देश में कांग्रेस नेतृत्व में सरकार, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार। बीकानेर के जिलाप्रमुख रामेश्वर डूडी भी कांग्रेस के। डूडी हैं कांग्रेस के लेकिन उनके प्रेरणा-स्रोत भाजपा के कर्नल बैंसला और तीसरे मोर्चे की जुगत भिड़ाने में लगे डॉ. किरोड़ीलाल मीणा लग रहे हैं।
डूडी पिछले एक सप्ताह से अपने जिले के सुदूर गांवों और पड़ोसी जिलों से अपने महापड़ाव में भीड़ जुटाने की जुगत में लगे हैं। अपनी पार्टी की ही सरकार से अपनी मांगें मनवाने को डूडी आज से नोखा के तहसील रोड तिराहे को महापड़ाव से आबाद करेंगे। पढ़ने को तो उनकी 34 मांगें हैं लेकिन उनके असल राग से राजनीति के सभी रसिक वाकिफ हैं। लम्बे समय से डूडी के भाजपा में जाने के चर्चे आम हैं, बीच में सीपी जोशी की थाप से कुछ सहमें हों तो पता नहीं लेकिन दबी जबान से लोग कहने लगे हैं कि ‘जांवती रा बाजा है’।
जिले के पिछले राजनीतिक समय पर नजर डालें तो डूडी ने शानदार पारी खेली है। पिछली सदी के नवें दशक के लगभग बीच से एनएसयूआई से अपनी शौकिया राजनीति शुरू करने वाले डूडी के लिए दुर्योगों में भी संयोग बनते चले गये! पिता की साख और जमे जमाए धंधे के बीच अचानक पिता के चले जाने से हुए छतरभंग से आमजन में उपजी सहानुभूति तथा व्यापार और राजनीति की एक-दूसरे के पोषण की शानदार जुगलबंदी के चलते डूडी ने व्यवसाय और राजनीति में वो सब हासिल किया जिन्हें हासिल करना अधिकांश के लिए दूर की कोड़ी होता है। कैबत है कि अनुकूलताएं यदि लगातार बनी रहती है तो इसके दो परिणाम हो सकते हैं। एक तो यह कि उसे दुनियादारी का बहुत भान नहीं होता, दूसरा यह कि उसे अपने प्रतिकूल कुछ भी देखना-सुनना गवारा नहीं होता। डूडी कहीं इसी के शिकार तो नहीं हो गये हैं?
डूडी के महापड़ाव का असली मकसद क्या है पता नहीं लेकिन मोटा-मोट जो सामने आ रहा है वह है नोखा का सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट। यह समस्या मुख्यतः नोखा कस्बे की है। नोखा के कस्बेवासी कहते हैं कि इसके लिए महापड़ाव की जरूरत क्या? खुद की पार्टी की सरकार है--जैसे तैसे व्यवस्थित कर लेते! लेकिन नहीं हो सका तो तैंतीस और मांगें ऐसी जड़ दी कि विरोध महापड़ाव की शक्ल ले ले। देखना यह है इस महापड़ाव में कितने लोग कितने दिनों तक जमे रहते हैं, क्योंकि दूसरों के दुःख में दुबले होने की तासीर अब नहीं रही है और गोविंद मेघवाल ने तो कह ही दिया था कि यह दो कोलोनाइजरों की लड़ाई है। खबरों से भी पता चलता है कि कस्बे में डूडी समर्थक कम हैं इसलिए श्रीडूंगरगढ़, बज्जू और नागौर तक से भीड़ जुटाई जा रही है। महापड़ाव में जितने ज्यादा लोग होंगे और जितने ज्यादा दिन बैठेंगे डूडी के लिए उतने ही भारी होंगे। सब के खाने-पीने और शौच-आदि की जरूरतें भी डूडी को ही पूरी करनी होगी। गुर्जरों को तो जो बड़े लाभ दिखा कर कर्नल बैंसला महापड़ाव के लिए इकट्ठा करते हैं और कायम भी रख लेते हैं वैसे मुद्दे और वैसे माद्दे वाले लोग डूडी के पास हैं क्या?
प्रशासन को भी विशेष चौकसी बरतने की जरूरत है। ऐसे महापड़ावों में यदि तंबू उखड़ते दिखने लगते हैं तो उग्रता भी जल्द ही आ जाती है।
-- दीपचंद सांखला
04 जनवरी, 2012
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