Thursday, March 19, 2020

दुआ करें, कोरोना वायरस के कहर से बचा रहे हमारा देश

"कोरोना वायरस हमारे देश के लोगों और हमारी अर्थ-व्यवस्था के लिए भी अत्यंत गंभीर खतरा है। मुझे लगता है हमारी सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही है। समय रहते इस पर सक्रियता जरूरी है।" राहुल गांधी, ट्विटर 12 फरवरी, 2020
"बर्बाद सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था और मुनाफे के खेल में गहरे डूबे निजी अस्पताल। कोरोना कहर बना तो लोगों को इलाज मिलना ही मुश्किल हो जायेगा। पक्की नौकरी वाले घर में रह सकते हैं। निजी क्षेत्र में 'वर्क फ्रॉम होम' हो सकता है। लेकिन छोटी नौकरियों और सेवा क्षेत्र के असंगठित लोगों के पास कोई चारा नहीं। न इतना पैसा कि महंगे निजी अस्पतालों में जा सकें।
जितना रोग मारेगा उतना ही यह सिस्टम भी। हालात यह है कि सरकार ने कोरोना से मरने वालों को चार लाख रुपये और पीडि़तों के इलाज का खर्च देने की अपनी घोषणा को कुछ घंटों में वापस ले लिया।
कोई नहीं जानता क्या होगा। मनाइए यही कि जैसे आया है, वैसे ही चला जाय यह।
फिर भी थोड़ी सावधानी में कोई हर्ज नहीं। कम से कम पब्लिक आयोजन, पार्टीज वगैरह रोक दीजिए? इसे राष्ट्रीय आपदा की तरह लीजिए।"       अशोककुमार पाण्डेय, फेसबुक, 16 मार्च, 2020

सोशल मीडिया से दो पोस्टें साझा की हैं, पहले उन राहुल गांधी का ट्वीट है जिनके कहे को ना जनता, ना मीडिया, ना सरकार, ना अन्य दल और ना ही खुद की पार्टी गंभीरता से लेती है। बावजूद इसके वर्तमान राष्ट्रीय राजनीति में वे अकेले राजनेता हैं जो आमजन से जुड़े मुद्दे समय पर उठाते रहे हैं। बानगी में कोरोना वायरस आपदा पर 12 फरवरी के उक्त उल्लेखित ट्विट ही को देख लीजिए, जिसमें उन्होंने केन्द्र की सरकार तो क्या खुद की पार्टी की राजस्थान सरकार के सक्रिय होने से एक माह पूर्व ही इस आपदा को गंभीरता से लेने को चेता दिया था।
इस आसन्न आपदा की भयावहता की जानकारी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी तभी हो गयी लगती है, तभी उन्होंने सभी यात्राओं, आयोजनों से अपने को किनारे कर प्रधानमंत्री निवास तक ही सीमित कर लिया। 
वहीं अभावों में गुजर-बसर करने वाली देश की आधी आबादी के लिए तो दूर की बात, शेष उस आबादी के लिए भी एडवाइजरी तक जारी करने में सरकार ने एक महीना लगा दिया जो अपनी न्यूनतम जरूरतें भी जैसे-तैसे ही पूरा कर पाती है।
हेकड़ीबाज अमित शाह को देश का शासन अनौपचारिक तौर पर सौंप कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस कबूतर की भांति निश्चित हो लिए हैं जो बिल्ली के सामने होने पर आंखें मूंद लेता है। हां, इन्हीं दिनों कुछ ट्विट उन सार्क देशों के लिए उन्होंने किए और 15 मार्च को एक संदेश भी प्रसारित किया, जबकि प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेन्द्र मोदी ने सार्क देशों के संगठन 'सार्क' को तवज्जुह देना लगभग बन्द कर दिया था। वर्तमान में इन दक्षिण एशियाई 7 देशों में से भूटान को छोड़ शेष 5 देश उस चीन की शरण में जा चुके हैं, जहां से यह वायरस आया और जिसने उस पर प्रभावी तरीके से काबू भी पा लिया।
चीन के बाद कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित इटली और ईरान-दोनों समृद्ध देश हैं। ईरान और इटली इस आपदा को संभाल नहीं पा रहे हैं। इस आपदा से पार पाने के लिए अमेरिका जैसे देश को आपातकाल घोषित करना पड़ा है। ऐसे में भारत का 'राम' ही मालिक है। 
ईरान-इटली में कोरोना वायरस की भयावहता जैसी स्थिति से पार पाने के लिए हमारा देश हरगिज तैयार नहीं है। अभावों में जीने वाली हमाररे देश की उस आधी आबादी को क्या उन उपायों के लिए सावचेत कर सकते हैं, जिसमें शोचादिनिवृत्ति के बाद स्वच्छता के साथ हाथ धोने की सजगता नहीं है और अधिकांश लोग तो कई-कई दिन तक नहाने के प्रति भी सचेत नहीं हैं। धार्मिक-सामाजिक मेलों में कैसी भी परिस्थितियों में अपने को शामिल होने से रोक नहीं पाते हैं। जरूरी होने पर रेलगाडिय़ों और बसों में धस्सम-धसाई की यात्रा कर लेते हैं। ऐसे में हत्यारे कोरोना वायरस से किस तरह से हम बचेंगे, समझना मुश्किल है।
व्यापार की बात करें तो पर्यटन उद्योग को छोडिय़े, नोटबंदी और अनाड़ीपने से लागू जीएसटी और डूबती बैंकों के बाद कोरोना का कहर भारत पर बरपा तो इस देश की अर्थव्यवस्था का हाल वह हो जाना है, जिसे फिर से खड़ा करने में कई दशक लग जायेंगे। ऐसे में सामन्ती मानसिकता से देश चलाने वाले नरेन्द्र मोदी और अमित शाह पर भरोसा कोढ़ में खाज का काम करेगा। 
सरकार द्वारा सुझाई जा रही सावचेती के मद्देनजर अंत में कड़वे व्यंग्य के साथ 'दिलप्रीत' की फेसबुक पोस्ट साझा करना जरूरी लगता है।

"लक्षणों से लगता है 'कोरोना' बेहद 'संभ्रांत' वायरस है। बस-ट्रेन का सफर इसे पसंद नहीं सिर्फ फ्लाइट में घूमता है। सुप्रीम कोर्ट-हाइकोर्ट से नीचे की अदालतों में नहीं जाता। कक्षाओं में जाता है पर परीक्षाओं से दूर रहता है। लग्जरी होटेल-रेस्टोरेंट में जाता है, लोकल ढाबों पर नहीं।
कांफ्रेंस-विधानसभा वगैरह में जाता है, मेले-सम्मेलेनों और बैंकों व सरकारी कार्यालयों में नहीं। मिट्टी में खेलकर बिना हाथ न धोने वालों पर यह ध्यान नहीं देता, लेकिन दिन में 48 बार हाथ धोने वाले इससे ग्रसित हो जाते हैं।"

ऐसे में खैर यही मनाइये कि कोरोना के कहर से हमारा देश बचा रहे। 
—दीपचन्द सांखला
19 मार्च, 2020