Friday, January 31, 2014

राजा को नंगा कहे कौन

लोक में प्रचलित एक कथा है शातिर ठग की। वह व्यापारी के वेश में राजा के पास पहुंचता है और भारी रकम लेकर राजा कोबातों की पोशाकपहना कर दरबार तक ले आता है। इससे पहले उसबेशकीमतीपोशाक की चर्चा दरबारियों में यह कहकर पहुंचा देता है कि इस पोशाक का दर्शन मूर्ख व्यक्ति को नहीं होता, मूर्ख कहलाने से बचने के लिए सभी दरबारी राजा कीपोशाककी तारीफ करने लगते हैं।
सवा सौ साल से ज्यादा पुरानी और देश की आजादी में बड़े योगदान वाली कांग्रेस पार्टी की स्थिति आज इस कथा के दरबार सी है। विवेकी कांग्रेसी यह जानते हुए भी कि संप्रग सरकार की साख बट्टे खाते हो चुकी है और राहुल में वह माद्दा नहीं है कि पार्टी को इस असल संकट से वह उबार सकें। बावजूद इसके कोई यह असलियत बताने को तैयार नहीं है।
कांग्रेस वह तमाम हथकंडे अपना रही है जो 2004 के लोकसभा चुनावों में भाजपा अपनाने के बावजूद पिटी और 2013 में राजस्थान के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस गर्त में चली गई। नई आर्थिक नीतियों के तहत सब्सिडी देने के तरीकों में बदलाव के दबाव में पैट्रोलियम पदार्थों यथा डीजल, पेट्रोल और रसोईगैस पर वर्तमान तरीकों से दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करना जरूरी मान लिया सो पेट्रोल को तो खुले बाजार में छोड़ दिया, डीजल और रसोईगैस का फंडा अटका रह गया। लगातार खुलते घोटालों के चलते संप्रग सरकार की गिरती साख के बीच डीजल और रसोईगैस को सब्सिडी से मुक्त करने की कवायद ने कोढ़ में खाज का काम किया। भरभरा कर गिरती साख को बचाने के लिए राहुल के अपरिपक्व नेतृत्व में टगें लगाने का काम शुरू हुआ। साल में छह किए सब्सिडी वाले रसोईगैस सिलेण्डरों को हड़बड़ी में नौ और फिर कल नौ से बारह करने का निर्णय कर लिया गया। संप्रग सरकार की स्थितिमाया मिली ना रामहोती दिख रही है। नई आर्थिक नीतियों से पूरी असहमति के बावजूद यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि उसकी असफलताओं (यदि असफल होती हैं) को अपने पर ओढ़ने को पिछले दस साल से तत्पर प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को इस तरह अकेले जिम्मेदार होने के आरोप से कांग्रेस मुक्त करने में लगी है। अपने द्वारा डिजाइन की गई अर्थव्यवस्था को अमलीजामा पहनाने में लगे मनमोहनसिंह को शायद इस तरह के निर्णयों में असुविधा हो रही होगी। लेकिन जैसा कि उन्होंने अब मन बना लिया लगता है या उन्हें यह भी समझ में गया है कि राहुल और उसकी टीम जो करना चाहे करने दिया जाय, उन्होंने मुक्ति का मार्ग पकड़ लिया है। अर्थव्यवस्था को दिए जा रहे इस तरह के हिचकोलों से होगा यही कि मनमोहन सिंह जिन परिणामों की उम्मीद अर्थव्यवस्था से करते हैं वह भी नहीं मिलेंगे और पार्टी की गई साख के चलते चुनावों के परिणाम भी वैसे हासिल होते नहीं दिख रहे हैं जो राहुल चाहते हैं।
धड़ा-धड़ विज्ञापन दिये जाने लगे हैं। राहुल को पता है कि नहीं, इस तरह साख लौटती तो  2004  में अटल नेतृत्व वाली भाजपानीत राजग सरकार और  2013 में राजस्थान में कांग्रेस नहीं हारती। रही बात लोक लुभावन योजनाओं की तो अशोक गहलोत की सरकार से ज्यादा एक कार्यकाल में लोक लुभावन योजनाएं शायद ही किसी ने लागू की हों। गहलोत को भी अपनी पार्टी की केन्द्र सरकार की बट्टे खाते साख के चलते बुरी हार देखनी पड़ी है। स्थितियों में बदलाव इतना ही हुआ है कि कांग्रेस पर भरोसा बढ़ने की बजाय घट रहा है। इस भरोसे को बढ़ाना छोड़ घटते को रोकना भी राहुल के बस का नहीं लगता है। कांग्रेस के सभी दरबारी राहुल को अक्षम कहना वैसी ही हिमाकत मानते हैं जैसे उस कथा में राजा को नंगा कहना उसके दरबारी मानते हैं। नतीजा जगहंसाई से अलग नहीं मिलना है।

