Thursday, September 24, 2020

बीकानेर के असल गांधीवादी : सोहनलाल मोदी का स्मरण

 खादी पहनने, गांधी का फोटो लगाने, गांधी की बात करने और गांधी के नाम पर राजनीति करने भर से कोई गांधीवादी नहीं हो जाता। गांधीवादी होने के लिए शत-प्रतिशत ना सही, अपने जीवन में उन्हें कुछ तो अपनाना ही होगा। स्वयं गांधी से जब किसी ने पूछा की भारतीयों के लिए आपका क्या सन्देश है, तो गांधी ने कहा 'मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है' मतलब यही कि मेरी दिनचर्या क्या है, जीवनयापन कैसे करता हूं। मेरे द्वारा अमल किया हुआ ही अनुकरणीय है।

आजादी के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन के चरम समय में बीकानेर रियासत में भी प्रजा परिषद् के माध्यम से स्थानीय लोगों ने गांधी के आन्दोलन से प्रेरणा ली और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर सक्रिय हुए। वरिष्ठों में स्वामी गोपालदास, बाबू मुक्ताप्रसाद, रघुवरदयाल गोयल, वैद्य मघाराम, गंगाप्रसाद कौशिक, लक्ष्मीदास स्वामी, दाऊदयाल आचार्य, सुरेन्द्रकुमार शर्मा, हीरालाल शर्मा और रामनारायण शर्मा आदि वे लोग थे जिन्होंने राजशाही की जेलों में यातनाएं सही और देश निकाले भुगते। इन दो पीढिय़ों से प्रेरित होकर जो नवयुवक जुड़े उनमें मूलचन्द पारीक, रामरतन कोचर, सोहनलाल मोदी आदि जैसे अनेक थे। आजादी से कुछ पहले सक्रिय हुए मोदी का जन्म 1924 में ननिहाल देशनोक कस्बे में हुआ। दस वर्ष की उम्र में माता के निधन की वजह से उनका बचपन ननिहाल में ही बीता। बचपन में अधिकांशत: अस्वस्थ रहने  से स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं कर सके। 'सोहनलाल पढ़ाई की वजह से बीमार रहता है' इस वहम में पिता सातवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छुड़वा कर अपने पास बीकानेर ले आए और अपने व्यवसाय हलवाईगिरी में लगा दिया।

लेकिन पढऩे में रुचि वाले सोहनलाल ने वाचनालय-पुस्तकालय की सेवाएं ली और पाठ्येेत्तर ज्ञानार्जन जारी रखा। इसी दौरान वे रघुवर दयाल गोईल के सम्पर्क में आये और प्रजा परिषद से जुड़ गये। तब तक रियासती शासकों के यह समझ तो गया था कि देश आजाद होने वाला है, राज जब अंग्रेजों का नहीं रहना तो सामंतशाही की कितने' दिन चलेगी। गुलामी की संध्या का अंधेरा ज्यों-ज्यों बढऩे लगा त्यों-त्यों राजा नरम पड़ते गये। लेकिन फिर भी कुछ--कुछ कुचमादी का रस्ता वे निकाल ही लेते। 1946 में बीकानेर में साम्प्रदायिक दंगा हुआ, राज ने दंगा भड़काने का आरोप प्रजा परिषद् पर जड़ा और सोहनलाल मोदी सहित कुछ कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। नाजिम के सामने पेशी हुई, माफी मांगने को कहा, मोदी ने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया। जेल में उन्हें राजनीतिक कैदियों के साथ रखने के बजाय, अपराधियों के साथ रखा तो मोदी ने भूख हड़ताल कर दी। इस पर राज ने अकेले उन्हें काल कोठरी भिजवा दिया। मोदी ना डरे और ना झुके। चार दिन बाद उन्हें बिना शर्त रिहा कर दिया गया। 

रघुवर दयाल गोईल को जब देश निकाला दिया गया तब उनके द्वारा संचालित वाचनालय बन्द कर दिया गया। मोदी ने उसे खोला तो फिर जेल भेज दिया। रियासत काल में प्रसिद्ध 'दुधवा-खारा' किसान आन्दोलन हुआ। उसके समर्थन में मोदी ने बीकानेर में जुलूस निकाला, तब भी गिरफ्तार हुए। रियायसतकालीन पुलिस सुपरिंटेण्डेंट जसवन्तसिंह ने सोहनलाल मोदी के पिता को व्यक्तिश: बुलाकर कहा कि 'बेटे को समझाओ कि राज की खिलाफत छोड़ दे दें।' पिता ने टका-सा जवाब दिया कि 'वह खुद समझदार है, और मुझे नहीं लगता कि वह कुछ गलत कर रहा है।'

2 अक्टूबर, 1946 को स्थानीय हरिजन बस्ती में मोदी के नेतृत्व में सफाई अभियान चलाया गया तो राज की शह पर उनके जाति समाज ने उन्हें न्यात बाहर कर दिया। बावजूद इन सब के मोदी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से सक्रिय रहे। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया। रियासतों का विलय बाद में हुआ लेकिन बीकानेर के स्वतंत्रता सेनानियों ने पुष्करणा स्टेडियम में उत्सव मनाया और तिरंगा फहराया, जिनमें मोदी भी शामिल थे।

आजादी मिलने के बाद स्वतंत्रता के अन्य सेनानियों में कुछ तो वृद्धावस्था की वजह और कुछ मिशन पूरा मान निष्क्रय हो गये, लेकिन मोदी उनमें नहीं थे। उन्हें लगा कि गांधी के कहे अनुसार असली काम तो अब करना है। 1948 में लक्ष्मीनाथ मन्दिर में हरिजन प्रवेश की मांग को लेकर हरिजनों में काम करने वाले छोटूलाल व्यास भूख हड़ताल पर बैठे तो भूख हड़ताल पर साथ बैठने वालों में किशन गोपाल सेवग उर्फ गुटड़ महाराज, चिरंजीलाल सोनी और सोहनलाल मोदी भी थे। 29 दिन चले इस सत्याग्रह की सूचना जब सी. राजगोपालचारी को हुई तो उन्होंने विनोबा भावे को बीकानेर भेजा। तब बीकानेर आए विनोबा ने यह कह कर अनशन तुड़वाया कि जिस मन्दिर में हरिजनों का प्रवेश नहीं, उस मन्दिर में हमें भी नहीं जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व छोटूलल व्यास लक्ष्मीनाथ मन्दिर दर्शन करने नियमित जाते थे।

इस बीच मोदी ने वामपंथी साहित्य का अध्ययन भी किया और कुछ रुझान उनका वामपंथ की ओर भी हुआ लेकिन जल्दी वे गांधी की तरफ लौट आये। विनोबा भावे के भूदान यज्ञ से प्रभावित होकर भूदान आन्दोलन में शामिल हुए। 1954 में अजमेर में आयोजित भूदान सम्मेलन के अवसर पर आयोजित पदयात्राओं में चूरू से झुंझुनूं तक की पदयात्रा में शामिल हुए मोदी। बेबाक इतने थे कि यात्रा के दौरान व्यवस्था संबंधी शिकायत लेकर विनोबा तक पहुंच गये और कहा कि यात्रा का नेतृत्व करने वाले नेताओं का निवास सामान्य कार्यकर्ताओं के निवास से अलग होगा तो नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच संवाद की गुंजाइश कम होगी, ऐसे में कार्यकर्ता प्रशिक्षित कैसे होंगे। इसके बाद के पड़ावों में नेतृत्व करने वालों की रहने की व्यवस्था सामान्य कार्यकर्ताओं के साथ कर दी गई।

दूसरा प्रश्न उन्होंने विनोबा से यह किया कि आपकी कल्पना का समाज बनने में कितने वर्ष लग जाएंगे। विनोबा का उत्तर था कि 'पांच सौ वर्षों में भी वैसा समाज बना तो सन्तोष की बात होगी।' अपने पैतृक व्यवसाय में हाथ बंटाने के साथ-साथ मोदी तब 'भूदान-यज्ञ' और 'ग्राम-राज' जैसी पत्रिकाओं के नियमित पाठक रहे। सर्वोदय विचार से वाकिफ हुए। जब लगा कि सर्वोदय विचार व्यावहारिक है तो जयप्रकाश नारायण के साथ सक्रिय हो लिए।

मोदी रघुवर दयाल गोईल द्वारा स्थापित खादी मन्दिर से जुड़े और 1960 से 1972 तक संस्था के साथ पूरी तन्मयता से काम किया और खादी ग्रामोद्योग के असली भाव से गांवों के चहुंमुखी विकास के लिए सक्रिय रहे। यहां तक कि अकाल के समय संस्था के माध्यम से अकालग्रस्त क्षेत्रों में काम भी किया। दिन में अपनी पैतृक दुकान पर और शाम के बाद देर रात को संस्था के मंत्री पद के दायित्व को बिना किसी मानदेय के मुस्तैदी से निभाया। उनकी कर्मठता के चलते ही प्रदेश के अन्य कस्बों और शहरों की उन खादी संस्थाओं में जान फूंकने का दायित्व भी मोदी को दे दिया जाता जिसे वे अच्छे से निभाते और निष्क्रिय संस्थाओं को सक्रिय करने में लग जाते।

ग्राम-दान और ग्राम-स्वराज्य के काम में भी भूमिका का निर्वहन किया। उनके काम को देखकर गोकुलभाई भट्ट ने ग्राम स्वराज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिय़ा से बात की। बीकानेर में गांधी-विनोबा विचार के फैलाव को देखते हुए जिले को ग्राम स्वराज्य का रोल-मॉडल बनाने का प्रस्ताव दिया। मुख्यमंत्री ने जब कहा कि पंच-सरपंच इसके लिए तैयार नहीं होंगे। इस पर मोदी 120 सहमत पंच-सरपंचों को सुखाडिय़ा के पास ले गये। मुख्यमंत्री तैयार हो गये और विधानसभा में बीकानेर में ग्राम स्वराज्य का प्रस्ताव ले आये। काम शुरू हो गया। डॉ. छगन मोहता के प्रस्ताव पर गांवों के समान्तर नगर स्वराज्य अभियान पर काम शुरू हुआ। महबूब अली सक्रिय हुए और शहर में इसके लिए नुक्कड़ सभाएं हुईं।

ग्राम स्वराज्य के इस अनुष्ठान के लिए तय यह हुआ था कि इसके कार्यकर्ताओं के मानदेय का भार क्षेत्र की खादी संस्थाएं उठायेंगी। कुछ दिनों बाद स्थानीय खादी संस्थाओं ने इस दायित्व को लेने से इनकार कर दिया। मोदी के लिए यह घोर निराशा का समय था। इस तरह ग्राम-स्वराज्य का वह प्रयोग होते-होते रह गया। मोदी ने 1972 में खादी मन्दिर से त्यागपत्र दे दिया और मन में तय किया खुद अपने साधन खड़ा करेंगे और ग्राम स्वराज्य के काम को आगे बढ़ायेंगे। इसके लिए उन्होंने 'क्षेत्रीय समग्र लोक विकास संघ' की स्थापना की।

इस बीच मोदी विनोबा के भूदान आन्दोलन में भी लगातार सक्रिय रहे। बीकानेर के पूर्व महाराजा डॉ. करणीसिंह के अनुज अमरसिंह से छतरगढ़ के वीरान और निर्जन रेत के टीलों वाली डेढ़ लाख बीघा भूमि दान करवाई और उसका विकास किया। अपने प्रयासों से उसका बड़ा हिस्सा नहरी सीचिंत क्षेत्र में शामिल करवाया। सिंचित भूमि को आवंटित करवा कर छह हजार भूमिहीन परिवारों को बसाया। 

राजस्थान गो-सेवा संघ को संभालते हुए उसको सक्रिय किया। छतरगढ़ की भूदान-भूमि में बड़ा भू-खण्ड गो-सेवा संघ के लिए आवंटित करवाया, घास उगाने पर काम किया, गो-शाला विकसित की। कार्यकर्ताओं के रहने और नियमित प्रशिक्षण के लिए आश्रमनुमा परिसर विकसित किया।

