Saturday, November 3, 2018

दिन महीने साल....(31 दिसंबर, 2011)

आज 31 दिसम्बर है यदि इसमें 2011 ना जोड़ें तो यह तारीख कोई बहुत उल्लेखनीय नहीं रह जाती है--तीन वर्ष लगातार 365वां दिन और चौथे अधिवर्ष (लीपईयर) का 366वां दिन 31 दिसम्बर होता ही है।
वैसे यह तारीखें, वार और साल समय की गणना के लिए बने हैं। समय-समय पर इनकी गणना में परिवर्तन भी होते रहे हैं। आज भी हो रहे हैं जैसे खबर है कि प्रशान्त महासागर स्थित दो देश समोआ और तोकेलाउ ने अपना 2011 का यह वर्ष 364 दिन का कर लिया। कहा जा रहा है कि उन्हें अपने पड़ोसियों से समय गणना की जुगलबन्दी के लिए ऐसा करना जरूरी था।
पिछली सदी के आखिरी दो दशकों में टीवी-अखबारों ने 21वीं सदी की इतनी धूम मचा रखी कि लगने लगा था कि 1 जनवरी, 2001 को पूरे ब्रह्माण्ड में कुछ अद्भुत घटित होगा। 1984 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो सारी योजनाओं में 21वीं सदी की उम्मीदों का उल्लेख इस तरह होने लगा कि जैसे कुछ तिलिस्म घटित होने वाला है। लेकिन 2 जनवरी 2001 के सूर्योदय के साथ ही वो उम्मीदे भ्रम में रूपान्तरित होती देखी गई और भ्रम भी ऐसा कि हर कोई 21वीं सदी के लेबल से चस्पा अपनी उम्मीदों को कुछ इस तरह भूलता देखा गया कि उसने कभी वो उम्मीदें की ही नहीं थी!
कुछ-कुछ वैसा ही या कहें कि उसका संक्षिप्त संस्करण हर वर्ष इन्हीं दिनों देखने को मिल जाता है। पिछले तीसेक वर्षों से तो इस भ्रम की खुमारी कुछ ज्यादा ही देखी जा सकती है। आर्थिक उदारीकरण से रोशन और बाजार से पोषित हमारे टीवी और अखबार केवल नये वर्ष को ही नहीं लगभग सभी त्योहारों को कुछ इस तरह से महत्त्व देने लगे हैं कि किसी भी तरीके से ही सही उनके पोषक यह बाजार परवान पर रहें।
मौसम साफ हो और आप एक ही स्थान से देखें तो 31 दिसम्बर के सूर्योदय से 1 जनवरी का सूर्योदय थोड़ा और उत्तर से होगा? बस यही और इतना ही खगोलीय अंतर है नये और पुराने साल में।
देखा जाय तो दिन, महीने, साल का भान रखने वाले या भान रखने को मजबूर देश की लगभग आधी ही आबादी है। बाकी की आधी आबादी को तो दिन, महीने, साल की गणना की न तो जरूरत है और ना ही उनकी कोई मजबूरी। उन्हें तो सूरज के उदय और अस्त या अस्त और उदय के बीच ही अपनी रोटी का जुगाड़ तथा थकान को उतारने की व्यवस्था करनी है। उनके लिए इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता की ईस्वी सन्, हिजरी सन्, विक्रम संवत्, वीर संवत् और शक संवत् कब शुरू होता है और कब खत्म होता है। गालिब के हवाले से कहें तो मन को बहलाने को यह ख्याल अच्छे हैं, बस इस मन को बहलाने का अवकाश और सामर्थ्य--दोनों आपके पास हों।
--दीपचंद सांखला
31 दिसम्बर, 2011

No comments: