Thursday, October 21, 2021

हरिद्वार में बीकानेर

भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर में बसे आम हिन्दुओं का हरिद्वार मुख्य तीर्थ है। गंगा किनारे बसा यह तीर्थ अस्थि विसर्जन के माहात्म्य की वजह से लोकप्रिय भी है। हिन्दुओं के शीर्ष तीर्थ बद्रीनाथ, केदारनाथ का रास्ता सदियों से हरिद्वार या हरद्वार होकर है, इसलिए भी इसका महत्त्व कम नहीं है। उत्तर भारत के दो बड़े राज्य उत्तरप्रदेश और बिहार, गंगा और अन्य नदियों से समृद्ध हैं सो नदियों के किनारे बसे इन दोनों राज्यों में दाह संस्कार के बाद अस्थियों का विसर्जन वहीं किये जाने की परंपरा है। अलावा इसमें आवागमन के साधनों की सुलभता के बाद से तीर्थयात्रा एवं पर्यटन के उद्देश्य से भी बहुत से श्रद्धालु एवं पर्यटक यहां आने लगे हैं। संभवत: इसीलिए हरिद्वार में उत्तरप्रदेश और बिहार की उपस्थिति बहुत कम देखने को मिलती है। अलावा इसके आवागमन के साधनों की सुलभता के बाद तीर्थ यात्रा एवं पर्यटन के उद्देश्य से भी बहुत से श्रद्धालु यहां आने लगे हैं। अन्यथा अब के पाकिस्तान के सिंध, बहावलपुर और पंजाब के साथ राजस्थान, हरियाणा, भारत के पंजाब और छोटी-मोटी उपस्थिति हिमाचाल प्रदेश की भी इस तीर्थ में मिल जाती है। लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से गुजरात और बंगाल भी यहां अपनी पूरी धमक के साथ मिलते हैं बल्कि जिस तरह पूरी की पूरी गलियां गुजराती-बंगाली साइनबोर्डों से पटी मिलती हैं, इसकी एक वजह इन दोनों राज्यों के लोगों की घुमक्कड़ प्रवृत्ति भी है। दशहरे के बाद हरिद्वार की कुछ गलियां बंगाल-गुजरात का लघु रूप ले लेती हैं। जबकि इन दोनों राज्यों में नदियां कम नहीं हैं, बंगाल में तो खुद गंगा हुगली के रूप में मिलती ही है।

अब हम अपनी पे आ लेते हैं। हरिद्वार में बीकानेर की उपस्थिति भी ठीक-ठाक है बल्कि सदियों पुरानी है। बीकानेर की आम बोलचाल में हरिद्वार नहीं हरद्वार बोला जाता है। 19वीं शताब्दी में बीकानेर रियासत के राजा डूंगरसिंह का बनाया गंगामाता का मन्दिर वहां आज भी सुरक्षित है। कुशाघाट मार्ग स्थित श्रवणनाथ घाट के सामने पशुपतिनाथ मन्दिर के एक कोने में बना यह मन्दिर वर्तमान में देवस्थान विभाग, राजस्थान की सपंत्ति है तथा वहां इस विभाग का दफ्तर भी लगता है जो मन्दिर तथा मन्दिर परिसर में बनी धर्मशाला का संचालन देखता है। यह मन्दिर अपने शिखर सहित पूर्ण सुरक्षित है, वहीं धर्मशाला के कमरे जर्जर होने लगे हैं। कोई यात्री वहां ठहरना भी चाहे तो राज्य कर्मचारी आगाह कर देते हैं कि पहले कमरे देख आएं और अपनी जोखिम पर ठहरना चाहें तो आवंटित कर देते हैं। इस धर्मशाला में शौचालय और स्नानघर कमरों से अलग बने हैं। खैर, यह सरकारी व्यवस्था है, जिसे बिगाड़ा हमने ही है। जब तक सरकारी सम्पत्ति को हम अपनी सम्पत्ति मानकर उसके लिए चौकस नहीं रहेंगे तब तक ऐसी सार्वजनिक सम्पत्तियां खुर्दबुर्द होती रहेंगी।

