Friday, November 23, 2018

रेशमा और मानिक बच्छावत.(6 फरवरी, 2012)

यहां की हवाओं का साया
उस पर अब मंडराता है....
वह अपनी सरजमीं के लिए
छटपटाती है बार-बार
कोलकाता प्रवासी बीकानेरी परिवार में जन्मे कवि मानिक बच्छावत की पुस्तक ‘इस शहर के लोग’ के उर्दू संस्करण का कल लोकार्पण था। मूल हिन्दी पुस्तक का लोकार्पण यहीं हुआ था। उक्त कविता पंक्तियां इसी संग्रह की ‘रेशमा’ शीर्षक की कविता से है। रेशमा का जन्म बीकानेर रियासत की रतनगढ़ तहसील के लोहा गांव के बंजारा कबीले में हुआ था। बंटवारे के समय यह कबीला पाकिस्तान चला गया। इस कबीले की पहचान आज भी ‘बीकानेरिया’ से है। ‘हाय लम्बी जुदाई’ और ‘दमादम मस्त कलन्दर’ गीत जिन्होंने सुने हैं उन्हें रेशमा का परिचय देने की जरूरत नहीं है। मानिक बच्छावत भी अपने शहर में लगातार आते रहे हैं, साहित्य से और अखबारों से वास्ता रखने वालों के लिए भी मानिक बच्छावत अनजाने नहीं कहे जा सकते।
बात कल के आयोजन की है। आयोजन पुस्तक के विमोचन का था। बीकानेर में एक अरसे से देखा गया है कि इस तरह के अधिकांश साहित्यिक आयोजनों में उस पुस्तक की विधा पर बात कम और रचनासार पर ज्यादा होने लगी है। कल भी यही हुआ, बात मानिक बच्छावत की कविताओं पर कम, उन पात्रों पर ज्यादा हुई, जिन पात्रों को लेकर उन्होंने कविताएं लिखी है। सभी वक्ताओं ने उन पात्रों का ही जिक्र किया। इससे एक दिन पहले भी डॉ. आरडी सैनी के उपन्यास की चर्चा में लगभग यही हुआ। और यह भी कि जितने वक्ता होते हैं वे भी रचनासार को दुहराने में लगे रहते हैं। पता नहीं कि लगभग रोज होने वाले इन साहित्यिक आयोजनों में रचना विधा की कसौटी पर चर्चा कब होने लगेगी। कविता के बारे में जानने-समझने वाले गुणीजन बताते हैं कि इतना कुछ लिखा जा चुका है कि कविताओं में नया कहने को अब शायद ही कुछ बचा हो! किस तरह से कहा गया है, अब यही सब देखा जाता है।
मानिक बच्छावत बताते हैं कि उनका परिवार दो सौ साल पहले बीकानेर छोड़ चुका था, स्वयं बच्छावत का जन्म भी कोलकाता में ही हुआ, इसके बावजूद उक्त कविता पंक्तियों में रेशमा के माध्यम से मानिक स्वयं अपनी पीड़ा भी जाहिर करते लगते हैं। रेशमा के गाये गीत की पंक्तियों का उल्लेख यहां मौजूं होगा--
बिछड़े अभी तो हम
बस कल परसों
जिऊंगी मैं कैसे
इस हाल में बरसों
मौत न आई तेरी याद क्यों आई
हाय लम्बी जुदाई....
-- दीपचंद सांखला
6 फरवरी, 2012

No comments: