Thursday, December 21, 2017
एलिवेटेड रोड योजना : इस अधूरे समाधान का जिम्मेदार कौन
Sunday, December 10, 2017
मध्यप्रदेश के पत्रकार जीतेन्द्र सुराना की पोस्ट : यह दौर आपातकाल से ज्यादा इस तरह भयावह है।
मैंने आपातकाल में भी पत्रकारिता की थी। जी हाँ 1975 से लेकर 1978 तक मैं मंदसौर से प्रकाशित दैनिक दशपुर दर्शन का नीमच संवाददाता था और अखबार के संपादक थे सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार बालकवि बैरागी के अनुज श्री विष्णु बैरागी।
आपातकाल के उस दौर में एक दिन मैं अपनी साइकिल से नीमच के थाने के सामने से गुजर रहा था।मैंने वहाँ देखा कि थाने के खुले मैदान में एक लड़का और लड़की बैडमिंटन खेल रहे हैं और बैडमिंटन की नेट पकड़ कर खड़े हैं पुलिस के दो जवान! उस समय मेरी उम्र जरूर 20 वर्ष के आसपास थी लेकिन वो दृश्य देखकर मेरा न्यूज़ सेंस एकाएक जाग गया! मैं थाने में प्रवेश कर गया और वहाँ मौजूद दीवानजी से बैडमिंटन खेल रहे बच्चों के ,एवं नीमच थाने के कुल पुलिस बल के बारे में जानकारी ली।
अगले ही दिन दशपुर दर्शन के मुख पृष्ठ पर समाचार प्रकाशित हो गया।उस समाचार में पुलिस स्टाफ की भारी कमी के साथ प्रमुख बात थी "मंदसौर के एसपी उत्पल के बच्चे नीमच के सेंट्रल स्कूल में पढ़ने के लिए एक निजी बस चित्तोड़-अरनोद, से आते हैं।स्कूल की छुट्टी और बस के मंदसौर वापसी के बीच करीब दो घंटे का अंतराल रहता था इस दौरान बच्चे थाना परिसर में ही रहते थे और चूंकि बच्चे एसपी साहब के थे तो पूरा स्टाफ उनकी सेवा और देखभाल में लगना स्वाभाविक ही था सो समाचार में पुलिस स्टाफ की कमी के साथ ही आरक्षकों की अलग अलग जगह लगने वाली ड्यूटी के साथ यह बात भी प्रमुखता से प्रकाशित हुई कि स्टाफ की कमी के बावजूद एसपी उत्पल के बच्चे जब थाना परिसर में बैडमिंटन खेलते हैं तो पुलिस के दो जवान नेट पकड़कर अपनी ड्यूटी बजाते हैं!
एसपी और उनके बच्चों को लेकर इस तरह की खबर छपने के बाद स्वाभाविक है बवाल तो मचना ही था। उस समय नीमच के एसडीओ पुलिस थे स्वराज पुरी(जो कि बाद में मध्यप्रदेश के डीजीपी बने) उन्होंने मुझे इस समाचार पर मेरा बयान लेने के लिए उनके कार्यालय पर बुलाया।संपादकजी से चर्चा की तो उन्होंने आश्वस्त किया कि डरने की कोई बात नही है,बेख़ौफ़ होकर बयान दो!मैं बयान देने पहुंचा और स्वराज पूरी ने मुझसे फुसलाकर यह उगलवा लिया कि पुलिस बल की संख्या की जानकारी किसने दी तो मैंने बचपने में पुलिस के दीवानजी बनेसिंहजी का नाम बता दिया। दूसरे दिन मुझे पता चला कि पुरी साहब ने उन दीवानजी को लाईन हाजिर कर दिया है।
लेकिन आपातकाल के उस आतंक के माहौल में पुरी जैसे दबंग आईपीएस की हिम्मत नही थी कि मुझ जैसे एक कम उम्र के नौजवान पत्रकार पर हाथ डाल दे!
और अब देखिए आज का दौर जबकि नीमच से 350 किमी दूर खरगोन में मेरे फेसबुक मित्र वहां के डीआईजी ए के पांडे को शासन के एक निर्णय पर कसे एक व्यंग और तंज पर इतना बुरा लग जाता है कि खरगोन थाने में मेरे विरुद्ध बलात्कार सहित कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हो जाता है! यह है आज को दौर जो शायद आपातकाल से भी कई गुना बदतर है!
