Thursday, March 31, 2016

एलिवेटेड रोड पर बधाई लेकिन सावचेती जरूरी

बीच शहर से गुजरती रेल लाइन और इसके रेल फाटकों के चलते यातायात बाधित होने की समस्या से बीकानेर शहर यूं तो पिछले पचास वर्षों से रू-बरू है लेकिन पिछले पचीस वर्षों से इस समस्या ने शहर की नाक में दम कर रखा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस समस्या के समाधान हेतु आन्दोलन की शरुआत करने वाले पूर्व विधायक  एडवोकेट रामकृष्णदास गुप्ता ही हैं। पिछली सदी के अन्तिम दशक की शुरुआत में गुप्ता ने लम्बे समय तक न केवल कोटगेट पर धरना दिया बल्कि सूबे के मुख्यमंत्री और केन्द्र के रेलमंत्री तक को उनके आन्दोलन से मजबूर होकर बीकानेर आना पड़ा। गुप्ता का सुझाया बाइपासी समाधान चूंकि अव्यावहारिक और बेहद खर्चीला होने के साथ-साथ ऐसी नजीर भी बनता कि कमोबेश देश के अधिकांश छोटे-बड़े शहरों की ऐसी ही दिक्कतों के समाधान के लिए सरकारों को ऐसी मांगों से जब-तब दो-चार होना पड़ता। इसी के चलते बाइपास की मांग ने हिचकोले खाते पचीस वर्ष व्यर्थ गुजार दिए।
एशियाई विकास बैंक के सहयोग से प्रारंभ हुई परियोजना के तहत 2006-07 में राजस्थान शहरी आधारभूत विकास परियोजना (आरयूआईडीपी) के विशेषज्ञों ने रेलवे के तकनीकी अधिकारियों से सलाह कर शहर के कोटगेट और सांखला रेल फाटकों से प्रसूत यातायात जाम की इस संगीन समस्या से यहां के बाशिन्दों को निजात दिलाने के लिए एलिवेटेड रोड का समाधान सुझाया था। धन की व्यवस्था के बावजूद छिट-पुट विरोध के चलते इस योजना को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। समस्या दिन-ब-दिन विकराल होती गई। इस बीच नगर विकास न्यास ने कोटगेट फाटक पर रेल अण्डरब्रिज जैसे अव्यावहारिक समाधान पर कवायद शुरू कर दी तो कुछेक ने इसके समाधान के लिए उच्च न्यायालय की डेस्क थपाथपा दी। अण्डरब्रिज और रेल बाइपास जैसे अव्यावहारिक सुझावों की कवायद और मांग के बीच 'विनायक' ने 26 अगस्त 2011 के अपने संपादकीय में एलिवेटेड रोड योजना पर पुनर्विचार की गुजारिश कर इसकी कवायद पुन: शुरू करवाई।
'इसके  समाधान के  लिए तीन वर्ष पूर्व बनी एलिवेटेड रोड योजना पर समझदारी और उदारतापूर्वक पुन: विचार किया जाना चाहिए। यह शार्दूलसिंह सर्किल से लेकर राजीव गांधी मार्ग व स्टेशन रोड स्थित मोहता रसायनशाला तक बननी थी। आमजन का इसके  प्रति सकारात्मक रुख होने के बावजूद, जहां से इस एलिवेटेड रोड को गुजरना था वहां के व्यापारियों के विरोध के चलते इस योजना को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया।
शहर के  मौजिज लोगों और व्यापारियों को भविष्य की ट्रैफिक को ध्यान में रखते हुए पुनर्विचार करके  ऐसा सम्भव करवाना चाहिए कि अण्डरब्रिज की जगह उसी एलिवेटेड रोड के प्लान की कवायद पुन: शुरू हो।'
26 अगस्त, 2011 के इस संपादकीय से 'विनायक' ने जन जागरूकता का यह अभियान जारी रखते हुए बीते साढ़े चार वर्षों में कुल 28 संपादकीय तो सीधे-सीधे इस एलिवेटेड समाधान की भ्रांतियां दूर करने और अण्डरब्रिज तथा बाइपासी समाधानों की अव्यावहारिकताओं पर लिखे। अलावा इसके अन्य कई संपादकीयों में भी जब जरूरी लगा इस समस्या का उल्लेख किया गया।
