950 स्वीकार किया है अतः वे अपने लिखे का सम्मान करें। दो बजे बाद जनरल वीके सिंह के वकील ने कोर्ट से अपनी याचिका वापस  ले ली।
भारतीय सेना में अनुशासन की शानदार परंपरा रही है। उसमें इस तरह का वाकिआ बेहद गंभीर और चिन्ताजनक था। देश की सुरक्षा के जिम्मेदारों को संवेदनशीलता दिखाते हुए बेहद सतर्कता के साथ इस तरह की बदमजगी के अवसर आने देने से बचना चाहिए। इसी तरह की चिन्ता अपने 17 जनवरी, 2012 के आलेख में भी जाहिर की थी जिसमें व्यवस्था और जनरल वीके सिंह, दोनों से अपेक्षाएं और अपनी चिन्ताएं इस तरह जाहिर की थी :--
‘....प्रार्थी के 10वीं पढ़े होने की स्थिति में जब जन्म दिनांक संबंधी सभी वैधानिक औपचारिकताओं में उस सर्टिफिकेट में दर्ज जन्म तारीख को प्रामाणिक माना जाता है तो जनरल वी के सिंह के मामले में यह असावधानी क्यों हुई? इस तरह की असावधानी की जानकारी यदि उन्हें सेवाकाल के शुरुआत में ही हो गई थी तो इसे तभी सुधरवा लेना चाहिए था... उनको इसकी जानकारी अब हुई हो-यदि ऐसा है तो अंग्रेजी कहावत के अनुसार वे सज्जन की तरह आये तो सज्जन की ही तरह विदा हो लेते।’
इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के कल के हस्तक्षेप की रोशनी में पाठक उक्त पंक्तियों को दुबारा पढ़ लें, बस इतना ही आग्रह है।
-- दीपचंद सांखला
11 फरवरी, 2012

No comments: