Tuesday, November 20, 2018

मंत्रमुग्ध करने वाली प्रस्तुति (16 जनवरी, 2012)

व्याख्यान ने मंत्रमुग्ध कर दिया या इस तरह वह व्याख्यान श्रोताओं को अपने साथ बहा ले गया, इस तरह की टिप्पणी पर कवि-चिन्तक नन्दकिशोर आचार्य ने कहा कि यह तो व्याख्यान की तारीफ नहीं हुई। उनका मानना था कि यदि कोई व्याख्यान मंत्रमुग्ध करता है या अपने साथ बहा ले जाता है तो वह अच्छा कैसे हुआ? किसी भी व्याख्यान का प्रयोजन मुख्यतः विचार के लिए प्रेरित करना होता है न कि अपने कहे से सहमत करवाना। आचार्यजी की यह बात तब भी तर्कसंगत लगी थी और आज भी लगती है। लेकिन तब से अब तक मंत्रमुग्ध होने और बह जाने जैसे विशेषण अनुभूत नहीं हुए थे।
कल शाम परम्परा और राजस्थान संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित संगीत समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम में जब बांसुरीवादक रोनू मजूमदार की प्रस्तुति सुनी तो मंत्रमुग्ध होने या बहा ले जाये जाने की अनुभूति हुई। यह भी जाना कि इस तरह के जुमले विभिन्न कलारूपों के लिए ही बने हैं। बांसुरी जैसे लोकवाद्य की यह शास्त्रीय प्रस्तुति लगभग अद्भुत थी। यह अनुभव किसी एक का नहीं अधिकांश श्रोताओं का था और स्वयं रोनू मजूमदार का भी। स्वयं रोनू ने कहा कि इससे पहले भी दो प्रस्तुतियां वे बीकानेर में दे चुके हैं लेकिन ऐसी सभा का अहसास मुझे आज ही हुआ। एक से अधिक बार उन्होंने यह भी जताया कि श्रोता ऐसे हैं कि मंच छोड़ने की इच्छा ही नहीं हो रही। अद्भुत को लगभग कहने का संशय आप रोनू की प्रस्तुति में न मानें। आनन्दानुभूति में कोई खलल था तो वह व्यवस्था सम्बन्धी ही था। जैसे सभागार का ध्वनिरोधी (साउंड प्रूफ) ना होना या ध्वनि विस्तारक यंत्र (साउंड सिस्टम) का बहुत दक्ष न होना या फिर सुनने वाले की श्रवणता ही पूर्ण न होना भी बहुत धीमे स्वरों को ग्रहण करने में वहां बाधा बने थे।
शहर में इन दिनों बहुत सभागार बने हुए हैं और बन भी रहे होंगे। उन सभी के नियामकों से अनुरोध है कि वे अपने सभागारों को कम से कम साउंड प्रूफ तो बनायें ही। क्योंकि आजकल कोई भी आयोजन बिना ध्वनि के सम्पन्न ही नहीं होते हैं।
दूसरा निवेदन इस कार्यक्रम के आयोजकों से कि अपना यह शहर अभी शास्त्रीय आयोजनों के लिए दीक्षित होने की प्रक्रिया में है। अतः लगातार दो-दो शास्त्रीय प्रस्तुतियों से बचा जाना चाहिए, इस तरह के आयोजनों में न प्रस्तोता के साथ न्याय हो पाता है और ना ही श्रोताओं के साथ। कल की दूसरी प्रस्तुति शास्त्रीय गायक राजेन्द्र वैष्णव की थी, उस प्रस्तुति के साथ लगभग ऐसा ही हुआ। यद्यपि वैष्णव ने ऐसे ही अहसासों के साथ अपनी उक्त प्रस्तुति को चुनौतीपूर्ण मान लिया था!

अकादमी का प्रतीकचिह्न
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के प्रतीकचिह्न में वायलिन की आकृति है। हालांकि किसी भी शास्त्रीय वाद्य पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए फिर यह लोगो या प्रतीकचिह्न किसी संस्थान की एक दृष्टि या पहचान होते हैं। यदि राजस्थान की संगीत नाटक अकादमी के लोगो में कमायचा या सारंगी या अन्य कोई स्थानीय वाद्य होता तो ऐसे लोगो या प्रतीकचिह्नों की सार्थकता को बल मिलता!
-- दीपचंद सांखला
16 जनवरी, 2012


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