Friday, November 23, 2018

प्रतिष्ठित होता कानून का राज (1फरवरी, 2012)

पिछले एक अरसे से अखबारों में जिस तरह की खबरें आ रही हैं वो सुकून देती लगती हैं, यानी न्यायपालिका की सक्रियता और अन्ना आंदोलन की रोशनी में देश में लगातार ऐसा कुछ घटित हो रहा है जिससे लगने लगा है कि कानून का राज प्रतिष्ठित होगा। कहने को तो कानून का राज हमेशा ही रहा है लेकिन लगता नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने कल एक अहम व्यवस्था दी है कि सरकार अपने मंत्रियों और अफसरों पर भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करने की अनुमति यदि चार माह में नहीं देगी तो उस मामले में अनुमति लेने की जरूरत खत्म हो जाएगी। देखा गया है कि इस तरह के मामलों की फाइलें सरकार में 20-20 वर्ष तक दबी रहती हैं और तब तक आरोपी या तो सेवानिवृत्त हो जाता है या फिर इस दुनिया से ही विदा हो लेता है। इससे जाहिर होता है कि सरकार इस निवृत्ति और विदाई का इंतजार ही करती है? धीरे-धीरे धारणा यह बनती गई कि समरथ का कुछ भी बिगड़ेगा नहीं और जब ऐसी धारणा आम हुई तो लोगों में दबंगों और समर्थों के खिलाफ आवाज उठाने की इच्छाशक्ति भी समाप्त होने लगी।
2-जी स्पैक्ट्रम घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट की दी गई उक्त व्यवस्था हो या जयपुर में रामगढ़ बंधे की आगौर की जमीनों को खुर्द बुर्द करने का मामला, इनसे न्याय-व्यवस्था पर लोगों का भरोसा बढ़ा है। ऐसे ही भंवरी प्रकरण में भी दबंग-दिग्गजों के सीखचों के पीछे होने से लोगों का कानून व्यवस्था पर भी जी जमने लगा है। एक अरसे बाद जगे इस भरोसे का ही नतीजा है कि आज के अखबारों में ही स्थानीय दो भिन्न मामलों के समाचार हैं जिनमें अदालतों ने जिले के लगभग पूरे शीर्ष प्रशासन के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को जांच के आदेश दिये हैं। अब यह अलग बात है कि जांच के नतीजे क्या आते हैं। हो सकता है अपीलकर्ताओं की अधकचरी जानकारी या अधकचरे साक्ष्य के चलते मामले सिरे नहीं चढ़ें। या यह भी कि अपीलकर्ताओं के व्यक्तिगत दुराग्रहों के चलते आरोपियों को केवल परेशान करना ही उनका मकसद हो और बीच जांच में पांव पीछे कर लें। यह भी कि ऐसा कुछ नहीं हो और आरोपी इतने सक्षम निकलें कि वो जांच को ही प्रभावित कर दें, क्योंकि इस तरह की संभावनाओं की बातें देखी-सुनी जाती रही हैं, लेकिन बावजूद इन सबके, अदालतों की इस सक्रियता को रेखांकित तो किया ही जाना चाहिए।
शहरी विकास को लेकर एक सकारात्मक समाचार और भी है। पारीक चौक की एक गली में घरों के आगे बनी चौकियों को न तोड़ने के आग्रह के चलते सड़क निर्माण का काम लगभग एक पखवाड़े से रुका हुआ था। कल की समझाइश के बाद अड़े लोग चौकियां हटवाने को मान गये हैं और कार्य प्रारम्भ हो गया है। इसी तरह की समझाइश और अड़ियल रुख छोड़ने की जरूरत है बढ़ते शहर के विकास के लिए।
-- दीपचंद सांखला
1 फरवरी, 2012

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