Saturday, November 3, 2018

खान-मजदूरों के हित और सुरक्षा दोनों राम-भरोसे (29 दिसंबर, 2011)

समुचित सुरक्षा प्रबंधों और पर्याप्त प्रशिक्षण के अभाव में खानों में काम करने वाले मजदूर एक ओर आए दिन दुर्घटनाओं के शिकार होते रहते हैं वहीं उनके स्वास्थ्य के साथ निरंतर खिलवाड़ होता रहा है। नतीजतन या तो इन मजदूरों की हादसों में मौत अथवा सिलिकोसिस जैसी बीमारियों के कारण जवानी में ही उनके काम करने की क्षमता घटने से उन पर निर्भर परिजनों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाता है। खान मजदूर सुरक्षा अभियान के प्रबंध न्यासी राना सेनगुप्ता ने प्रेस वार्ता के दौरान प्रदेश की खानों और इनमें काम करने वाले मजदूरों की जो तसवीर पेश की है वह वास्तव में भयावह है। प्रदेश में वैध खानों के साथ ही अवैध खानें भी बड़ी संख्या में संचालित की जा रही हैं। अधिकांश खानों में सुरक्षा प्रबंध खान मालिकों की प्राथमिकता में नहीं आते। कार्यरत मजदूरों के रिकार्ड का भी ठीक तरह से संधारण नहीं होता। बड़ी बात है कि कम पढ़े-लिखे मजदूरों को नियम-कायदों की भी जानकारी नहीं होती। फलतः खान दुर्घटनाओं के अधिकांश मामले रिकार्ड में नहीं आ पाते। कहीं दुर्घटना पीड़ित मजदूर के साथी अथवा परिजन कुछ विरोध दर्ज करवाते भी हैं तो नाममात्र का मुआवजा देकर प्रबंधन अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। अधिकांश मजदूरों को यह पता ही नहीं होता कि मुआवजे के भी नियम बने हुए हैं जिनका वे लाभ उठा सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकार ने इन मजदूरों के लिए खान सुरक्षा विभाग बना रखा है लेकिन विभाग ज्यादातर मजूदरों तक पहुंचता ही नहीं। उधर अपनी रोजी कमाने में ही जिन्दगी गुजारने वाले खान मजदूर को इस विभाग के  अस्तित्व की ही जानकारी नहीं होती। विभाग भी खान सुरक्षा सप्ताह मनाकर अपने कर्तव्य का निर्वाह मान लेता है।
प्रदेश में 25 लाख मजदूर सीधे तौर पर खानों से जुड़े हैं। मजदूरों का इतना बड़ा तबका होते हुए भी इनके हित-संरक्षण के समुचित उपाय नहीं हुए। बीकानेर संभाग में भी खनन उद्योग महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। आए दिन इन खानों में दुर्घटनाएं होती रहती हैं। कभी-कभार ये मामले पुलिस तक पहुंचते हैं लेकिन हाल के वर्षों में किसी खान मालिक को सुरक्षा उपायों की खामियों के चलते दंडित करने का मामला सामने नहीं आया। खान मजदूर सुरक्षा अभियान तो मजदूरों को उनके अधिकारों के प्रति जाग्रत करने के काम में जुटा हुआ है ही, खान सुरक्षा विभाग की भी यह जिम्मेदारी है कि वह सुरक्षा सप्ताहों की औपचारिकता पूरी करने के बजाय खान मजदूरों की सुरक्षा के साथ-साथ उनके लिए सुरक्षित रोजगार को सुनिश्चित करने और काम की परिस्थितियों को अहानिकारक बनाने में ठोस भूमिका निभाए। दुर्घटना होने पर पीड़ित पक्ष को समुचित मुआवजा दिलाने की दिशा में भी कारगर कदम उठाए जाने चाहिए।
--दीपचंद सांखला
29 दिसम्बर, 2011

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