Saturday, November 10, 2018

फिर फिर रेल फाटक (5 जनवरी, 2012)

कोटगेट के पास स्थित रेलवे फाटकों के लिए फिर कवायद शुरू हो गई है। इसे आमजन को बहलाना कहें या स्थानीय प्रशासन की आमजन को इस समस्या से निजात दिलाने की हूक, ‘समझना’ मुश्किल है। वैसे यदि उक्त दोनों ही कारणों में से कोई सा भी एक हो तो क्या फर्क पड़ने वाला है। स्थानीय प्रशासन इसके अलावा कर भी क्या सकता है। बीकानेर की अवाम को बरसों पहले थमाई गई बाइपास की लोलीपोप लगातार चूसे जाने के बाद भी खत्म नहीं हो रही है। अब तो इस बाइपास के छलावे को कुत्ते की हड्डी कहना ज्यादा सही जान पड़ता है। जिस प्रकार आवारा घूमते मिली किसी हड्डी को चबाते-चबाते कुत्ता खुद के मुँह को इस भ्रम में लहूलुहान करके कि वह खून उस हड्डी से प्राप्त हो रहा है, लगातार उसे ही चबाता रहता है, ठीक उसी तरह बीकानेर की भोली अवाम इस रेल बाइपास के नाम पर लगातार अपना ही नुकसान करती जा रही है।
दरअसल कोटगेट स्थित दोनों रेलवे फाटकों के चलते क्षेत्र की यातायात समस्या पर व्यापक और गहराई से विचार किया जाय तो इसका समाधान पूर्व में बनी योजना के अनुसार एलिवेटेड रोड ही है। 26 अगस्त 2011 की अपनी बात में इसे तर्कपूर्ण और तथ्यात्मक ढंग से बताया था।
कल दैनिक भास्कर की खबर पर पहल कर जब रेल और न्यास के अधिकारियों ने फिर बातचीत की तो न केवल कोटगेट पर अन्डरब्रिज को व्यावहारिक बताया बल्कि न्यास अभियन्ता ने बारिश के पानी को पंप से निकालने का समाधान भी बताया। ऐसे समाधानों को पढ़ कर मुस्कुराने के सिवा कुछ भी नहीं किया सकता। सावन का इंतजार ना करना पड़े और प्रकृति जोरदार मावठ के माध्यम से शहर पर मेहरबान हो जाये तो न्यास और रेल दोनों ही विभागों को कोटगेट के इन दोनों ही फाटकों से गुजरने वाले पानी को मापने की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। अंडरब्रिज से पानी की निकासी की व्यवस्था तो तब करनी पड़ेगी जब वो बनेगा!
-- दीपचंद सांखला
05 जनवरी, 2012

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