'विनायक' यह मानता है कि उसके इन सतत प्रयासों से जनप्रतिनिधि और मौजिज लोग लगभग एक राय हो पाए। सर्वाधिक बेबाकी से विधायक मानिकचन्द सुराना ने समर्थन किया। विधायक गोपाल जोशी, महापौर नारायण चौपड़ा भाजपा नेता सत्यप्रकाश आचार्य, विष्णु पुरी, कर्मचारी नेता भंवर पुरोहित, व्यापारियों के नेता सुभाष मित्तल की मुखरता और सक्रियता विशेष उल्लेखनीय रही। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कांग्रेस पार्टी और इसका कोई नेता इस समस्या के समाधान हेतु व्यावहारिक और गंभीर कभी नहीं देखे गये, तब भी नहीं जब 2008 से 2013 तक इनकी सरकार रही।
ऐसे ही सब प्रयासों का नतीजा है कि सूबे की मुख्यमंत्री ने कल 30 मार्च 2016 को बजट बहस का जवाब देते हुए एलिवेटेड रोड हेतु 135 करोड़ रुपये की राशि का बजट में प्रावधान किया है।
'विनायक' का ये आग्रह है कि निम्न सावचेतियां जरूरी हैं जिन पर जनप्रतिनिधियों और इस कार्य हेतु सक्रिय लोगों को ध्यान देना चाहिए
     एलिवेटेड के सुझाए सभी समाधानों में आरयूआईडीपी की सुझाई योजना ही सर्वाधिक व्यावहारिक है जिसमें किसी की एक इंच भूमि का भी अधिग्रहण नहीं होना है और न ही कोई निर्मित भवन टूटना है। यह समाधान केवल रेल फाटकों की समस्या का समाधान भर नहीं है, इससे इस क्षेत्र का यातायात भी सुचारु होना है।
     मूल योजना के अनुसार यह एलिवेटेड रोड महात्मा गांधी रोड के लक्ष्मीनारायण मन्दिर के पास से ही शुरू होना इसलिए व्यावहारिक होगी कि यहां न केवल सड़क की चौड़ाई पर्याप्त है बल्कि चौक भी बड़ा है। चूंकि एलिवेटेड सड़क जहां से शुरू होती है वहां से लगभग तीन सौ फीट भर्ती वाली सड़क के बाद खम्भों पर आती है। ऐसे में प्रेमजी पॉइंट से इसे शुरू करने पर चूंकि वहां सड़क संकरी  है इसलिए नीचे के दोनों ओर के मार्ग संकरे रह जाएंगे। हां, स्टेशन रोड की ओर से शुरू करने में इसकी मूल योजना में परिवर्तन इसलिए जरूरी है कि योजनानुसार यह एलिवेटेड रोड मोहता रसायनशाला के आगे से शुरू करने की योजना है। इसके स्थान पर इसे बिस्कुट वाली गली से पहले डिलक्स होटल के आगे से शुरू किया जाना इसलिए व्यावहारिक होगा क्यूंकि गंगाशहर रोड का एक तरफा यातायात अब यहीं से ही निकलता है। ऐसे में इस यातायात को भी एलिवेटेड रोड का लाभ मिल पाएगा।
     एक और बात का ध्यान रखना जरूरी है, वह यह कि रेलवे के साथ एमओयू करते समय एलिवेटेड रोड के सांखला फाटक के ऊपर के निर्माण का खर्च भी राज्य सरकार द्वारा रेलवे को देने का प्रावधान शामिल किया जाए ताकि रेलवे केवल 10-12 मीटर के इस निर्माण खर्च की एवज में फाटक को हमेशा के लिए दीवार खींच कर बन्द ना कर दे। यह खर्चीला इसलिए भी नहीं है कि जब राज्य सरकार लगभग 1250 मीटर लम्बी एलिवेटेड रोड का निर्माण खर्च उठा रही है तो महज 10-12 मीटर के निर्माण के खर्च के बदले नीचे से गुजर सकने वाले यातायात के लिए रेल फाटक वर्तमान की तरह ही खुलते-बन्द होने की सुविधा क्यों न मिले। ऐसी सावधानी रानी बाजार रेल ओवरब्रिज के निर्माण के समय रेलवे से हुए अनुबन्ध में नहीं रखी गई जिसके चलते इस फाटक के हमेशा बन्द होने की आशंका में ही यहां के बाशिंदे रहते हैं।