Thursday, December 7, 2017
आधा-अधूरा एलिवेटेड रोड : डा. गोपाल जोशी और सिद्धिकुमारी के लिए धर्म निभाने और रुतबा दिखाने का अवसर
Thursday, November 30, 2017
गुजरात चुनाव : जुझार कांग्रेस और आकळ-बाकळ भाजपा
Thursday, November 16, 2017
डॉक्टरों की हड़ताल और फिल्म पद्मावती के बहाने अपने समाज को आईने में देखने की कोशिश
Sunday, November 12, 2017
जिस पद्मावती पर घमासान मची है, उस कवि की कल्पना का अवलोकन तो करलें; वह इतिहास है या कोरी कल्पना।
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जिस पद्मावत के इतिहास की चर्चा आजकल जोर शोर से हो रही है उसके ब्रांड अम्बेसडर यानी लेखक मालिक मोहम्मद जायसी के "पद्मावत" अनुसार पदमिनी ने 1303 में जौहर कर लिया था ! लेकिन पद्मावत ग्रंथ की रचना हुई थी 1597 में ! अब लगभग 290 साल बाद मिली दिव्य द्रष्टि को छोड़ भी दिया जाये और थोड़ा सा भी दिमाग लगाकर सोचे तो - 16000 रानियों ने जौहर किया 30000 सैनिको ने शाका किया इस हिसाब से किले में रहने वाली कम से कम जनसँख्या होगी लगभग 1.50 लाख ! चित्तौड़ जैसे पहाडी दुर्ग में जहाँ रहने को केवल महल था उसमे इतने लोगों का रह पाना असम्भव हि लगता है !
खैर इसको छोड़कर मूल कहानी पर आते है जो पुराण, वेद, रामायण, महाभारत से भी मजेदार है !
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कहानी की शुरुवात होती है हीरामन नामक तोते से जिसने खूबसूरत पदमिनी को नहाते हुए देखा और राजा रतनसेन के सामने उसके रूप का लम्बा चौड़ा वर्णन किया ! उस वर्णन को सुन राजा बेसुध हो गया उसके हृदय में ऐसा अभिलाष जगा कि वह हीरामन को साथ ले जोगी होकर घर से निकल पड़ा ! उसके साथ सोलह हजार सैनिक भी जोगी होकर चले !
दुर्गम स्थानों के बीच होते हुए सब लोग कलिंग देश में पहुँचे ! वहाँ के राजा गजपति से जहाज लेकर रत्नसेन ने सिंहलद्वीप की ओर प्रस्थान किया क्षार समुद्र, क्षीर समुद्र, दधि समुद्र, उदधि समुद्र, सुरा समुद्र और किलकिला समुद्र को पार करके वे सातवें मानसरोवर समुद्र में पहुँचे जो सिंहलद्वीप के चारों ओर है !
सिंहलद्वीप में उतरकर जोगी रत्नसेन तो अपने सब जोगियों के साथ महादेव के मन्दिर में बैठकर तप और पद्मावती का ध्यासन करने लगा और हीरामन पद्मावती को मिलने के लिए बुलाने गया !
वसन्त पंचमी के दिन पद्मावती सखियों के सहित वहाँ पहुँची जिधर रत्नसेन थे ! पर ज्योंही रत्नसेन की ऑंखें उस पर पड़ीं, वह मूर्च्छित होकर गिर पड़ा ! राजा को जब होश आया तब वह बहुत पछताने लगा और जल मरने को तैयार हुआ ! सब देवताओं को भय हुआ कि यदि कहीं यह जला तो इसकी घोर विरहाग्नि से सारे लोक भस्म हो जाएँगे ! उन्होंने जाकर महादेव पार्वती के यहाँ पुकार की !
महादेव कोढ़ी के वेश में बैल पर चढ़े राजा के पास आए और जलने का कारण पूछने लगे ! इधर पार्वती की, जो महादेव के साथ आईं थीं, यह इच्छा हुई कि राजा के प्रेम की परीक्षा लें ! ये अत्यन्त सुन्दरी अप्सरा का रूप धारकर आईं और बोली -'मुझे इन्द्र ने भेजा है ! पद्मावती को जाने दे, तुझे अप्सरा प्राप्त हुई ! रत्नसेन ने कहा-'मुझे पद्मावती को छोड़ और किसी से कुछ प्रयोजन नहीं !
