Monday, March 31, 2014

इच्छाशक्ति से क्या संभव नहीं

डॉ. बुलाकीदास कल्ला, डॉ. गोपाल जोशी, स्मृतिशेष नन्दलाल व्यास और महापौर भवानीशंकर शर्मा-ये चार नाम हैं जिनके इर्द-गिर्द पिछले दो-तीन दशक से शहर की राजनीति चल रही है। इनमें डॉ. कल्ला तो प्रदेश स्तरीय नेता हैं। नन्दू महाराज चूंकि अब रहे नहीं तो उनकी बात छोड़ देते हैं लेकिन उक्त उल्लेखित सभी नेताओं के घरों से आधा किलोमीटर की कम दूरी पर एक ऐसा क्षेत्र है जिसके बाशिन्दे पिछले दो वर्षों से ज्यादा समय से कीचड़ और गन्दे पानी के बीच अपना गुजर बसर कर रहे थे। नत्थूसर गेट, ईदगाह बारी और रघुनाथसर कुएं के बीच का यह क्षेत्र गन्दे पानी से इसलिए भरा रहता था क्योंकि इसकी निकासी के लिए नत्थूसर गेट के बाहर से होते हुए बेणीसर बारी की ओर जाने जाने वाला नाला अवरुद्ध हो गया था। चूंकि आजकल गोबर और कचरे का अधिकांश हिस्सा  उठाने की बजाय इनके निस्तारण का जरीया यह नाले-नालियां ही हैं, सो इनको अवरुद्ध होना ही था। कोढ़ में खाज ऊपर से ये कि उक्त नाले पर कई जगह अतिक्रमण हो गए, सफाई हो भी कैसे?
गुड़ी-गुड़ी और सजी-सजी राजनीति करने वाले उक्त उल्लेखित नेताओं के लिए अतिक्रमण हटा कर नाले को साफ करवाना चूहों की तरह बिल्ली के गले में घंटी बांधने से कम नहीं रहा। रही बात पीड़ितों की, इनके वोट तो इन्होंने इस सबके बावजूद दिसम्बर के चुनावों में झप ही लिए। पीड़ितों ने जिसको भी दिए, वोट तो डले ही हैं। मतदान के बहिष्कार या नोटा के सामूहिक उपयोग की कोई सूचना ध्यान में नहीं है। अलबत्ता विनायक ने इस समस्या को एक से अधिक बार चित्रों सहित उठाया था।
वहां के बाशिन्दे चाहते तो इन नेताओं से कम से कम चुनावों में तो जवाबतलबी कर ही सकते थे। यदि की भी तो मुखर नहीं थी या दाबाचींथी हो गई होगी। इसी क्षेत्र में प्रभावशालियों के शिक्षण संस्थान भी हैं जिनके विद्यार्थी पता नहीं किस रास्ते होकर इन तक पहुंचते थे। ऐसा कोई समाचार भी नहीं है कि पिछले विधानसभा चुनावों में दोनों ही बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों ने उक्त समस्या के समाधान का कोई पुख्ता आश्वासन दिया हो, अन्यथा चुनाव के बाद उनमें हरकत देखी जाती।
खैर, उक्त बात को आई-गई करना इसलिए उचित रहेगा कि उक्त नेताओं को तो इस शहर से प्यार है, कोई दृष्टि और इच्छाशक्ति अन्यथा उक्त तथाकथित प्रभावशाली नेताओं के पड़ोस में शहर की समस्याएं मुंह बाए खड़ी नहीं रहती। नई सरकार बनी, विधायक हैं भी उसी सरकार के, पर ड्राइंगरूम की राजनीति से अवकाश मिले तब ना कुछ हो। कहते हैं अपनी सरकार बनने के बाद शहर भाजपा अध्यक्ष नन्दकिशोर सोलंकी ने कुछ सक्रियता दिखानी शुरू की तो उक्त प्रभावित क्षेत्र के पार्षद परमानन्द ओझा, युवा भाजपाई नेता अविनाश व्यास के साथ जिला कलक्टर के पास पहुंचे। उन्हें उक्त समस्या की विकरालता से अवगत करवाया। समयबद्ध कार्ययोजना बनी और अतिरिक्त जिला कलक्टर (नगर) दुर्गेश बिस्सा को जिम्मेदारी सौंपी गई। बिस्सा ने अपनी प्रबल इच्छाशक्ति का प्रमाण देते हुए केवल लगभग सभी बाधाओं को दूर किया, जिसके चलते शहरी बसावट के एक बड़े हिस्से ने राहत की सांस ली। हालांकि कुछ जगह से जहां नाला अभी भी अवरुद्ध है वहां पपिंग का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि ये अवरोध भी हटेंगे और प्रशासन इसकी भी व्यवस्था करेगा कि इस नाले पर अतिक्रमण फिर से हो।
दो साल से ज्यादा समय से चली रही इस समस्या से निजात दिलाने की मुख्य जिम्मेदारी नगर विकास न्यास में मनोनीत जन-प्रतिनिधि की थी, न्यास अध्यक्ष अपने कार्यकाल में ऐसे ही कामों में लगे रहे कि डॉ. बी.डी. कल्ला के वोट बढ़ें। वे सफल हुए या असफल परिणाम सामने है। कल्ला ने यह काम करवाने की अपनी इच्छाशक्ति दिखाई और ही हाजी मकसूद ने अमल करने की। जनता ने दोनों को उनके ठिकाने लगा दिया। पर क्या अब यह माना जाए कि जनता की समस्याओं के समाधान इन नेताओं के बूते की बात नहीं रही, अफसर चाहें तो चुटकियों में कर देते हैं, दुर्गेश बिस्सा ने कर ही दिखाया है, अगर ऐसी धारणा बनती है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है। नेताओं को इच्छाशक्ति जुटानी होगी।

31 मार्च, 2014