अब एलिवेटेड शब्द पर कुछ भाषा विमर्श :
सड़क के ऊपर बनने वाली सड़क के लिए एलिवेटेड रोड जैसे प्रचलित शब्द को व्यवहार में जब बापरने लगे हैं तो इसकी देवनागरी वर्तनी पर भी विचार कर लें। अंग्रेजी शब्दों के सही उच्चारण के लिए हिन्दी भाषाविद् जिस शब्दकोश को प्रामाणिक मानते हैं वह है फादर कामिल बुल्के का अंग्रेजी-हिन्दी कोश। इस कोश के अनुसार और उच्चारण के अनुसार भी एलिवेटेड की 'लि' को हम दीर्घ ध्वनि में उच्चारित नहीं करते। अत: एलिवेटेड शब्द में '' की मात्रा छोटी ही रखा जाना भाषा और उच्चारण के अनुरूप रहेगा।

31 मार्च, 2016

Friday, March 25, 2016

होली


प्राचीन संस्कृत साहित्य में होली का उल्लेखवसंत महोत्सवयाकाम महोत्सवके रूप में मिलता है यह प्राचीन काल से ही सब वर्णों की निकटता का भी त्योहार रहा है इस दिन सभी वर्णों के लोगों का परस्पर गले मिलने का विधान है इसे होलिका द्वारा प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने की कथा से भी जोड़ा जाता है यह समझकर कि हरि भक्त प्रह्लाद जलकर मर जाएगा, राक्षस नाचने-गाने, कूदने, शोर मचाने और मद्यपान करके अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने लगे थे आज भी उसी घटना की स्मृति में होलिका दहन होता है| यह देश का सबसे लोकप्रिय और मस्ती का त्योहार है
भारतीय संस्कृति कोशका उक्त गद्यांशहोलीके बारे में है स्थानीय बोली और मानस के हिसाब से आज होली है और कल छालुड़ी (धुलण्डी)| मुहूर्त्त के अनुसार आज देर रात होली मंगलाई जायेगी मंगलाना यानी दहन करना यानी उच्च वर्गीय लोकचित्त होलिका के दहन को मांगलिक घटना मानता है क्योंकि होलिका केवल आततायी हिरनाकसप (हिरण्यकशिपु) की बहिन थी बल्कि उसके बुरे कामों में सहयोगी भी थी
जैसा कि उपरोक्त गद्यांश में बताया गया है, होलिका दहन के समय हिरनाकसप के सहयोगी यह मान कर चल रहे थे कि आग के हवाले होते ही प्रह्लाद तो जल कर राख हो जायेगा बिना परिणाम का इन्तजार किये वे मद्यपान सेवन और नाचने-कूदने, शोर मचाने में मशगूल हो गये तो क्या आजकल भी बहुत से लोग इसी मनःस्थिति में नहीं देखे जाते! जिस तरह से होली खेली जाने लगी है, उससे पता ही नहीं चलता कि इस उत्सव में मशगूल कौन तो हिरनाकसप के सहयोगियों की तरह मुगालते में खुशियां मना रहा है और कौन होलिका के दहन की खुशियां मना रहा है खेलने के ढंग में आई तबदीलियां कुछ इसी तरह का आभास जो देने लगी हैं
भारतीय उपमहाद्वीप में इस उत्सव का उल्लेख ईसा पूर्व से भी कई सौ साल पहले का मिलता है उसके नाम, खेलने के ढंग और कथाओं में समय-समय पर परिवर्तन होता रहा है मनुष्य की यथास्थितियों और एकरसता से ऊब और कुछ समय के लिए ही सही तनावों से बाहर आने की उत्कंठा और कुण्ठाओं से छुटकारे की इच्छा के चलते ही इस तरह के त्योहारों को मनाया जाने लगा विभिन्न रूपों में भिन्न-भिन्न समय पर वर्ष में एक से अधिक बार व्यापक पैमाने पर इन त्योहारों का आना मनुष्य की मानसिक जरूरत को अभिव्यक्त करता है यह त्योहार केवल हमारे यहां ही मनाया जाता हो, ऐसा नहीं है सदियों से दुनिया के सभी हिस्सों में समय और मनाने के तरीके में थोड़े परिवर्तनों के साथ ऐसे त्योहार भिन्न-भिन्न नामों से मनाये जाते हैं ये त्योहार इस बात के प्रमाण भी हैं कि मनुष्य का मन एकरसता में छटपटाता रहता है
हमारे क्षेत्र को ही लें, कभी यहां पानी को घी से ज्यादा कीमती माना जाता था तो होली सूखी खेली जाती थी नलों से पानी गवाड़-घरों में आने लगा तो गीली खेली जाने लगी अब जब से जल विशेषज्ञ यह बताने लगे हैं कि जमीन से पानी समाप्त हो रहा है तो लोक में इसे लेकर दिखावटी चिन्ताएं होने लगी हैं दिखावटी इसलिए चूंकि हमने जीवनशैली ही ऐसी बना ली जिसमें पानी की बरबादी कई गुणा बढ़ी है, 365 दिन जिस पानी को अंधाधुंध बरतने और बरबाद करने में लगे हैं उस ओर किसी की सावचेती नहीं देखी जाती होना तो यह चाहिए कि छालुड़ी के दिन ही क्यों बाकी के 364 दिन भी हम पानी के साथ अपने बरताव को ठीक क्यों कर लें? इस तरह की रस्म अदायगियों से अपनी करतूतों को कहीं आड़ तो नहीं दे रहे हैं हम?
26 मार्च, 2013

Tuesday, March 22, 2016

विधानसभा में घुसने की मासूमियत के बहाने लोकतंत्र की बात

सर्वहारा की तानाशाही की पैरवी करने वाले वामपंथियों का लोकतंत्र के लिए कहना-मानना यह है कि अपनी अनुकूलता के लिए बनाई यह पूंजीवादी व्यवस्था ही है। मान लेते हैं ऐसा है तो कौन-सी व्यवस्था निर्दोष है? एक आदर्श लोकतांत्रिक शासन प्रणाली ही ज्यादा मानवीय शासन व्यवस्था हो सकती है। व्यवहार में सर्वहारा की तानाशाही भी सोवियत संघ की अलग थी और चीन में अलग। भारत के संदर्भ ही से बात करें तो पश्चिम बंगाल पैकिंग का लोकतांत्रिक वामपंथ अलग तो केरल पैकिंग का लोकतांत्रिक वामपंथ अलग। खैर, आज का मुद्दा यह है भी नहीं लेकिन शुरुआत इस विचार से इसलिए की कि भारत में वर्तमान लोकतांत्रिक शासन प्रणालियां पूंजी द्वारा हड़काई जाकर पूंजीवाद को पोसने वाली होती जा रही हैं।
बीकानेर के संदर्भ से बात करें, नगर विकास न्यास के मनोनीत अध्यक्ष का जिले में सत्ता का मुख्य पद होता है। यहां के संदर्भ से बात करें तो सूबे की भाजपा सरकार ने पिछले लगभग ढाई वर्ष में इस पर किसी का मनोनयन नहीं किया है। मुख्यमंत्री ने अपने पिछले कार्यकाल में भी संघ और पार्टी कैडर को धता बता कर बीकानेर के इस पद पर धन्नासेठ को ही नियुक्ति दी। इस बार भी कहा जा रहा है कि इस मनोनयन की बोली पांच से शुरू होकर नौ करोड़ तक तो पहुंच गई और माना यह जा रहा है कि नौ करोड़ पर आंकड़ा इसलिए अटकाया है कि मौल-भाव के बाद बोली दस करोड़ पर छूट जाए। इस ही परिप्रेक्ष्य में बात करें तो जमीनों को इधर-उधर कर वैधानिक हैसियत देने वाले महकमें की मुखियाई अब जितनी देरी से मिलेगी, उगाही या कहें वसूली का समय मनोनीत को उतना ही कम मिलेगा। मनोनयन की यह पद प्रतिष्ठा लागत से दस-बीस गुणा फायदे की मानी जाती है और मनोनीत व्यक्ति अलग बिल्डर या जमीनों का कारोबार करता है तो फिर फायदे का अन्दाजा लगाना ही समझ से परे है।
बोली की इस बाणी को सुनकर इस मनोनयन के लिए न संघ कैडर के लोग मुंह धोने की सोचते हैं और न ही तथाकथित निष्ठावान भाजपाई पोंछने की। बोलीदाता वह ही बनता है जो अपने गोरखधंधों को आड़ और टग देने के लिए राजनीति में आया हो। यहां कुछ ऐसे भी बोलीदाता बन गए हैं जिन्होंने हाल-फिलहाल बोली देने को ही पार्टी सदस्यता हड़पी है।
पिछले एक वर्ष से जिस वैश्य समुदाय से लोग इस पद की दौड़ में लगे थे उन्हें शायद समझ आ गई कि उन्हीं के समुदाय से जब शहर का महापौर है तो न्यास अध्यक्ष जैसा दूसरा महत्त्वपूर्ण पद आबादी के न्यूनतम हिस्से वाले इसी समुदायी को मिलना मुश्किल होगा। कहा जा रहा है कि उनकी इस ठिठक से एक अन्य छोटे समुदायी के जमीन-धंधी को गुंजाइश मिल गई और मुख्यमंत्री की पिछली बीकानेर यात्रा के दौरान वे स्थानीय राजनीति में ऐसे प्रकट हुए जैसे राजू श्रीवास्तव अपने लाफ्टर शो में नवजोत सिद्धू को अवतार के रूप में प्रकट करते थे। इन महाशय की समझ तब चौड़े आ गई जब अपनी जमात के प्रदेश अध्यक्ष को कामधेनु समझ पूंछ पकड़ी और विधानसभा के बजट सत्र में विधायक की सीट पर जा बैठे। महाशय की समझ के तो अपने स्वार्थ होंगे लेकिन वे सूबे की इस सबसे बड़ी पंचायत की सुरक्षा, चौकसी और तत्परता को धता बताकर आधे घंटे तक विधानसभा की कार्यवाही में बिना जीते शामिल रहे, ये कम चिंता की बात नहीं है। कहते हैं पार्टी अध्यक्ष के पट्टों में घुसने के प्रयासों का पूरा लाभ उन्हें मिला और बिना किसी कानूनी दर्जगी के उन्हें लौटा दिया गया।
नगर विकास न्यास हो या नगर निगम, इन्हें जिस तरह से चलना है उसी तरह चलने देने के लिए वहां के कारिंदे इन जीते हुओं के और राजनीतिक नियुक्ति के माध्यम से आए हुओं के मुंह में अंगुली फेर कर दांतों का मुआवना करने में माहिर हैं और उसी अनुरूप उनके निवाले का आकार-प्रकार तय कर देते हैं।
भाजपा में कई कार्यकर्ता चिल्लाते रहते हैं कि न्यास को भू-माफियाओं को ना सौंपें लेकिन राज चलाना, उसे बनाए रखना और फील्ड में चुनाव जीतना दो-दो अलग सिद्धियां हो चुकी हैं। इन्हें साधने में कांग्रेस और भाजपा दोनों के शीर्ष सिद्धहस्त हैं और ऐसों की रुदाली के बावजूद गंगाप्रसादी हो लेती है।
वामपंथियों की बात शुरू करने का राग इतना ही है कि इस सर्वाधिक मानवीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को बचाए रखने के लिए धन की प्रतिष्ठा को समाप्त करना होगा और उत्पादन और शासन की गांव आधारित ऐसी प्रणाली पर विचारना होगा जो समाज के अन्तिम व्यक्ति पर केंद्रित विकेन्द्रिकृत हो। नहीं तो लूट की इस प्रणाली में हासिल बलशाली को ही होता रहेगा फिर वह चाहे धनबली हो या कोई बाहुबली।

23 मार्च, 2016