पार्वती ने महादेव से कहा कि रत्नसेन का प्रेम सच्चा है। रत्नसेन ने देखा कि इस कोढ़ी की छाया नहीं पड़ती है, फिर महादेव को पहचानकर वह उनके पैरों पर गिर पड़ा ! महादेव ने उसे सिद्धि गुटिका दी और सिंहलगढ़ में घुसने का मार्ग बताया ! सिद्धि गुटिका पाकर रत्नसेन सब जोगियों को लिए सिंहलगढ़ पर चढ़ने लगा !
राजा गन्धर्वसेन के यहाँ जब यह खबर पहुँची तब उसने दूत भेजे ! दूतों से जोगी रत्नसेन ने पद्मिनी के पाने का अभिप्राय कहा ! दूत क्रुद्ध होकर लौट गए ! इस बीच हीरामन रत्नसेन का प्रेमसन्देश लेकर पद्मावती के पास गया और पद्मावती का प्रेमभरा सँदेसा आकर उसने रत्नसेन से कहा ! इस सन्देश से रत्नसेन के शरीर में और भी बल आ गया ! गढ़ के भीतर जो अगाध कुण्ड था वह रात को उसमें धँसा और भीतरी द्वार को, जिसमें वज्र के किवाड़ लगे थे, उसने जा खोला ! पर इस बीच सबेरा हो गया और वह अपने साथी जोगियों के सहित घेर लिया गया ! राजा गन्धर्वसेन के यहाँ विचार हुआ कि जोगियों को पकड़कर सूली दे दी जाय ! दल बल के सहित सब सरदारों ने जोगियों पर चढ़ाई की ! अन्त में सब जोगियों सहित रत्नसेन पकड़ा गया !
इधर यह सब समाचार सुन पद्मावती की बुरी दशा हो रही थी ! हीरामन तोते ने जाकर उसे धीरज बँधाया कि रत्नसेन पूर्ण सिद्ध हो गया है, वह मर नहीं सकता !
रत्नसेन को बाँधकर सूली देने के लिए लाए जब इधर सूली की तैयारी हो रहीथी, उधर रत्नसेन पद्मावती का नाम रट रहा था ! महादेव ने जब जोगी पर ऐसा संकट देखा तब वे और पार्वती भाँट भाँटिनी का रूप धरकर वहाँ पहुँचे। ! इस बीच हीरामन सूआ भी रत्नसेन के पास पद्मावती का यह संदेसा लेकर आया कि 'मैं भी हथेली पर प्राण लिए बैठी हूँ, मेरा जीना मरना तुम्हारे साथ है।' भाँट (जो वास्तव में महादेव थे) ने राजा गन्धर्वसेन को बहुत समझाया कि यह जोगी नहीं राजा और तुम्हारी कन्या के योग्य वर है, पर राजा इस पर और भी क्रुद्ध हुआ ! इस बीच जोगियों का दल चारों ओर से लड़ाई के लिए चढ़ा !
महादेव के साथ हनुमान आदि सब देवता जोगियों की सहायता के लिए आ खड़े हुए ! गन्धर्वसेन की सेना के हाथियों का समूह जब आगे बढ़ा तब हनुमानजी ने अपनी लम्बी पूँछ में सबको लपेटकर आकाश में फेंक दिया ! राजा गन्धर्वसेन को फिर महादेव का घण्टाऔर विष्णु का शंख जोगियों की ओर सुनाई पड़ा और साक्षात् शिव युद्धस्थल में दिखाई पड़े ! यह देखते हि गन्धर्वसेन महादेव के चरणों पर जा गिरा और बोला-'कन्या आपकी है, जिसे चाहिए उसे दीजिए' !
इसके उपरान्त हीरामन सूए ने आकर राजा रत्नसेन के चित्तौर से आने का सब वृत्तान्त कह सुनाया और गन्धर्वसेन ने बड़ी धूमधाम से रत्नसेन के साथ पद्मावती का विवाह कर दिया !
पद्मिनी को लेकर समुद्रतट पर जब रत्नसेन आया तब समुद्र याचक का रूप धरकर राजा से दान माँगने आया, पर राजा ने लोभवश उसका तिरस्कार कर दिया !
