Monday, November 12, 2018

मायावती के 87 करोड़ (12 जनवरी, 2012)

पिछली सदी के नवें दशक में मायावती के सामान्य शुरुआती उत्थान को तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने ‘लोकतंत्र का चमत्कार’ बताया था। पर अपने देश में आजादी के चौसठ वर्ष बाद भी लोकतंत्र और राजशाही का अजब घालमेल देखा जा सकता है। अजब इसलिए कि हमारे देश में सभी प्रक्रियाएं लोकतांत्रिक हैं लेकिन उसको अंजाम देने वाले अधिकांश लोग अपनी सामंती मानसिकता को नहीं छोड़ पाए हैं। सामन्ती व्यवस्था के दो पहलू रहे हैं--शासक और शासित। राजशाही में इन दोनों ही पहलुओं की भूमिका बदलने की संभावना न्यूनतम थी, लेकिन इतना सुखद जरूर कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में इस भूमिका के बदलने की सम्भावना बनी रहती है। अनुसूचित जाति की पढ़ी-लिखी युवती मायावती आईएएस बनना चाहती थी--कांशीराम के सम्पर्क में आयीं तो उन्होंने मायावती को कहा कि राजनीति में आ जाओ कई आईएएस लाइन बना कर खड़े रहेंगे! मायावती के भी यह जच गई। काशीराम की बात उनके जीते जी सच भी साबित हो गई थी। अब खबर है कि पढ़े-लिखे सामान्य दलित परिवार से आईं मायावती के पास 87 करोड़ रुपये की घोषित संपत्ति है। हो सकता है कि वो जिस समुदाय से आयी हैं उस समुदाय के लोग भी सामंती मानसिकता के चलते यह सुनकर सुख का अनुभव करते हों कि उनकी नेता की हैसियत किसी राजा से या उच्च वर्ग के किसी बड़े जमींदार, सेठ, साहूकार से कम नहीं है। ऐसा है तभी उनके समर्थकों ने मायावती को इस हैसियत में पहुंचाया है। इस तरह की सामंती मानसिकता केवल दलितों में ही हो ऐसा नहीं हैं। प्रकृति और प्रतिक्रिया में कुछ परिवर्तनों के साथ ऐसी मानसिकता कमोबेश सभी वर्गों में मिल जायेंगी। ऐसा कहना तो हवा में बात करने जैसा हो सकता है कि गांधी जिंदा रहते तो वे इस मानसिकता को बदल देते--क्योंकि बहुत कुछ परिस्थितियों पर भी निर्भर करता हैै। लेकिन गांधी से प्रेरितों में भी इस मानसिकता को बदलने का गांधीय प्रयास करने वाला कोई नहीं हुआ!
-- दीपचंद सांखला
12 जनवरी, 2012

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