ऐसा सुना है कि उत्तरी भारत के अनेक तीर्थों में राजस्थान के रियासती समय के कई मन्दिर हैं। इन सभी मन्दिरों की व्यवस्था राजस्थान सरकार का देवस्थान विभाग देखता है। जयपुर रियासत द्वारा लम्बे-चौड़े परिसर में बनवाया ऐसा ही एक मन्दिर उत्तरकाशी में भी देखा, अब बेरौनक उस मन्दिर की देख-रेख के लिए राज्य कर्मचारी भी तैनात हैं। लेकिन जब हरिद्वार जाने वाले राजस्थान के तीर्थयात्रियों को हरिद्वार के गंगा माता मन्दिर की जानकारी नहीं है तो उत्तरकाशी जाने वालों को उस मन्दिर की जानकारी कैसे होगी। इसके लिए देवस्थान विभाग को राजस्थान के मुख्य अखबारों में प्रदेश से बाहर स्थित इन मन्दिरों तथा ऐसी सम्पत्तियों की जानकारी का विज्ञापन वर्ष में एकबार छपवाना चाहिए। ऐसा होगा तो लोग उन मन्दिरों में पहुंचेगे, पहुंचेगे तो वहां के कर्मचारी मुस्तैद भी रहेंगे और इन परिसरों की देखभाल भी ठीक ढंग से होगी।

18वीं शताब्दी की शुरुआत में बने नेपाल रियासत के जिस पशुपतिनाथ मन्दिर के एक कोने में गंगा माता का यह मन्दिर स्थित है, उससे लगता है कि जमीन का यह हिस्सा बीकानेर के राजा डूंगरसिंह के आग्रह पर नेपाल के राजा ने ही दिया होगा। शायद इसीलिए बीकानेर शिवबाड़ी मन्दिर का पंचमुखा शिवलिंग, हरिद्वार के इसी पशुपतिनाथ मन्दिर के शिवलिंग की प्रतिकृति है। ईस्वी सन् 1887 में मात्र 32 वर्ष की आयु में राजा डूंगरसिंह का निधन हो गया था। इसका मतलब उससे पहले, जब आवागमन के कोई खास साधन नहीं थे तब डूंगरसिंह एक से अधिक बार हरिद्वार गये होंगे और न केवल हरिद्वार में गंगा मन्दिर बनवाया बल्कि वहां के पशुपतिनाथ मन्दिर से प्रेरित होकर कसौटी पत्थर का वैसा पंचमुखी शिवलिंग की स्थापना के साथ बीकानेर में शिवबाड़ी मन्दिर का निर्माण भी करवाया।

हरिद्वार के इस गंगा माता मन्दिर के अलावा 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हरिद्वार की अपर रोड जब विकसित हो रही थी तभी वहां बीकानेर के माहेश्वरी समाज के तोषनीवाल कोठारी परिवार ने अपने पितृ पुरुष सदासुख कोठारी की याद में 'बीकानेर धर्मशाला' का निर्माण करवा दिया। बीकानेर के शासक महाराजा गंगासिंह जब लालगढ़ पैलेस का निर्माण करवा रहे थे, लगभग तभी ईस्वी सन् 1906 में कोठारी परिवार द्वारा बनवाई और दुलमेरा पत्थर से बीकानेरी स्थापत्य में सजी इस धर्मशाला को देखने से लगता है कि इसके निर्माण के लिए न केवल पत्थर बल्कि कारीगर भी बीकानेर से गये थे। दो भागों में बनी इस धर्मशाला के एक भाग में कमरे हंै तो दूसरे भाग में तीर्थयात्रियों के लिए स्नानघर, शौचालय और रसोवड़ा (खाना बनाने का स्थान) है।

इस धर्मशाला के साथ मेरी स्मृतियां 1968 से जुड़ी हैं जब अपने माता-पिता, अग्रज और भतीजी के साथ वहां ठहरा था, तब यह धर्मशाला सुव्यवस्थित थी। अब जब भी जाता हूं तो इस भव्य बनी धर्मशाला के लिए मन में एक आकर्षण महसूस करता हूं। लेकिन अब यह बहुत जर्जर अवस्था में है। व्यवस्था देखने वालों ने बताया कि देश के विभिन्न महानगरों और विदेश में बसे ट्रस्टी परिवार के वारिसों की अरुचि इतनी है कि यहां संभाल करने वालों से उनका संवाद तक नहीं है। एक ट्रस्टी कभी-कभार बात करते भी हैं तो कह देते हैं कि हमसे आप कोई उम्मीद न करें। आप चला सकते हैं तो चलाएं अन्यथा ताला लगा दें। धर्मशाला संभालने वाला स्थापना के समय से पीढिय़ां गुजार रहा परिवार बीकानेर के पुष्करणा समाज से है। प्रबंधकों का कहना है कि कमरों का कोई किराया तय नहीं, कोई देता है तो रसीद काट देते हैं। अन्यथा दुकानों से आने वाले किराये से जरूरी रख-रखाव कर लेते हैं।

कहने का आशय यह है कि तीसरी-चौथी पीढ़ी आते-आते इस तरह की ट्रस्ट-सम्पत्तियां ऐसी ही दुर्गति को हासिल हो जाती हैं। ऐसे कई उदाहरण बीकानेर में भी मिल जाएंगे, अन्यथा हरिद्वार जैसे स्थान में अपर रोड पर स्थित इस धर्मशाला को सुव्यवस्थित चलाने में कई परिवारों वाले भरे-पूरे व्यापारिक कुटुम्ब के लिए कोई बड़ा भार नहीं है। और तब और भी नहीं जब ऐसे तीर्थ स्थानों की धर्मशालाएं होटलों के लगभग बराबर किराया वसूलने लगी हैं।

बीकानेर की पहचान के साथ इन दो स्थानों के अलावा बीकानेर के मठों के दो आश्रम भी वहां हैं। इन दो आश्रमों में से एक बीकानेर के धनीनाथ गिरि पंचमन्दिर मठ का सोमेश्वर धाम नाम से बहुमंजिला आश्रम गंगा किनारे कनखल में है, आने-जाने वाले तीर्थ यात्री वहां ठहरते भी हैं। (सोमेश्वर धाम हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग साढ़े चार किमी दूर है, यहां तक विक्रम ऑटो टैक्सियां चलती हैं) दूसरा शिवमठ शिवबाड़ी के ब्रह्मलीन महन्त स्वामी संवित् सोमगिरि द्वारा इन्हीं वर्षों में बनवाया गया संवित् गंगायन आश्रम है। सुव्यवस्थित बना यह आश्रम है तो गंगा किनारे लेकिन कनखल से काफी दूर अजीतपुर गांव के जंगल में है। सड़क से काफी दूर बने इस आश्रम तक पहुंचने के लिए खुद के वाहन की जरूरत होती है क्योंकि परिवहन की कोई सार्वजनिक व्यवस्था वहां तक के लिए उपलब्ध नहीं है। (संवित् गंगायन आश्रम हरिद्वार रेलवे स्टेशन लगभग 10 किमी दूर है) इसलिए यह आश्रम तीर्थयात्रियों के लिए अनुकूल नहीं है लेकिन कई दिनों की साधना के लिए कोई जाना चाहे तो यह अन्य आश्रमों से बेहतर है। इस आश्रम के इर्द-गिर्द का क्षेत्र आगामी 50 वर्षों तक विकसित चाहे हो, लेकिन फिलहाल यह एकान्त साधना का ही आश्रम है।  ऐसे दूरस्थ आश्रमों, मन्दिरों और उत्तराखंड के अन्य स्थानों तक जाने के लिए हरिद्वार में प्रतिदिन के किराये के हिसाब से अब स्कूटर और मोटरसाइकिलें भी मिलने लगी हैं। इसके लिए नाममात्र की सुरक्षा राशि के साथ यात्री के पास ड्राइविंग लाइसेंस और आधार कार्ड का होना जरूरी है। 

बीकानेर के नाम से होटल, मिठाई की दुकान और रेस्टोरेंट भी हैं, पूरे देश में मिठाई-नमकीन के लिए बीकानेर का नाम चाहे चलता हो लेकिन हरिद्वार में बड़ा बाजार स्थित बृजवासी और मोती बाजार स्थित मथुरा वालों की प्राचीन दुकान की परम्परागत मिठाइयों और नमकीन का कोई मुकाबला नहीं है। इसके अलावा कनखल चौक स्थित पहलवान की खस्ता कचौरी खाने का आनन्द भी अपना अलग है।

हरिद्वार में बीकानेर के सन्दर्भ से और भी कुछ स्थान होंगे, लेकिन जितने अब तक देख पाया, लगा उतनों की जानकारी तो साझा कर ही दूं।

—दीपचन्द सांखला

21 अक्टूबर, 2021