Saturday, November 3, 2018

ऐसे बयानों के मानी (27 दिसंबर, 2011)

डॉक्टरों की हड़ताल पर मुख्यमंत्री का बयान आया है जिसमें वे कह रहे हैं कि ‘जनता ने कानून हाथ में लिया तो डॉक्टरों का घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि डॉक्टरों की हड़ताल से कानून व्यवस्था बिगड़ने की पूरी आशंका है। इन बयानों से गहलोत की खीज जाहिर हो रही है। वे जो आशंका जाहिर कर रहे हैं उसके लिए आम-अवाम में एक अलग तरह के आवेश की जरूरत होती है। अगर उस तरह का आवेश जनता में होता तो केवल डॉक्टरों के खिलाफ ही क्यों फिर जहां कहीं भी कुछ गलत हो रहा दिखता, वो अपनी प्रतिक्रिया देती। तब गहलोत का यह बयान सच भी हो सकता है जिसमें उन्होंने कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंकाई धमकी दी। सच हुई आशंक खतरनाक भी हो सकती है।
मुख्यमंत्री के उक्त बयानों का एक मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि वे जनता को उकसा रहे हैं कि आप ऐसा करो--अगर उनकी यही मंशा है तो वो और भी खतरनाक है।
उक्त बयान सुन कर एक घटना जरूर याद आ गई जो शुद्ध उपहास था। कृपया इसे मात्र योग ही मानें कि एक खीज भरे बयान पर उपहास की घटना याद आई है। 1977 के विधानसभा चुनावों की बात है--तब बीकानेर से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का साहस गोकुलप्रसाद पुरोहित ने दिखलाया था। साहस इसलिए कि जैसा माहौल था उसमें कांग्रेस उम्मीदवार की हार तय थी। रतन बिहारी पार्क में कांग्रेस की चुनावी सभा को संजय गांधी को संबोधित करना था--जैसा कि होता है उनके आने में लगातार देर हो रही थी। पहले से लगभग उखड़ी-सी आमसभा और उखड़ने को थी--वक्ता हांफने लगे थे। तभी खुद गोकुलप्रसाद खड़े हुए, माइक सम्हाला और उन्होंने अपनी चिर-परिचित व्यंग्य और उपहास की भाषा का सहारा लिया। जनता पार्टी के किसी नेता के एक बयान का बहाना बनाया जिसमें कहा गया था कि कांग्रेसियों से वे अब सड़कों पर निपटेंगे। गोकुलप्रसाद ने इस बयान के आखिरी हिस्से--जिसमें सड़कों पर निपटने की बात कही गई--का उल्लेख करते हुए जवाब दिया कि अगर वे सड़कों पर गंदगी करेंगे तो जनता से वह पिटेंगे भी। पाठक जानते हैं कि इस निपटना शब्द का अर्थ फैसला करने के अलावा एक और भी होता है--शौच से निवृत्त होना।
गोकुलप्रसाद की 1967 के चुनावों की आमसभाओं में ऐसे ठठ्ठे और उपहास आम हुआ करते थे और अवाम से इस पर दाद भी मिलती थी लेकिन 1977 की उस सभा में अवाम का उत्साह नदारद था! गोकुलजी का वो ठठ्ठा फिस्स हो गया। देखना है कि गहलोत के कल के उक्त बयान को अवाम किस तरह लेगी।
--दीपचंद सांखला
27 दिसम्बर, 2011

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