चार-पांच दिन की अच्छी ठंड के बाद कल उसमें कुछ कमी जरूर महसूस हुई। लेकिन आज इस मौसम का नजारा कुछ अलग ही था। अलस्सुबह घरों से निकलने वालों ने आज इस थार रेगिस्तान में ही पहाड़ी स्थानों-सी पहाड़ों से बगलगीरी का अहसास किया। मौसम विभाग के आंकड़ों का तो पता नहीं लेकिन जिसे वे विजिब्लिटी कहते हैं वही दृष्टि सीमा तड़के साढ़े पांच बजे बामुश्किल पचास फीट थी, सूर्योदय के बाद आठ बजे डेढ़ सौ फीट के लगभग रही। जरूरी नहीं कि ऐसे मौसम को अनुभूत करने का सुख सभी महसूस करें। बहुतों को तो सुबह देर तक रजाई में दुबके रहने में जो सुख मिलता है उनके लिए वही मुबारक है। वैसे प्रत्येक के अपने-अपने सुख होते हैं लेकिन उन्हें ही अन्तिम मान लेने से हम अपना ही नुकसान करते हैं। इसलिए दूसरों को जहां सुख मिलता है, कभी-कभार उसे भी आजमाना चाहिए। हो सकता है वो सुख भी आपकी भावभूमि का हिस्सा बन जाये। आज जैसा कोहरा फिर कभी हो तो थोड़े समय के लिए ही सही एक बार रजाई से निकलकर उसे अपने सुख की कसौटी पर जरूर लगाएं।
-- दीपचंद सांखला
06 जनवरी, 2012
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