Tuesday, November 20, 2018

रामेश्वर डूडी की संजीदगी (6 जनवरी, 2012)

नोखावासियों और नोखा से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग का उपयोग करने वालों के लिए यह कम सुकुन की बात नहीं है कि रामेश्वर डूडी द्वारा घोषित महापड़ाव का पटाक्षेप मात्र बत्तीस घंटे में ही हो गया। गतिरोध तोड़ने में प्रशासन, मध्यस्थ बने नेता और स्वयं रामेश्वर डूडी की समझदारी ही काम आई। महापड़ाव की शुरुआत लगभग छह घंटे की भाषणबाजी से हुई। जिसमें सबसे लम्बा उद्बोधन स्वयं रामेश्वर डूडी का ही था। इस उद्बोधन में स्थानीय विधायक और संसदीय सचिव कन्हैयालाल झंवर के अलावा स्थानीय प्रशासन को सर्वाधिक भुण्डाया था।
डूडी की चौतीस सूत्री मांगों में जो अहम थी उन पर स्थानीय प्रशासन महज आश्वासन ही दे पाया है। डूडी को शायद यह अहसास हो गया था कि जो मुद्दे वे उठा रहे हैं वो इतने बड़े नहीं हैं कि उनके लिए महापड़ाव की नौबत आये। वो भी अपनी ही पार्टी की सरकार के प्रशासनिक अमले के खिलाफ! तभी मात्र स्थानीय प्रशासन के आश्वासनों पर वो गतिरोध तोड़ने को राजी हो गये। वैसे भी जिन्होंने इस महापड़ाव को देखा उनका मानना है कि इस महापड़ाव के प्रति लोगों का उत्साह डूडी की उम्मीदों से मात्र दस प्रतिशत भी नहीं था! जैसी संजीदगी डूडी ने महापड़ाव खत्म करने में दिखाई वैसी ही संजीदगी की उम्मीद अब उनके हर कदम से जाती है अन्यथा उन्हें फिर ऐसे ही अन्य कदमों पर बैकफुट होना पड़ सकता है।
-- दीपचंद सांखला
06 जनवरी, 2012

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