Saturday, August 31, 2013

बीकानेर का तकनीकी विश्वविद्यालय

राजस्थान विधानसभा के इस तेरहवें सदन की कल एक तरह से आखिरी बैठक थी। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही अब बैठक बुलाई जा सकती है, जिसकी संभावना कम लगती है। पर इस तेरहवीं विधानसभा जाते जाते जिस क्षेत्र को ठगा है वह बीकानेर है। इस आखिरी सत्र में कई विधेयक आए और पास हुए पर पूर्व घोषित बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय का विधेयक कल जब रखा गया तो नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया ने इसे आखिरी दिन रखे जाने का औचित्य पूछ लिया और बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय का यह विधेयक बिना पास हुए ही रह गया। वैसे इस विधेयक को पास करवाने का असल दायित्व मुख्यमंत्री का था। बीकानेर को केन्द्रीय विश्वविद्यालय ना दे पाने की क्षतिपूर्ति में उन्होंने इसकी घोषणा की थी। लेकिन इस आखिरी दिन वे खुद ही सदन में नहीं थे। वे सदन में नहीं थे, केवल इस बिना पर उन्हें छूट नहीं दी जा सकती। पहले तो इस विधेयक को आखिरी दिन तक क्यों लटकाए रखा गया और यदि किन्हीं कारणों से ऐसा हो गया तो मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी बनती थी कि वे ये पुख्तगी करते कि विधेयक ना केवल रखा जाए बल्कि पास भी हो।
बीकानेर जिले के सातों विधानसभा क्षेत्रों में वैसे भी कांग्रेस की स्थिति ठीक-ठाक नहीं मानी जा रही है। कल के इस घटनाक्रम से जिले की अन्य सीटों पर ज्यादा प्रतिक्रिया चाहे ना भी हो पर शहर की दोनों सीटों पर अगर तीसरे मोर्चे का प्रभावी उम्मीदवार इसे मुद्दा बनाये तो कांग्रेस और भाजपा दोनों के पास इसका जवाब नहीं होगा। वर्तमान में इन दोनों सीटों पर भाजपा के विधायक हैं और ऐसी कोई सूचना नहीं है कि उन्होंने कल कोई अपना जनप्रतिनिधि-धर्म निभाया हो। चाहे विपक्ष में ही हो उनकी विधायी जवाबदेही तो बनती है और तब और भी ज्यादा जब फाडी उन्हीं के नेता ने लगाई हो। पश्चिम विधायक खुद टिकटार्थी हैं और उम्र आडे आई तो उनकी कोशिश रहेगी की भाजपा का टिकट उनके पोते को मिले। इस स्वार्थवश ही सही, तो तब क्या उनका दायित्व नहीं बनता था कि जैसे-तैसे इस विधेयक को पारित करवाने में परोक्ष-अपरोक्ष भूमिका वे निभाते। शहर की दूसरी विधायक सिद्धीकुमारी सम्भवतः इस सीट को विरासत की सीट मान बैठी हैं। तभी पिछले दो वर्षों से वह अपने क्षेत्र के प्रति अनमनी दिखाई दे रही हैं, बल्कि बीकानेर में भी कम ही रहती हैं। सिद्धीकुमारी को यह समझ लेना चाहिए कि 2008 में उनका राजतिलक नहीं हुआ है, प्रत्येक पांच साल बाद इस ठिकानेदारी का जनता से नवीनीकरण करवाना होता है। जनता ज्यादा से ज्यादा इस ठिकानेदारी पर एक बार और मोहर लगा देगी। सिद्धीकुमारी और गोपाल जोशी विधानसभा में फिलहाल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, इस नाते उन्हें इस विधेयक की अनदेखी से पूरी तरह बरी नहीं किया जा सकता।
रही कांग्रेस की बात तो पूर्व क्षेत्र से पराजित कांग्रेसी तनवीर मालावत को आगामी चुनावों के संभावित परिणामों के आभास के चलते उत्साही नहीं देखा जा रहा है। दूसरा प्रदेश स्तर पर उनकी हैसियत भी ऐसी नहीं है कि बिना विधायकी के भी क्षेत्र के हित में कोई प्रभावी भूमिका निभा सकें। बीकानेर पूर्व के संभावित कांग्रेसी उम्मीदवार और विधानसभा में सर्वाधिक पांच बार क्षेत्र की नुमाईंदगी कर चुके डॉ. बुलाकी दास कल्ला को तो बरी करना उनके प्रति अतिरिक्त उदारता बरतना होगा और आगामी चुनावों में यदि तकनीकी विश्वविद्यालय चुनावी मुद्दा बनता है तो संभावित उम्मीदवार होने के नाते आगाह ना करें तो उन्हें नुकसान भी हो सकता है। डॉ. कल्ला प्रदेश के प्रभावशाली नेता हैं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं और चुनाव जीत जाते हैं तो उनका नाम उन कुछ नामों में शामिल है जिन्हें कांग्रेसी मुख्यमंत्री के तौर पर अशोक गहलोत के विकल्प के रूप में देखा जाता रहा है। पर तकनीकी विश्वविद्यालय जैसे क्षेत्रीय मुद्दे पर कल की उनकी लापरवाही नजरअन्दाज करने जैसी नहीं है। उन्हें अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए इस विधेयक को पारित करवाने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी। बीकानेर की उपेक्षा के लिए केवल अशोक गहलोत को भुंडाते रहने से काम चलने वाला नहीं है। जनता को जानने का हक है कि शहर के लिए डॉ. कल्ला द्वारा किए जाने वाले प्रयासों पर रोशनी कितनी है।