राजा आधे समुद्र में भी नहीं पहुँचा था कि बड़े जोर का तूफान आया जिससे जहाज दक्खिन लंका की ओर बह गए वहाँ विभीषण का एक राक्षस माँझी मछली मार रहा था ! वह अच्छा आहार देख राजासे आकर बोला कि चलो हम तुम्हें रास्ते पर लगा दें ! राजा उसकी बातों में आ गया ! वह राक्षस सब जहाजों को एक भयंकर समुद्र में ले गया जहाँ से निकलना कठिन था ! जहाज चक्कर खाने लगे और हाथी, घोड़े, मनुष्य आदि डूबने लगे ! इस बीच समुद्र का राजपक्षी वहाँ आ पहुँचा जिसके डैनों का ऐसा घोर शब्द हुआ मानो पहाड़ के शिखर टूट रहे हों ! वह पक्षी उस दुष्ट राक्षस को चंगुल में दबाकर उड़ गया ! जहाज के एक तख्ते पर एक ओर राजा बहा और दूसरे तख्ते पर दूसरी ओर रानी ! पद्मावती बहते बहते वहाँ जा लगी जहाँ समुद्र की कन्या लक्ष्मी अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी ! लक्ष्मी मूर्च्छित पद्मावती को अपने घर ले गयी ! इधर राजा बहते बहते एक ऐसे निर्जन स्थान में पहुँचा जहाँ मूँगों के टीलों के सिवा और कुछ न था !
राजा पद्मिनी के लिए बहुत विलाप करने लगा और कटार लेकर अपने गले में मारना ही चाहता था कि ब्राह्मण का रूप धरकर समुद्र उसके सामने आ खड़ा हुआ और उसे मरने से रोका ! अन्त में समुद्र ने राजा से कहा कि तुम मेरी लाठी पकड़कर ऑंख मूँद लो; मैं तुम्हें जहाँ पद्मावती है उसी तट पर पहुँचा दूँगा !
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खैर दोनों का मिलन हुआ ! बच्चे हुए !
लेकिन असल सवाल तो ये की -
ब्रम्हा, विष्णु, महेश और हनुमान से पर्सनल सेटिंग रखने वाला रत्नसेन, खिलजी से हार कैसे गया ?? इन सब भगवानो की शक्ति समाप्त हो गयी थी क्या ??
या ये सब कोरी गप्प है ?
अब या तो गप्प मानो या फिर ये मानो की सारे भगवान निठल्ले थे जो अपने दोस्त और दोस्त की बीबी यानी पदमिनी भाभी को बचाने भी नहीँ आये !
-गिरिराज वेद जी (अरविन्द राज स्वरूप की वाल से)
Thursday, November 9, 2017
धर्म निरपेक्षता दावं पर : लोकतांत्रिक मूल्य ताक पर
Thursday, November 2, 2017
पत्रकारीय पेशे पर संकट
Friday, October 13, 2017
हिन्दू राष्ट्रवादी पत्रकार और 'नया इंडिया' के संपादक हरिशंकर व्यास का यह आलेख पढ़ा जाना चाहिए।
“ढाई लोगों के वामन अवतार ने ढाई कदम में पूरे भारत को माप अपनी ढाई गज की जो दुनिया बना ली है, उसमें अंबानी, अडानी, बिड़ला, जैन, अग्रवाल, गुप्ता याकि वे धनपति और बड़े मीडिया मालिक जरूर मतलब रखते हैं, जिनकी दुनिया क्रोनी पूंजीवाद से रंगीन है और जो अपने रंगों की हाकिम के कहे अनुसार उठक-बैठक कराते रहते हैं।
“आज का अंधेरा हम सवा सौ करोड़ लोगों की बीमारी की असलियत लिए हुए है। ढाई लोगों के वामन अवतार ने लोकतंत्र को जैसे नचाया है, रौंदा है, मीडिया को गुलाम बना उसकी विश्वसनीयता को जैसे बरबाद किया है - वह कई मायनों में पूरे समाज, सभी संस्थाओं की बरबादी का प्रतिनिधि भी है। तभी तो यह नौबत आई जो सुप्रीम कोर्ट के जजों को कहना पड़ा कि यह न कहा करें कि फलां जज सरकारपरस्त है और फलां नहीं!
“अदालत हो, एनजीओ हो, मीडिया हो, कारोबार हो, भाजपा हो, भाजपा का मार्गदर्शक मंडल हो, संघ परिवार हो या विपक्ष सबका अस्तित्व ढाई लोगों के ढाई कदमों वाले ‘न्यू इंडिया’ के तले बंधक है!
