Thursday, December 16, 2021

जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्य और काशी विश्वनाथ

कश्मीर के श्रीनगर में 13 दिसम्बर, 2021 को पुलिस बस पर आतंकी हमला हुआ जिसमें 11 जवान घायल हुए और 3 की मृत्यु हो गयी। गत 11 दिसम्बर को कश्मीर के ही बांदीपोरा में एक अन्य हमले में पुलिस के दो जवान शहीद हो गये थे।

केन्द्र की मोदी-शाह सरकार के दावों के अनुसार 8 नवम्बर 2016 में नोटबंदी इसलिए भी की गयी कि इससे आतंकवादियों की कमर टूट जायेगी। आतंकवादियों की कमर तो नहीं टूटी लेकिन उस नोटबंदी से भारत की अर्थव्यवस्था की कमर जरूर टूट गयी जो सभी तरह के उपायों के बावजूद आज भी बदतर है। इसके बाद जम्मू-कश्मीर से संबंधित धारा 370 को खुर्दबुर्द और 35ए को हटाने का कुकर्म इसी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को इस तर्क के साथ किया कि इससे तीन दशक से वहां चल रहे आतंकवाद का खात्मा हो जायेगा। लेकिन गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि न नोटबन्दी से और न ही 35ए हटाने और धारा 370 को खुर्दबुर्द करने से कश्मीर घाटी में होने वाली आतंकी गतिविधियों में कोई कमी आयी, उलटे हम तथाकथित भारतीयों ने उन कश्मीरियों का बचा-खुचा भरोसा भी खो दिया जो अधिकतर कश्मीरियों में अब तक बना हुआ था। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय अन्य रियासतों की तरह का नहीं था। वह विलय कबायलियों की आड़ में अचानक हुए पाकिस्तानी हमले से उपजी मजबूरी था। यह मजबूरी वहां की जनता, आजादी चाहने वाले नेताओं और राजा की समान रूप से थी। इसीलिए वह विलय अन्तिम तौर पर नहीं था, धारा 370 के प्रावधान उसी के प्रमाण हैं। खैर, हम तथाकथित भारतीय अपनी ऐसी ही हरकतों से कश्मीर और कश्मीरियों को अपने से लगातार दूर करते आए हैं और दूर करते जा रहे हैं।

13 दिसम्बर के आतंकी अटैक ने 14 फरवरी, 2019 के कश्मीर के ही पुलवामा अटैक का स्मरण करवा दिया जिसमें हमारी सेना के 45 जवानों ने जान गंवा दी थी। चाक-चौबंद सुरक्षा के बावजूद हुए पुलवामा हमले ने सभी को चौंका दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व हुए इस हमले पर सवाल आज भी इसलिए खड़े हैं, क्योंकि उसकी जांच लगभग तीन वर्ष बाद भी लम्बित है। इसीलिए देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में आगामी वर्ष के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव से कुछ पहले, हाल ही के इस हमले पर भी सवाल खड़े किये जाने लगे हैं।

जम्मू-कश्मीर की तरह देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों का भरोसा भी हम भारतीय आज तक हासिल नहीं कर पाये हैं। ऊपर से सुरक्षा बलों की लापरवाहियां भी प्रतिकूलता पैदा करती रहती हैं-दिसम्बर की शुरुआत में नागालैण्ड में सुरक्षा बलों द्वारा 14 मजदूरों को मार दिये जाने की घटना चिन्ताजनक है। त्रिपुरा के मुसलमानों पर सुनियोजित साम्प्रदायिक हमले और सूबे की सरकार की निष्क्रियता भी सवाल खड़े करने का मौका देती ही है।

पिछले वर्ष लद्दाख में घुसपैठ के बाद अरुणाचल प्रदेश में चीन की लगातार घुसपैठ और वहां कॉलोनी बना लेने पर भारत सरकार का रुख चीन के आगे असहाय होने का प्रमाण है।

बारह महीनों चुनावी मोड में रहने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने देश के प्राचीनतम तीर्थों में से एक और अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी में 13 दिसम्बर, 2021 को पहुंच 'काशी विश्वनाथ कॉरिडोर' का लोकार्पण पूरे पोंगाई-ढोंग के साथ किया।

पर्यटन स्थल बने तीर्थों की दुर्गति को केदारनाथ-बद्रीनाथ धामों में अन्तर से समझ सकते हैं। बद्रीनाथ धाम तक सड़क बनने के बाद उसका तीर्थीय स्वरूप प्राय: नष्ट हो गया है, वहीं केदारनाथ धाम का तीर्थीय स्वरूप इसलिए बचा हुआ है कि वहां तक अभी सड़क नहीं पहुंची है। लेकिन मोदीजी की चारों धाम को सड़क मार्ग से जोड़ने की सनक न तीर्थों को तीर्थ रहने देगी और ना ही इस क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य को।

तीर्थों का महात्म्य उनके प्राचीन वास्तु और स्वरूप से माना गया है। काशी जो गये हैं उन्होंने काशी विश्वनाथ मन्दिर से गंगाघाट तक जाने वाली ढलान वाली टेढ़ी-मेढ़ी गलियां और उन गलियों में रहते परिवार और हर तीसरे घर के मन्दिरों में वहां की जीवंत संस्कृति से साक्षात् किया ही होगा। इसे पूरी तरह नष्ट कर एक बड़े परिसर में तबदील कर दिया गया है। अपने इस क्षेत्र के श्रद्धालु हरिद्वार तो जाते ही रहते हैं, वहां के घाट और गंगा किनारे के बड़ा बाजार, मोती बाजार के सांस्कृतिक परिवेश की अनुभूति की होगी। कल्पना करें उस पूरे हिस्से को उजाड़ कर चौड़ा मार्ग बना दें तो वहां कोरी नीरसता ही बचेगी।

प्रधानमंत्री ने अपनी ऐसी ही सनक के चलते दिल्ली के लुटियन क्षेत्र को उजाड़ दिया है और अब अहमदाबाद के साबरमती आश्रम को उजाडऩे पर तत्पर हैं। देखते हैं मोदी-शाह के शासन के चलते हमारी अगली पीढिय़ां अपनी सांस्कृतिक धरोहरों में से कितनी को बची देख पायेंगी।

—दीपचन्द सांखला

16 दिसम्बर, 2021