31 अगस्त, 2013

Friday, August 30, 2013

पुलिस अधिकारी रत्ना गुप्ता

राजस्थान विधानसभा ने विशेषाधिकार हनन की दोषी पुलिस अधिकारी रत्ना गुप्ता को तीस दिन के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। मीडिया सहित अधिकांश मुखर लोग इस फैसले को ऐतिहासिक बता रहे हैं। दस्तावेजी तौर पर देखा जाय तो ऐतिहासिक है, क्योंकि प्रदेश और विधानसभा गठन के बाद ऐसी नौबत आज तक नहीं आई।
मामला सभी को पता है, कई बार मीडिया में चुका है। प्रथम दृष्ट्या ऐसा लगता भी नहीं है कि यह बात इस मुकाम तक पहुंचेगी। विधानसभा के रुख और निर्णय को अड़ियल नहीं कहा जा सकता। उसने रत्ना को पर्याप्त समय औ़र मौका दिया। ऐसी सभी परिस्थितियों के बाद भी विधानसभा कठोर नहीं होती तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं होता। किसी मुद्दे पर पूरा सदन एक राय हो तो उसे मान मिलना ही चाहिए, बावजूद यह मानते हुए कि सदन में सभी भले नहीं हैं।
रत्ना के पिता का बयान आया है कि उनकी बेटी को ईमानदारी के चलते ही यहहासिलहुआ है। हो सकता है रत्ना पुलिस कीसामान्य साख केविपरीत अर्थ के लेन-देन के मामले में ईमानदार हो। पर ईमानदारी एक आयामी नहीं होती। आप अपनी ड्यूटी के प्रति भी कितने ईमानदार हैं, यह भी देखा जाता है। हो सकता है कि आप अपने तय जॉब चार्ट से सहमत ना हों लेकिन जब आप ड्यूटी पर हैं तो उसका निर्वहन करना ईमानदारी का ही एक तकाजा है, और कुछ अनुचित हो गया तो केवल इस बिना पर कि कुछ ड्यूटीज को आपने मुस्तैदी से निभाया है इसलिए उस अनुचित पर भी अड़े रहें, ऐसा या तो बौद्धिक बेईमानी में आएगा या सनक मानी जाएगी।

30 अगस्त, 2013