1986-87 में पश्चिमी राजस्थान में भीषण अकाल पड़ा। बिना चारे के गोवंश मर रहा था। शासन-प्रशासन के हाथ-पांव फूल रहे थे। ऐसे में मोदी मुख्यमंत्री से मिले और बताया कि जैसलमेर की पाकिस्तान लगती सीमा पर लगभग एक करोड़ क्विंटल सीवण घास उगी खड़ी है। सरकार चाहे तो कटवाकर पशुधन के लिए राहत बांट सकती है। सरकार ने जैसलमेर कलक्टर से पता करवाया तो कलक्टर ने दफ्तर में बैठे ही कह दिया ऐसा कुछ नहीं है। हंसी होने पर मोदी ने सरकार से कहा मैं जैसलमेर पहुंचता हूं, कलक्टर से कहें मेरे साथ चलें-मैं बताऊंगा कहां है सीवण घास। कलक्टर को साथ लेकर गये, जो कहा वहां वही था, घास का समन्दर लह-लहा रहा था। लेकिन उस रेतीले समन्दर में कलक्टर के लिए जब पहुंचना ही भारी हो रहा था तो उसे कटवा कर परिवहन कैसे करवाते। कलक्टर ने इसके लिए असमर्थता जता दी। मोदी ने कहा धन उपलब्ध करवाओ, मैं संभव करवाता हूं। प्रशासन इस पर तैयार नहीं हुआ। मोदी ने अपने स्तर पर जयमलसर के सेठ रामनारायण राठी को तैयार किया। उन्होंने तब 10 लाख रुपये का अनुदान दिया और 11 लाख रुपये ऋण के तौर पर दिये। मोदी बाड़मेर से किराये के 150 ट्रैक्टर और 700 मजदूर लाये और सींवण को कटवा कर सड़क के किनारे ढिग लगवा दिये। प्रशासन से कहा घास तैयार है, भुगतान करें और और उठवा लें। इस तरह मोदी ने उस भीषण अकाल में पश्चिमी राजस्थान के लाखों पशुधन को मौत के मुंह से बचाया।

जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन से भी वे जुड़े। 1974 में जेपी को बीकानेर बुलवाया और यहां आन्दोलन को चेतन किया। आपातकाल लगा तो सरकार ने उन्हें पूरे 19 माह जेल में रखा। इस सब के बीच राजस्थान गो-सेवा संघ के पदाधिकारियों ने उन पर आर्थिक अनियमितताओं के आरोप लगवा कर अध्यक्ष पद से हटा दिया। लेकिन मोदीजी अड़ गये जांच करवाई, जांच में लगे सभी आक्षेप निराधार पाये गये। गो-सेवा संघ ही क्यों, जिस भी संस्था से जुड़े और जी-जान से काम किया। लेकिन सभी संस्थाओं ने मोदी को ना केवल निराश किया बल्कि कुछ ने अपमानित भी किया। मोदी के कर्मक्षेत्र के बारे में कहने को और भी बहुत कुछ है। 

इन सबके चलते वृद्ध होते मोदी निराश हो लिए। असमय पुत्र और पत्नी की मृत्यु से और भी टूट गये। पैतृक काम में भारी घाटा लगा, व्यक्तिगत कर्जों में दबे। लेकिन पीडि़त मानवता के लिए काम करने की उनकी इच्छा हमेशा बनी रही। हृदयघात हुआ, बीमार रहे और 3 नवम्बर, 2002 को 76 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को विदा कह गये।

यह लिखने में कोई संकोच नहीं है कि जनता के लिए आजीवन सक्रिय रहे सच्चे और कर्मठ गांधीवादी सोहनलाल मोदी को जो मान दिया जाना था, बीकानेर ने नहीं दिया। इसे अपनी कृतघ्नता मानने में कोई संकोच नहीं है।

दीपचन्द सांखला

24 नवम्बर, 2020