Wednesday, July 21, 2021

पाती देवीसिंह भाटी के नाम

मान्य देवीसिंहजी!

आपातकाल के दौरान 1977 के लोकसभा चुनावों में आपको जब पहले-पहल देखा, तब मैं 18 वर्ष का भी नहीं हुआ था। बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से हरिराम मक्कासर जनता पार्टी से उम्मीदवार थे। इन चुनावों में जनता में जैसा उत्साह था वैसा माहौल उससे पहले (1967 से चुनावी राजनीति में सक्रिय हूं) और आज तक किसी चुनाव में नहीं देखा। 

तब का वह दृश्य याद है जब दिनभर घूम-घुमाकर शाम को डागा बिल्डिंग पहुंचते और पांच नम्बर से लेकर नीचे सड़क तक खड़े समूहों से फीडबैक सुनते और खुश होते। उन्हीं चर्चाओं में सर्वाधिक जिस नाम की चर्चा होती वह देवीसिंह भाटी था। बिना हुड की जीप में शाम और देर शाम जब भी आप डागा बिल्डिंग पहुंचते-हमारे जैसे कई नवयुवा घेर लेते और पूछते—क्या रिपोर्ट है। आप इतना ही कहते...बढिय़ा और मुख्य चुनाव कार्यालय की ओर चल देते। नायक सी वह छवि स्मृतियों में आज भी कहीं अंकित है।

अभी पत्र लिखने का हेतु इसलिए बना कि इन दिनों आपने बीकानेर शहर से लगती ओरण (गोचर) को बचाने का बीड़ा उठाया है। इस लंबी-चौड़ी ओरण को बचाने के लिए बनवाई जा रही चारदीवारी इस काल में छोटे-मोटे भागीरथी प्रयास से कम नहीं है। इसे आप पूर्ण करवा देंगे तो महानगरीय शब्दावली में यह ग्रीन जोन कहलायेगा।

यह काम शुरू हो गया और आपकी देख-रेख में हो रहा है तो पूरा होगा ही। मेरे इस पत्र के प्रयोजन इतना ही महत्त्वपूर्ण माने या इससे ज्यादा, यह तय आपको करना है। वह प्रयोजन है—कोलायत के कपिल सरोवर के पौराणिक वैभव को लौटाने का। इसके एक सोपान के तौर पर जलकुम्भी हटाने का काम आपने कुछ वर्ष पूर्व करवाया था। यह बात अलग है कि सरोवर में जलकुम्भी फिर लौट आयी, किन कारणों से लौटी, विशेषज्ञों की राय से उसे तो हमेशा के लिए हटाना ही है। अन्य जो काम हैं सरोवर की आगोर को बचाना और उसके 52 घाटों का जीर्णोद्धार करवाना। घाटों का जीर्णोद्धार तो आपके लिए बड़ा काम नहीं है लेकिन आगोर को सुरक्षित रखना और हमेशा के लिए सुरक्षित रखना-रखवाना बड़ा काम है।

इसके लिए आपको न केवल अपनी सामाजिक हैसियत का उपयोग करना होगा बल्कि अपनी राजनीतिक हैसियत का उपयोग भी करना होगा। इस आर्थिक युग में धन के भूखों का राम होठों तक ही है—हिये तक नहीं। अन्यथा धन के ये भूखे कम से कम कोलायत सरोवर के आगोर क्षेत्र को तो अवैध खनन से मुक्त रखते। सरकारी मुलाजिमों से आगोर क्षेत्र में खनन पट्टे जारी भी हो गये हैं तो उन्हें रद्द करवाना और यह जाप्ता करना भी जरूरी है कि भविष्य में यह भूल दोहराई न जाए। आप मुनादी करवा देंगे तो पूरा भरोसा है कि आगोर के उस क्षेत्र में अवैध-खनन का काम रुक जायेगा। एक और प्रयास क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य को लौटाने का है। खनन के ओवर बर्डन से निकली मिट्टी से बने डूंगर न केवल आगोर के बहाव क्षेत्र में बाधा हैं बल्कि क्षेत्र पर बदनुमा दाग भी हैं। यह काम होगा कैसे—मुझे अनुमान नहीं है, लेकिन होना जरूरी है। आगोर क्षेत्र में खनन से जो गहरे गड्ढे बन गये उन्हें इस ओवर बर्डन से बुरवाया जा सकता है। यह काम कम अर्थ-साध्य नहीं है, मोटे बजट की जरूरत होगी। आप मन बना लेंगे तो यह सब व्यवस्था भी आप संभव करवा लेंगे। ऐसा मानना मेरा ही नहीं है, उनका भी है जो आपको अच्छे से जानते-समझते हैं।

