Thursday, October 12, 2023

अपने शहर से प्यार करने वाले जन-प्रतिनिधि महबूब अली

हम उस बीकानेर के बाशिन्दे हैं जहां यह अतिशयोक्ति प्रचलित है कि आप पीने को घी मांग लें, सहर्ष मिलेगा, पानी मांग लिया तो पिलाया तो जायेगा लेकिन हर्ष गायब हो जाएगा यानी पानी यहां का दुर्लभतम द्रव्य रहा है। चतुराई से इसे वापरने के तौर-तरीके बताने वाले नब्बे से ऊपर के चश्मदीद आज भी हैं—परात में बैठकर नहाना, नहाए पानी से कपड़े धोना और फिर उस पानी के उपयोग के भी किस्से हैं, वहीं सूखी मिट्टी से बरतन मांजने का यहां प्रचलन पानी अवेरने का ही अंग रहा है।

हमारे शहर की छवि बाहर कुछ ऐसी थी कि लोग पूछते, आप बिना पानी गुजर कैसे करते हैं, लेकिन यहां वैसा अभाव कभी महसूस नहीं हुआ। पिछली सदी के आठवें दशक में जलदाय विभाग परम्परागत जलस्रोतों के मामले में लापरवाह हो लिया था। पम्प लगे परम्परागत कुएं सूखने लगे या पम्प खराब रहने लगे, सार संभाल में लापरवाही होने लगी।

1977 में सूबे की जनता पार्टी सरकार में मात्र सवा दो वर्ष जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी और जन संपर्क राज्यमंत्री के तौर पर शासन में रहे शहर के आदर्श जन-प्रतिनिधि, विधायक महबूब अली भगीरथ बने और ना केवल परंपरागत कुओं को बोर करवाया बल्कि नहरी पानी को हुसंगसर से बीकानेर लाने के लिए योजना बनवाई। विभागीय योजना इतनी महंगी थी कि एक शहर के लिए उतना बजट देना सरकार के लिए संभव नहीं था।

अभावों से आए महबूब अली ने जुगाड़ू योजना बनाई और पूरे प्रदेश के स्टोरों में रखे रियासतकालीन लोहे के एक आकार के नाकारा पाइपों को मात्र ट्रांसपोर्टेशन के खर्चे पर बीकानेर मंगवाया। यह विभाग के अधिकारियों के गले नहीं उतरा, नकारात्मक बातें कीं, कहा इन्हें तो निकाला गया है—वापस कैसे लगेंगे। महबूबजी ने कहा—अंडरग्राउंड डालने योग्य नहीं हैं तो पाइप खुले में डाल दो, लिकेज कहीं है तो मरम्मत हो जाएंगे, शहर को पानी दो। 

प्रदेश से कई जगहों से लाए गये इन पाइपों को सीधे ही हुसंगसर से स्टेडियम की टंकी तक जगह-जगह उतरवाया ताकि दूबारा ढूवाई ना लगे, आपस में जोडऩे के लिए वैल्ड करवाया, कहीं लीक थे तो उन्हें वैल्डिंग से बंद करवाया। पानी फिल्टर की टैम्प्रेरी व्यवस्था की। शहर को पानी मिलने लगा। महबूबजी यहीं नहीं रुके, स्थाई व्यवस्था के लिए फिल्टर प्लांट और बीछवाल जलाशय की योजना बनाकर सरकार को दी, बजट मिलने में आना कानी हुई तो मुख्यमंत्री को इस्तीफा भेज दिया। 

सकपकाए मुख्यमंत्री भैंरोसिंह शेखावत ने महबूबजी को ढुंढ़वाया तो मिले नहीं। निदेशक, जनसंपर्क और बाद में मुख्यमंत्री के प्रेस अटेची रहे के. एल. कोचर को कहा महबूब को ढूंढ़कर लाओ। महबूबजी उन्हें एसएमएस अस्पताल के सामने लगी थड़ी पर खाना खाते मिले। महबूबजी अस्पताल मार्ग के बंगले में ही रहते थे। कोचरजी ने जैसे-तैसे मनाकर उन्हें मुख्यमंत्री के बंगले ले गए और उनकी पत्नी के सामने बताया कि ये कहां और कैसे मिले, पहले तो शेखावत की पत्नी ने वादा लिया कि कम से कम शाम का खाना मेरे यहां खाओगे, महबूबजी ने सरकार रही तब तक खाया भी। 

मुख्यमंत्री ने इस्तीफा फाड़ा और कहा वित्तमंत्री मानिकचन्द सुराना से कह कर रास्ता निकालेंगे। शेखावत ने व्यक्तिगत रुचि लेकर रास्ता निकाला और बजट पारित हुआ। बीछवाल जलाशय और फिल्टर प्लांट बनने की बड़ी खबर तब के राजस्थान पत्रिका में छपी थी। योजना पर काम शुरू हुआ। इस बीच जनता पार्टी की सरकार चली गई। शहर को बोर हुए रियासतकालीन कुंओं और अस्थायी फिल्टर व्यवस्था से राजस्थान नहर से पेयजल मिलने लगा। 

इसे कहते हैं भगीरथी प्रयास, निरर्थक श्रेय लेने वालों के लिए अब क्या कहें! छोडि़ए।

―दीपचन्द साँखला

12 अक्टूबर, 2023