“आडवाणी, जोशी जैसे चेहरे रोते हुए तो मीडिया रेंगता हुआ। आडवाणी ने इमरजेंसी में मीडिया पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि इंदिरा गांधी ने झुकने के लिए कहा था मगर आप रेंगने लगे! वहीं आडवाणी आज खुद के, खुद की बनाई पार्टी और संघ परिवार या पूरे देश के रेंगने से भी अधिक बुरी दशा के बावजूद ऊफ तक नहीं निकाल पा रहे हैं।
“सोचें, क्या हाल है! हिंदू और गर्व से कहो हम हिंदू हैं (याद है आडवाणी का वह वक्त), उसका राष्ट्रवाद इतना हिजड़ा होगा यह अपन ने सपने में नहीं सोचा था। और यह मेरा निचोड़ है जो 40 साल से हिंदू की बात करता रहा है! मैं हिंदू राष्ट्रवादी रहा हूं। इसमें मैं ‘नया इंडिया’ का वह ख्याल लिए हुए था कि यदि लोकतंत्र ने लिबरल, सेकुलर नेहरूवादी धारा को मौका दिया है तो हिंदू हित की बात, दक्षिणपंथ, मुसलमान को धर्म के दड़बे से बाहर निकाल उन्हें आधुनिक बनवाने की धारा का भी सत्ता में स्थान बनना चाहिए।
“यह सब सोचते हुए कतई कल्पना नहीं की थी कि इससे नया इंडिया की बजाय मोदी इंडिया बनेगा और कथित हिंदू राष्ट्रवादी सवा सौ करोड़ लोगों की बुद्धि, पेट, स्वाभिमान, स्वतंत्रता, सामाजिक आर्थिक सुरक्षा को तुगलकी, भस्मासुरी प्रयोगशाला से गुलामी, खौफ के उस दौर में फिर हिंदुओं को पहुंचा देगा, जिससे 14 सौ काल की गुलामी के डीएनए जिंदा हो उठें। आडवाणी भी रोते हुए दिखलाई दें।
“आप सोच नहीं सकते हैं कि नरेंद्र मोदी, और उनके प्रधानमंत्री दफ्तर ने साढ़े तीन सालों में मीडिया को मारने, खत्म करने के लिए दिन-रात कैसे-कैसे उपाय किए हैं। एक-एक खबर को मॉनिटर करते हैं। मालिकों को बुला कर हड़काते हैं। धमकियां देते हैं।
“जैसे गली का दादा अपनी दादागिरी, तूती बनवाने के लिए दस तरह की तिकड़में सोचता है, उसी अंदाज में नरेंद्र मोदी और उनके प्रधानमंत्री दफ्तर ने भारत सरकार की विज्ञापन एजेंसी डीएवीपी के जरिए हर अखबार को परेशान किया ताकि खत्म हों या समर्पण हो। सैकड़ों टीवी चैनलों, अखबारों की इम्पैनलिंग बंद करवाई।
“इधर से नहीं तो उधर से और उधर से नहीं तो इधर के दस तरह के प्रपंचों में छोटे-छोटे प्रकाशकों-संपादकों पर यह साबित करने का शिकंजा कसा कि तुम लोग चोर हो। इसलिए तुम लोगों को जीने का अधिकार नहीं और यदि जिंदा रहना है तो बोलो जय हो मोदी! जय हो अमित शाह! जय हो अरूण जेटली!
“और इस बात पर सिर्फ मीडिया के संदर्भ में ही न विचार करें! लोकतंत्र की तमाम संस्थाओं को, लोगों को कथित ‘न्यू इंडिया’ में ऐसे ही हैंडल किया जा रहा है। ढाई लोगों की सत्ता के चश्मे में आडवाणी हों या हरिशंकर व्यास या सिर्दाथ वरदराजन, भाजपा का कोई मुख्यमंत्री या मोहन भागवत तक सब इसलिए एक जैसे हैं कि सभी ‘न्यू इंडिया’ की प्रयोगशाला में महज पात्र हैं, जिन्हें भेड़, चूहे के अलग-अलग परीक्षणों से ‘न्यू इंडिया’ लायक बनाना है। ...”
13 अक्टूबर, 2017