नरेन्द्र मोदी इन दिनों अपने गैर-तथ्यात्मक बयानों को लेकर सुर्खीयों में हैं। दरअसल यह समस्या केवल नरेन्द्र मोदी की नहीं है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से शिक्षित प्रत्येक जन की है। उनके यहां आजादी का इतिहास मुखजबानी चलता है जिसे उनके यहां बहुत ही भरोसे के साथ कहा और सुना जाता रहा है। संघ की यह समस्या इसलिए है कि देश की आजादी के इतिहास में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। इसीलिए नरेन्द्र मोदी सरदार वल्लभ भाई पटेल की विरुदावली यह जानते हुए गाने लगे हैं कि पटेल संघ की असलियत ना केवल जानते-समझते थे बल्कि पटेल के कहे और लिखे का दस्तावेजीकरण भी मिलता है।
मोदी ने कहा कि पटेल यदि प्रथम प्रधानमंत्री होते तो देश की तसवीर दूसरी होती-यह बात संघ के लोग लम्बे समय से कहते रहे हैं। बिना यह जाने कि आजाद हुए लोकतान्त्रिक देश का पहला प्रधानमंत्री वही हो सकता था जिसकी पहचान पूरे देश में होती और आजादी के अधिकांश सेेनानियों में जिसकी स्वीकार्यता होती। पटेल के प्रति पूरे सम्मान के बावजूद यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि देशव्यापी ऐसी पहचान वाले और सर्वस्वीकार्य नेता मोहनदास गांधी के बाद नेहरू ही थे। पटेल की देशव्यापी पहचान देश के प्रथम गृहमंत्री रहते उनके द्वारा बंटवारे के बाद हुए साम्प्रदायिक दंगों से निबटना और पांच सौ से ज्यादा रियासतों के विलीनीकरण को कुशलता से सम्पन्न करवाने के बाद ही बनी थी। आजादी के समय पटेल से बड़े और समकक्षी व्यक्तित्वों की एक लम्बी फेहरिस्त मिलती है, यथा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, के कामराज, सी राजगोपालाचारी, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे कई नाम गिनवाए जा सकते हैं।
संघ के लोग ना केवल नेहरू बल्कि गांधी के लिए भी ढेरों गैर-तथ्यात्मक बातों को कहने-सुनने में संकोच नहीं करते। उनकी जीवट की दाद इसलिए भी दी जा सकती है कि पिछले अस्सी वर्षों से गांधी को भारतीय मानस पटल से विस्थापित करने की सारी कोशिशों में पूरी तरह से असफल होने के बावजूद ये आज भी लगे हुए हैं। बल्कि, गांधी की प्रतिष्ठा और स्वीकार्यता विश्व में लगातार बढ़ती ही गई है, और स्वयंसेवक संघ को भी गांधी को प्रातःस्मरणीयों की सूची में मन-मसोस कर शामिल करना पड़ा है। मोेदी के लगातार दिए जाने वाले ऐसे बयानों पर भाजपा के केन्द्रीय नेताओं और प्रवक्ताओं की भाव-भंगिमाएं इन दिनों मीडिया के सामने देखने वाली होती है।
यही वजह है कि मोदी आमसभाओं में बड़े आत्मविश्वास से तक्षशिला को बिहार में बता देते हैं, सिकन्दर को बिहार में बहने वाली गंगा तक पहुंचा देते हैं जो सतलुज को ही पार नहीं कर सका था और मौर्यवंश के चन्द्रगुप्त को गुप्तवंश का बता देते हैं—मोदी की दाद इसलिए तो दी ही जा सकती है कि उनकी पोषक विचारधारा के सबसे बड़े आलोचक सरदार वल्लभ भाई पटेल की दुनिया में सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित करवाने जा रहे हैं। भारतीयता की बात करने वाले संघ और उनके विभिन्न संस्करण हमेशा की तरह पटेल के इस स्मारक को नाम देने में भी पश्चिमापेक्षी दिखे, स्टेच्यू ऑफ यूनिटी--स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी की तर्ज पर। उन्हें नया कोई नाम ना भी सूझा हो पर क्या हजारों वर्षों की भारतीय और सनातन परम्परा से भी वे कोई नाम हासिल नहीं कर पाए! किसी के जैसे दिखने की, होने की और उससे बेहतर या ऊपर होने की आकांक्षा का एक कारण हीनभावना भी माना जाता है, जो ओढ़े हुए आत्मविश्वास से खत्म नहीं होती बल्कि इसी तरह उजागर होती है।
31 अक्टूबर, 2013