इस बड़े काम को करने का मन बनाना आसान नहीं। कितने संसाधन जुटाने होंगे मुझे पता है। लेकिन देवीसिंह भाटी के सामथ्र्य का भी पता है कि वे मन बना लेंगे तो इस वय में कर गुजरेंगे और सार्वजनिक इतिहास में उनको इन कार्यों के लिए भी याद किया जायेगा। उम्मीद करता हूं कि इस अनुष्ठान को पूर्ण करवाने के लिए व्यवस्थित कार्य योजना की घोषणा शीघ्र ही करेंगे। अग्रिम आभार।

―दीपचन्द सांखला

22 जुलाई, 2021

Thursday, July 15, 2021

मोदी-शाह के विकल्प की बात

भारतीय लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत है कि मोदी-शाह के विकल्प की चर्चा पिछले डेढ़-दो वर्षों से होने लगी है। यद्यपि ऐसी चर्चा फिलहाल राजनीतिक विश्लेषकों, पत्रकारों और जागरूक नागरिकों तक ही सीमित हैं। जबकि डेढ़-दो वर्ष पूर्व तक ये भी स्तब्ध थे। बेहतर होता विपक्षी दलों के बीच भी इस तरह की कवायद होती, राजनीतिक विश्लेषक प्रशान्त किशोर बीच में इस हेतु जरूर सक्रिय दिखे। इस पर उनकी फिलहाल की निष्क्रियता रणनीतिक है या निराशा-जनित, पता लगना है।
बेहतर और भी तब होता जब विकल्प की बात भारतीय जनता पार्टी के भीतर से भी उठती—इस उम्मीद की वजह इतनी ही है कि भाजपा संवैधानिक लोकतंत्र में पंजीकृत दल है। अन्यथा उसके पितृ संगठन और खुद उसकी अघोषित विचारधारा के मद्देनजर ऐसी उम्मीद पालना निराश होना है। क्योंकि संघ और उसके अनुगामी संगठनों का विश्वास जब लोकतंत्र में ही नहीं है तो इनसे संविधान में आस्था की उम्मीद कैसी? इसीलिए संघानुमार्गी जिसमें भी निष्ठा व्यक्त करते हैं, मान लें यह उनका उपयोग मात्र कर रहे होते हैं।
जागरूक नागरिकों में से अनेक विकल्प की उम्मीदों के साथ कांग्रेस को कोसने लगे हैं। कोस इसलिए रहे हैं कि उन्हें कांग्रेस के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कोई विकल्प सूझ नहीं रहा, और इसलिए भी कि कांग्रेस उस तरह से विरोध पर उतारू नहीं दिख रही कि जनता उसे मोदी-शाह के विकल्प के तौर पर स्वीकार करने लगे। सरसरी तौर पर देखें तो माजरा यही है। लेकिन क्या सच में ऐसा है? नहीं। दरअसल आजादी के बाद पहली बार ऐसा है कि अंधभक्ति में ग्रस्त जनता के बड़े हिस्से के मन को (इसे हिप्नोसिस या सम्मोहन की अवस्था भी कह सकते हैं) झूठ, भ्रम और ढोंग से बांध दिया गया है, ये सम्मोहित समूह सच्चाई जानना ही नहीं चाहता बल्कि आगाह करने वाले पर उलट प्रतिक्रिया देने लगता है। ऐसी स्थितियों में कोई भी दल आगे कर दें या कैसा भी व्यक्तित्व खड़ा कर दें, उसे ये स्वीकारेंगे ही नहीं।
फिलहाल यह मानना कि कांग्रेस या उसके किसी नेता को विकल्प के तौर पर स्वीकारा जाएगा, जमता नहीं है।
ऐसे में हो क्या सकता है? या तो मोदी-शाह से ऊपर का कोई मजमेबाज और धूर्त आए, जो इनके सिर बांधने जैसा हो। विकल्प की ऐसी ही उम्मीद करनी है तो फिर इन्हीं को बरदाश्त क्यों नहीं करें, इनके विकल्प के तौर पर इनसे बदतर क्यों। और यदि विकल्प के तौर पर कोई भला या कम-से-कम इनसे तो भला हो—आये तो इसके लिए जनता को ही अपने विवेक को जगाकर मन बदलना होगा। बेहतर विकल्प की जरूरत महसूस करनी होगी। इसके लिए पहले तो बहुसंख्यकों को इस भ्रम से निकलना होगा कि उनके धर्म पर कोई खतरा है। और इससे भी कि धर्म को बचाने के लिए हम कुछ भी कुर्बान करने को तैयार हैं। ऐसा होगा तभी जब हम अपनी असली जरूरतों को समग्रता से समझेंगे। ऐसा होगा तभी सत्ता में वैकल्पिक दल की उम्मीदें पाल सकेंगे, जब तक ऐसा नहीं होगा—तब तक हमें यूं ही भुगतना होगा। एक भारतीय नागरिक के तौर पर कितना कुछ हमने खो दिया और क्या कुछ खो देंगे, इसकी कल्पना मात्र सिहराने लगती है, ऐसी अनुभूति के लिए हमें जागरूक नागरिक होना होगा। सभी इस तरह का मन बनाएं, जरूरी नहीं। कम-से-कम एक बड़े जनसमूह को हिप्नोसिस से-सम्मोहन से बाहर आने की जरूरत है।
(कुछ राज्यों में आ रहे बदलावों से उम्मीदें न पालें, उनके बदलावों की वजह स्थानीय हैं।)
—दीपचन्द सांखला
15 जुलाई, 2021

Thursday, July 1, 2021

नाथी का बाड़ा, घर जाने का निर्देश और कल्ला कांग्रेस बनाम शहर कांग्रेस

राजस्थान की राजनीति के दोनों मुख्य दलों में सब कुछ ठीक नहीं है। भाजपा में हाइकमान की हेकड़ी की वजह से तो कांग्रेस में हाइकमान के अनिर्णय की मानसिकता से। राजस्थान में तीसरे मोर्चे की चर्चा जरूर होती है, लेकिन उनके पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसकी स्वीकार्यता समग्र राजस्थान में हो। 

इस तरह राजस्थान की राजनीति फिलहाल मोटामोट दो ही दल हैं, कांग्रेस और भाजपा। वर्तमान सिनेरियो में भाजपा के पास वसुंधरा राजे का कोई विकल्प बनता दिख नहीं रहा है तो कांग्रेस में सचिन पायलट अपनी हड़बड़ी के चलते अशोक गहलोत का विकल्प बनते-बनते भटक गये। इस भटक से उनमें उपजी कुण्ठाओं ने जहां पार्टी में उनकी स्वीकार्यता को और भी कम कर दिया वहीं इस घटनाक्रम से पार्टी और सरकार का कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। 

आज बात कांग्रेस की करेंगे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, शिक्षामंत्री और बीकानेर जिलाप्रभारी मंत्री गोविन्दसिंह डोटासरा पिछले दिनों बीकानेर में थे। डोटासरा उन कांग्रेसी नेताओं में से हैं, जो मीडिया के साथ सोशल मीडिया को सुर्खियां देते रहते हैं। कुछ माह पूर्व नाथी के बाड़े का उल्लेख कर चर्चा में आये डोटासरा ने मंत्रिमण्डलीय बैठक के बाद चर्चा तब भी बटोरी जब मुख्यमंत्री की उपस्थिति में मंत्रिमंडल में असल दो नम्बर शान्ति धारीवाल से जब उलझे तो धारीवाल ने झिड़क दिया। धारीवाल की हेकड़ी इसलिए भी चुलती है कि वे पार्टी के लिए दूझती गाय है। नम्बर दो में असल का उल्लेख इसलिए करना पड़ा क्योंकि हमारे इधर बीडी कल्ला को नम्बर दो कहा जाता है। 

