Saturday, November 3, 2018

डॉक्टरों की हड़ताल : टकराव का रास्ता टालने की जरूरत (28 दिसंबर, 2011)

प्रदेश के सेवारत चिकित्सकों की हड़ताल को आठ दिन हो गए हैं। तमाम वैकल्पिक उपायों के बावजूद चिकित्सा सेवाओं की लगभग ठप हो चुकी स्थिति किसी से छुपी नहीं है। ऐसे हालात में टकराव का रास्ता छोड़कर बातचीत से इस गतिरोध को तोड़ने के सार्थक प्रयास होने चाहिए। चिकित्सकों की मांगें चाहे कितनी भी जायज हों, तर्कसंगत हों पर उन्हें भी समझना चाहिए कि उन्हें ‘भगवान’ का दर्जा देने वाली जनता का मूड तेजी से बदल रहा है। अपने रोगी को लेकर सरकारी अस्पताल में पहुंचने वाले परिजनों को इसके आगे कुछ दिखाई नहीं देता कि उन्हें समुचित चिकित्सा सुविधा मिले। जब ऐसा नहीं होता तो उनकी निराशा का आक्रोश हड़ताली चिकित्सकों पर फूटता है। इसका ही नतीजा है कि कहीं चिकित्सक हड़ताल के खिलाफ बाजार बंद किए जा रहे हैं तो कहीं हदों से बाहर जाकर चिकित्सकों के घर तोड़-फोड़ की घटनाएं हो रही हैं। लगातार गिरफ्तारियों और ‘रेस्मा’ के तहत कानूनी कार्रवाइयों का दबाव भी चिकित्सकों का मनोबल गिराने में भूमिका निभा रहा है। अड़तालीस घंटे से अधिक समय तक गिरफ्तार रहने वाले चिकित्सकों के निलंबन की कार्रवाई भी अमल में लाई जा रही है। इसी कारण कई गिरफ्तार चिकित्सक अब जमानत का रास्ता अपनाने लगे हैं। हो सकता है कि तथाकथित ‘दमनात्मक’ कार्रवाई से देर-सबेर अधिकांश हड़ताली चिकित्सक काम पर लौट आएं और चिकित्सा सेवाएं सामान्य होने लगें। इस तरह कुंठित मानसिकता में काम पर लौटे चिकित्सकों से किस तरह की सेवा भावना की अपेक्षा की जा सकती है? चिकित्सा सेवाओं को पुनः सुचारू करने के लिए अच्छा तो यही होगा कि राज्य सरकार को टकराव की नीति को त्यागते हुए ‘जनता का गुस्सा फूटने’ जैसे उकसाने वाले बयानों तथा बार-बार डॉक्टरों की शपथ का हवाला देने के बजाय खुलेमन से बातचीत के लिए आगे आना चाहिए। डॉक्टर को राज्य सेवा का चाहे कितना ही ‘इलीट’ वर्ग माना जाए लेकिन हैं तो वे भी सरकार के कर्मचारी, और इस नाते कर्मचारियों के अन्य वर्गों अथवा पड़ोसी राज्यों के चिकित्सकों से वेतन-सेवा शर्तों की तुलना के आधार पर अपनी मांग रखना अनुचित कैसे माना जा सकता है। राज्य सरकार तो अब हड़ताल खत्म होने पर वार्ता की बात कहने लगी है। लोकतंत्र में बातचीत का रास्ता बंद करना कहां तक उचित है। जनता को हो रही तकलीफों से निजात दिलाना सरकार का कर्तव्य है तो अपने ही वेतनभोगियों की न्यायसंगत मांगों पर भी उसे ही विचार करना है। अतः सरकार को गतिरोध समाप्त करते हुए टकराव का रास्ता त्यागकर बातचीत से समस्या का समाधान निकालना चाहिए।
--दीपचंद सांखला
28 दिसम्बर, 2011

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