 31 जनवरी, 2014

Thursday, January 30, 2014

गांधी का स्मरण

मोहनदास करमचन्द गांधी की आज पुण्यतिथि है, आज के दिन हिन्दू कट्टरवादियों के नुमाइंदों ने उनकी शरीरी सक्रियता को शान्त कर दिया। तब से लेकर अब भी नाथूराम गोडसे की सनक के वारिस लगातार गांधी की मानस सक्रियता को मिटाने की असफल कोशिश करते रहे हैं। इन कट्टरवादियों के दुस्साहस को रेखांकित इसलिए किया जाता है कि बावजूद उनके कुप्रयासों के मानस गांधी केवल विराट हुआ है बल्कि उनकी आभा-परगा विश्वव्यापी होती गई। गोडसे सनक के तमाम वारिस और संगठन अपने दोगलेपन के चलते जहां एक ओर गांधी के बारे में अनर्गल विषवमन में लगे रहते हैं वहीं स्वार्थपूर्ति के लिए गांधी का नाम लेने में संकोच भी नहीं करते।
व्यापक मानवीय सोच रखने वाले दुनिया के तमाम लोग मानवीयता हीन होते जा रहे इस युग को बचाए रखने के लिए गांधी की मानस सक्रियता में ही उम्मीद देखते हैं। दुनिया के तमाम संकट और समस्याओं का मानवीय समाधान गांधी के सुझाए उपायों में पाया जा सकता है। इन उपायों से ही मानवीयता का अस्तित्व बना रह सकता है। शेष सभी प्रतिस्पर्धी उपायों में किसी किसी मूल्य का हनन अवश्यम्भावी है। अभी हम घोर प्रतिस्पर्धी युग में रहने को मजबूर हैं। गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम अपनी सोच को इस तरह की व्यापकता दें कि चर और अचर जगत में कोई भी वंचित और पीड़ित हो। ऐसी सोच को साधना मुश्किल जरूर है असम्भव नहीं। गांधी ने इसे साध कर बताया है। इसीलिए महान् वैज्ञानिक आइन्स्टाइन ने कहा कि आने वाली दुनिया यह अचम्भा करेगी कि गांधी जैसा हाड़मांस का व्यक्ति सचमुच इस दुनिया में हुआ था। गांधी ने जो कहा या लिखा उसे उन्होंने पहले खुद जीया भी। अच्छा हासिल करने के लिए प्रयासों के अच्छा होने की बात गांधी ने की। गांधी की इस बात को गांठ बांध लें तो भ्रष्टाचार सिरे से गायब हो जायेगा।
गांधी के प्रिय भजन की पंक्तियां हैं... जो पीर पराई जाणे रे... पर दुक्खे उपकार करे, मन अभिमान ना आणे रे। इन पंक्तियों से बड़ा कोई आध्यात्मिक प्रवचन भला और क्या हो सकता है? हमारे युग के तमाम धर्मगुरु अपने-अपने संप्रदायों को कोरपोरेट हाउस माफिक चलाने लगे हैं और खुद को महात्मा की जगह महाराजा के रूप में व्यवहार करने और कृष्ण रूप में प्रतिष्ठा पाने को लालायित रहते हैं। उनके सभी ताम-झामों में लाखों-करोड़ों का धन खर्च होता है, खोटे-खरे करके कमाये कालेधन को नैतिक बनाने की कामना में अधिकांश धनी अपने कालेधन का एक हिस्सा इन तथाकथित भगवानों और धर्मगुरुओं की प्रतिष्ठा के लिए खर्च करते हैं, वे भूल जाते हैं कि गलत तरीकों से कमाया धन अच्छे कामों में कैसे कारगर हो सकता है। गांधी के प्रिय भजन की उल्लेखित उक्त पंक्तियों के मर्म पर आज कौनसा तथाकथित धर्मगुरु खरा है? जानते हैं ऐसे कड़वेपन से कुछ कहना मानस गांधी की अवहेलना में आता है। इस सचाई को स्वीकारने में इसीलिए हिचक नहीं है कि गांधीवादी बनना आसान नहीं पर साथ ही साथ फिर दोहराएंगे कि मुमकिन है, खुद गांधी ने इसे साबित किया है।

 30 जनवरी, 2014