डोटासरा अभी जब बीकानेर आये तो वे मोर-पांख का झाड़ू बीकानेर के सभी नामी नेताओं के सिर पर रखने में चूके नहीं। बीडी कल्ला, रामेश्वर डूडी, वीरेन्द्र बेनीवाल, मंगलाराम गोदारा आदि सभी की मिजाजपुर्सी की बल्कि भंवरसिंह भाटी को तो विनायकजी की तरह साथ ही रखा। अपनी इस बीकानेर यात्रा में भी सुर्खियां जाने-अनजाने वे दे ही गये। कल्ला-कांग्रेस की और से कल्ला परिवार के राजनीतिक वारिस होने का मन बनाये अनिल कल्ला के पक्ष में जब 100 से अधिक कल्ला-कांग्रेसियों ने अनिल कल्ला को शहर अध्यक्ष बनाए जाने की लिखित पैरवी की तो डोटासरा यह बोले बिना नहीं रह सके कि मैं इसके मानी अच्छे से समझता हूं।
लेकिन ज्यादा सुर्खियां बटोरी निगम पार्षद अंजना खत्री ने। अंजना खत्री कांग्रेस की ओर से महापौर की उम्मीदवार थीं और गोटियां सही बैठ गयी होतीं तो सुशीला कंवर की जगह महापौर वह ही होतीं। महापौर नहीं बनी तो नहीं बनी, नेता प्रतिपक्ष भी वह अभी तक नहीं बन पा रही हैं। क्योंकि सूबे की सरकार और संगठन बीते डेढ़ वर्ष से दो बड़े मोर्चे को संभालने में ही लगे हैं। पहला भाजपा की शह से मोर्चें पर डटे सचिन पायलट के विद्रोह के चलते तो दूसरा महामारी कोरोना से। डोटासरा बीकानेर आये तो अंजना ने मिलकर निगम में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति की मांग रखी। खीज में या स्वभाव के चलते डोटासरा ने झिड़कते हुए अंजना को यह कह दिया तुम अपने घर जाओ। उम्रदराज अंजना को संभवत: दो वजह से बुरा लगा हो—एक तो वे उम्र में डोटासरा से काफी बड़ी हैं दूसरा वह सक्रिय महिला हैं। अंजना को यह भी लगा होगा कि वह स्त्री है इसलिए उसे घर में बैठने की हिदायत दी जा रही है। अंजना ने भी पलट कर तैश में आकर जवाब दे दिया—मैं तो अपने घर (बीकानेर) में ही हूं, घर जायें आप। सामान्यत: शीर्ष के नेता कार्यकर्ताओं की ओर से इस तरह के जवाब सुनने के आदि नहीं होते हैं। फिर सोचा होगा जैसा दिया वैसा कभी-कभी झेलना भी पड़ सकता है। हालांकि बाद में अंजना खत्री ने सफाई देकर 'डेमेज कंट्रोल' की कोशिश जरूर की।

बीकानेर शहर कांग्रेस की राजनीति में दूसरी उल्लेखनीय घटना यह हुई कि पुराने कांग्रेसी नेता गुलाम मुस्तफा बाबूभाई की अगुआई में कांग्रेसियों ने डोटासरा के सामने मांग रखी कि बीकानेर शहर कांग्रेस की विधानसभा क्षेत्रवार पूर्व और पश्चिम की दो अलग-अलग शहर ईकाइयां होनी चाहिए। होगी कि नहीं, बाद की बात है लेकिन इतना पक्का है कि शहर कांग्रेस को कल्ला-कांग्रेस से मुक्त करवाने की लड़ाई स्थानीय कांग्रेसी हार चुके हैं। दो ईकाइयां होती भी हैं तो इसके लिए कल्ला-कांग्रेसियों की मौन स्वीकृति इसलिए भी मिल सकती है कि यदि ऐसा होता है तो वे अपनी दुकान निर्बाध चला सकेंगे। अन्यथा स्थानीय कांग्रेसी कुचरणी ज्यादा चाहे न कर पाएं, सिचले तो नहीं बैठने वाले। खैर, आसान न बीकानेर शहर अध्यक्ष की नियुक्ति है और न दो अलग-अलग ईकाइयां बनना, देखते जाओ आगे-आगे होता है क्या।

डोटासरा को लम्बी पारी खेलनी है तो बजाय मुखर होने के, घुन्ना होना और सावचेती से चलना बेहतर होगा अन्यथा नारायणसिंह, रामेश्वर डूडी, चन्द्रभान, बीडी कल्ला, जैसे पार्टी में लगभग शीर्ष हैसियत तक पहुंच कर फिसले हैं।
—दीपचन्द सांखला
30 जून, 2021