Saturday, November 10, 2018

नोखा के वार्ड नं. 29 के बहाने स्थानीय राजनीति की पड़ताल (2 जनवरी, 2012)

अकसर देखा गया है कि ऐसी अधिकांश सार्वजनिक समस्याएं जिनको आम विरोध और आक्रोश का मुद्दा बना लिया जाता है उनकी तह में कारण निजी होते हैं। पिछले तीसेक सालों में तो ऐसा ढिठाई के साथ होने लगा है। अब ऐसे अवसर कम देखने को मिलते हैं कि कोई मुद्दा व्यापक सार्वजनिक हित का हो जिसे लेकर संगठित और व्यवस्थित विरोध दर्ज करवाया जाता हो।
दबंग और प्रभावशालियों के हितों को ही सार्वजनिक रंग दे दिया जाता है और दबंग और प्रभावशाली इस सार्वजनिक रंग की ओट में अपना हित साध लेते हैं। यह भी कि ये दबंग और प्रभावशाली ही राजनीति करने लगे हैं या यह राजनीति करने वाले दबंगई, इन दोनों के बीच फर्क इतना झीना होता है कि उसे पहचान पाना बड़ा मुश्किल हो गया। बड़े हितसाधक इन तथाकथित नेताओं को लोकतंत्र में सिर गिनाने होते हैं और छोटे-मोटे स्वार्थों की पूर्ति के बदले उन्हें यह सिर मिल भी जाते हैं। वहीं छोटे हितसाधक अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति के चलते इन दबंग-नेताओं के सक्रिय समर्थकों की गिनती में अपने को शुमार कर लेते हैं। इस तरह इन सबके अपने-अपने हित ‘सार्वजनिक हित’ में परिवर्तित हो जाते हैं और ऐसे ही ‘सार्वजनिक हितों’ को पूरा करने को मजबूर प्रशासन को अकसर देखा जाता रहा है।
कहते हैं नोखा का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का मामला इसलिए गंभीर हो गया है कि इसमें जोड़ के दो नेताओं के हित-टकरा रहे हैं। दोनों ही प्रभावशाली समूह हैं, न केवल प्रभावशाली बल्कि  उनमें से एक समूह के मुखिया रामेश्वर डूडी तो लगभग घायल शेर की भूमिका में दिखाई देने लगे हैं। पहले वो विधान सभा का चुनाव हार गये और अब उनकी खुद की पार्टी की सरकार में उनको हराने वाले निर्दलीय विधायक कन्हैयालाल झंवर लालबत्ती की गाड़ी जो ले बैठे।
कल ही एक निजी कार्यक्रम में नोखा से नुमाइंदगी कर चुके और विधानसभा की आरक्षित सीटों में बदलाव के चलते अपने नेताई क्षेत्र को बदलने वाले गोविंद मेघवाल से जब ट्रीटमेंट प्लांट मुद्दे पर उनकी राय जाननी चाही तो उन्होंने बहुत सफाई से यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि दो कोलोनाइजरों की लड़ाई में बेचारी जनता परेशान हो रही है, इसीलिए वे इस मुद्दे पर बोलना उचित नहीं समझते हैं। आप गौर करेंगे इस वाक्य पर ‘बेचारी जनता परेशान हो रही है।’ यानी असल परेशानी जनता की है, इसलिए सार्वजनिक मुद्दा हुआ जनता की परेशानी, लेकिन इस असल सार्वजनिक मुद्दे पर कोई बोलना नहीं चाहता है। विडम्बना देखें उन जोड़ के दो नेताओं के हितसाधकों में से एक जनता की परेशानी की बात भी कर रहा है, उसे भी लोग यह कहकर भाव नहीं दे रहे हैं कि उनके भी इसमें अपने निजी हित हैं।
-- दीपचंद सांखला
02 जनवरी, 2012

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