आम शहरी की समस्याएं ज्यों-की-त्यों हैं, शहर की न्यूनतम जरूरतों पर ना जनप्रतिनिधि सचेत हैं,
न ही प्रशासन तत्पर, ऐसे मेंं शासन से उम्मीदें कैसी? हां, समर्थ और
समृद्धों की पावली पांचाने में चलने लगी है, क्योंकि नेताओं को धन और मान इन्हीं से जो मिलता है। इसी सब के
चलते लम्बे समय से समर्थों की मीडियाई मांग—हवाई सेवा जयपुर के बाद दिल्ली से भी शुरू हो गई है।
स्थानीय सांसद और केन्द्र में राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल का यह कहना है कि
वे सत्तर सीटर विमान के लिए अड़े रहे, तभी मिला है। हो सकता है यह अड़त ही इस सेवा के बन्द होने का कभी कारण भी बने।
उद्घाटनी उड़ान को लगभग सवारियां भले ही मिल गई हो, बाद की उड़ानों के लिए पूरी सवारियों की उम्मीद मुश्किल
लगती है। यदि इस उड़ान को जैसलमेर से कोलकाता वाया दिल्ली-बीकानेर चलाया जाए तो
इसके सफल होने की पुरी गुंजाइश है। खैर, इन आशंकाओं और सुझाओं को 'कटकारा' ना मानें।
'कटकारे' से ध्यान आया कि
इस सेवा में 'प्रथम ग्रासे
मक्षिकापात' हो गया है।
मात्र समृद्ध शहरियों के लिए इस उपलब्धि के श्रेय को लेकर घमासान जारी है।
मुख्यमंत्री के समर्थकों को यह शिकायत है कि उपलब्धि का श्रेय अकेले अर्जुनराम
मेघवाल कैसे ले रहे हैं, एतराज के उनके
पास वाजिब कारण भी हैं। जब-जब वसुंधरा से सूबे की कमान लेने की बात चलती है
तब-तब अर्जुनराम मेघवाल का नाम मुख्यमंत्री के लिए चलाया जाता है, वसुंधरा
राजे इसलिए भी टेढ़ी रहने लगी है। हालांकि टेढ़े होने की वजह केवल इतनी ही नहीं
हो सकती।
जिस दिन दिल्ली से इस सेवा को हरी झंडी दिखाई गई, उस पूरे दिन राजे दिल्ली में ही थीं। उड्डयन
मंत्रालय की सौजन्यता होती तो वे मुख्यमंत्री को झंडी समारोह में ससम्मान
ले आते, ऐसा नहीं होने ने भी
प्रतिकूलता बढ़ाई है।
जिस भारतीय प्रशासनिक सेवा को छोड़ मेघवाल राजनीति में आए हैं, उसकी ट्रेनिंग में पात्रता व क्षमता से अधिक
हेकड़ी और रुतबा ओढ़े रखना सिखाया जाता है, सो जब-तब अर्जुनराम मेघवाल के अन्दर का अफसर-मन मुंह निकाल
लेता है और समस्याएं इस कारण भी जगह बना बैठ जाती हैैं। शुरुआती दिनों में
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ढेबरी टाइट रखने के बावजूद मेघवाल की अफसराई और अक्खड़पना गया
नहीं। रही बात पात्रता और प्रतिभा की तो वह यदि होती तो मंत्रिमंडल के ताजे फेरबदल में उनकी पदावनति नहीं होती। बहुत बाद राजनीति में आए मेघवाल की स्थानीय राजनीति के भोमियों
से भी पटरी संभवत: इसीलिए नहीं बैठती। अन्यथा कोई कारण नहीं जो देवीसिंह भाटी,
गोपाल जोशी के साथ उनका आंकड़ा छत्तीस का
लगातार बना रहे। वणिकों के बीच उठने-बैठने की बात करने वाले अर्जुनराम में वणिक
चतुराई भी आ जाती तो शायद उन्हें ये दिन नहीं देखने पड़ते।
बीकानेर में बाद की लाइन के अधिकांश भाजपा नेता और कार्यकर्ता ऐसी सावचेती
बरतते रहे हैं कि वसुंधरा या अर्जुनराम खेमे की छाप से बचें लेकिन हवाई सेवा के
लिए अर्जुनराम की श्रेय लेने की चतुराई ने ऐसे सभी नेताओं-कार्यकर्ताओं को कसौटी
पर लगा दिया। हुआ ये है कि इन नेताओं-कार्यकर्ताओं में से अधिकांश ने अखबारी विज्ञापनों और शहर में लगे होर्डिंग के
माध्यम से वसुंधरा राजे में अपनी निष्ठा अर्जुनराम को पूरी तरह नदारद कर जाहिर कर
दी है। यह भी उल्लेखनीय है कि हाल ही के इस घटनाक्रम को वसुंधरा की ओर से देवीसिंह
भाटी ही अंजाम देते लगें।
लोकसभा का आगामी चुनाव मध्यावधि होकर 2018 में विधानसभा चुनावों के साथ हो या समय पर 2019 में, यह चुनाव मेघवाल के लिए 2014 तो क्या 2009 जितना भी आसान नहीं रहेगा। 2009 में पुराने चेहरों से ऊबी जनता ने अर्जुनराम
को जिता दिया तो 2014 के चुनाव में
मोदी का भरमाना मेघवाल का काम कर गया।
बोदे होते और कुछ ना करवा पाने के चलते अर्जुनराम 2009 तो नहीं दोहरा पाएंगे। उधर सभी वादों को पूरा करने में असफल
मोदी की बची-खुची चमक नोटबंदी और हेकड़ी भरे अनाड़ीपने में लागू जीएसटी ने समाप्त
कर दी। साम्प्रदायिक ध्रवीकरण जैसे धत्कर्म के अलावा फिलहाल भाजपा के पास चुनाव जीतने
की कोई दूसरी तजवीज दीख नहीं रही है।
मोदी सरकार के पास एक सकारात्मक 'पासा' और भी है, यदि फेंके तो! संसद और विधानसभाओं में
स्त्रियों को सवा तैतीस प्रतिशत आरक्षण देना भाजपा के ऐजेन्डे में शामिल रहा है और
हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष और संप्रग की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने भी प्रधानमंत्री
को पत्र लिख कर इस संबंध में लोकसभा में विधेयक पारित करवाने की मांग कर दी है।
यदि यह विधेयक पारित होता है तो बीकानेर लोकसभा सीट पर भाजपा में अर्जुनराम के
विरोधी विकल्प के तौर पर डॉ. विमला डुकवाल का नाम चला सकते हैं। पार्टी हाइकमान को यदि लगा कि अर्जुनराम इस दफे कमजोर उम्मीदवार हैं तो उम्मीदवार बदलने में देर नहीं
लगेगी। स्त्रियों को सवा तैतीस प्रतिशत आरक्षण के बाद जिताऊ स्त्री उम्मीदवार की
मारा-मारी के बीच डॉ. विमला डुकवाल का नाम मजबूती से उभर कर आ सकता है। ऐसी आशंका
में ही अर्जुनराम के हित-साधक कुचरनी करने को ही सही, उनके बेटे रविशेखर का नाम खाजूवाला सीट से चलाने लगे हैं।
खाजूवाला सीट से फिलहाल डॉ. विमला डुकवाल के पति डॉ. विश्वनाथ दूसरी बार विधायक
होकर सूबे की सरकार में संसदीय सचिव हैं। इससे अपने को असुरक्षित मान डॉ.
विश्वनाथ असहज भी होने लगे हैं।
यदि भाजपा में ऐसा कुछ नहीं भी होता है और कांग्रेस इस सीट को निकालने की
धार-विचार ले तो डॉ. विमला डुकवाल कांग्रेस के लिए भी जिताऊ उम्मीदवार हो सकती हैं,
बशर्तें कृषि विश्वविद्यालय में डीन डॉ. विमला डुकवाल
यह जोखिम उठाने को तैयार हों।
—दीपचन्द सांखला
28 सितम्बर, 2017