Thursday, December 21, 2017

एलिवेटेड रोड योजना : इस अधूरे समाधान का जिम्मेदार कौन

अपने दकियानूस पुरुष प्रधान समाज के स्थानीय लोक में एक कहावत प्रचलित है—'काणी रे ब्याव में सो जोखा' यानी एक आंख वाली कन्या का जाहिर किए बिना विवाह करना हो तो उसमें सौ जोखिम होती है। ठीक यही बात बीकानेर कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या के समाधान में चरितार्थ हो रही है। शहर इस समस्या से बुरी तरह पीडि़त है लेकिन शासन, प्रशासन और शहर की नुमाइंदगी का दम भरने वाले किसी नेता को कभी इस पर गंभीर होते नहीं देखा गया। तब से ही नहीं जब 1990 बाद से समस्या पर पूर्व विधायक आरके दास गुप्ता सक्रिय हुए। चूंकि गुप्ता शुरू से ही बायपास जैसे अव्यावहारिक और असंभव समाधान के आग्रही रहे, कुछ नेता और अवसरवादी समर्थ तो उसके इसी समाधान में अपने हित की गोटियां बिठाने में लग गये, बिना ये विचारे कि बायपास व्यावहारिक भी है कि नहीं।
धन्यवाद तो 2005-06 में भाजपा की तब की वसुंधरा सरकार के समय आरयूआईडीपी की उस टीम को जिसके मुखिया से लेकर कर्ता-धर्ता सभी इस चेष्टा में लगे कि इसका संभव और व्यावहारिक समाधान क्या हो। उन्होंने समाधान के तौर पर एलिवेटेड रोड की योजना बनाकर सरकार को सौंपी भी। लेकिन बायपास के 'कड़ी-पकड़ों' ने तब इसे अंजाम तक नहीं पहुंचने दिया।
2008 से 2013 तक प्रदेश में कांग्रेस का शासन था। चुनाव हार चुके कांग्रेसी डॉ. बीडी कल्ला अपना राज होते भी निढ़ाल होकर निष्क्रिय हो लिए, कुछ करते भी तो वे बायपास ही का राग अलापते! इस तरह कांग्रेस के खाते में इस समस्या के समाधान का श्रेय नहीं डाला जा सकेगा। इस तरह बीते दस वर्षों में बढ़ती और विकराल हो चुकी इस समस्या पर अब कवायद फिर शुरू हुई है।  लेकिन जिस तरह की राज की व्यवस्था हो गई है उसमें 2005-06 वाली योजना का कोई अता पता ही नहीं। जनता का पैसा सरकार में जाकर जिस आवारगी से खर्च होता है उस ढर्रे में इस योजना को फिर से बनाने का काम निजी कम्पनियों को सौंपा गया। 'किसकी भैंस कौण नीरे' की तर्ज पर लगभग एक वर्ष से फोरलेन, थ्री-लेन की बनते-बनते यह योजना टू-लेन विद पेव्ड सोल्डर के बहाने 12 मीटर पर आ अटकीलेकिन है अब भी अधूरी।
दरअसल कोटगेट क्षेत्र के यातायात में महात्मा गांधी रोड से गुजरने वाला साठ प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा भीतरी शहर से कोटगेट होते हुए आने-जाने वालों का होता है। नई बनी इस एलिवेटेड योजना में इसे ही पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है। भीतरी शहर के यातायात को एलिवेटेड रोड की सुविधा देने के लिए 2005-06 के स्थानीय योजनाकारों ने तब इसका एक सिरा राजीव मार्ग पर उतारना तय किया था जिसे इस बार गायब कर दिया गया है। इस तरह यदि इसी योजना के तहत एलिवेटेड रोड बनती है तो वह समाधान अधूरे से कम ही कर पायेगी।
चौड़ाई जैसे बदलावों के साथ एलिवेटेड रोड यदि पुराने प्रारूप में बनती है तो बीकानेर के (पूर्व और पश्चिम दोनों) दोनों विधानसभा क्षेत्रों के बाशिन्दे इससे लाभान्वित होंगे। बावजूद इसके शहर के दस वर्षों से विधायकद्वय लगभग उदासीन देखे गये। पूर्व की विधायक सिद्धिकुमारी के वैसे भी अपने क्षेत्र से कोई खास सरोकार कभी देखे नहीं गये लगभग वैसा सा ही मिजाज पश्चिम विधायक गोपाल जोशी का है, अन्तर इतना ही है कि गोपाल जोशी का चेहरा शहरियों को दीखता रहता है, सिद्धिकुमारी का तो वह भी नहीं। इन दोनों ही विधायकों के खाते में शहर के विकास को लेकर कोई उल्लेखनीय काम दर्ज नहीं किया जा सकता सिवाय श्मशानों और सामुदायिक भवनों के जो प्रकारान्तर से संबंधित समाजों का दायित्व है। जिन्हें ये अपने कोटे का दुरुपयोग कर वोट समूहों को पुख्ता करने का वहम पालते हैं।
गोपाल जोशी पिछले एक अरसे से कहने को एलिवेटेड रोड समाधान पर अनुकूल देखे गये लेकिन कहा जा रहा है कि उनकी रुचि इसमें ज्यादा थी कि एलिवेटेड रोड का स्टेशन वाला सिरा उनकी दुकान से पहले ही उतर जाए। बस इसी बदलाव में तकनीकी कारणों से उसका राजीव गांधी मार्ग वाला सिरा योजना से गायब हो गया। कहा यह भी जा रहा है कि सानिवि मंत्री इस योजना के लिए जब बीकानेर आए तब सर्किट हाउस में गोपाल जोशी ने अकेले की गुफ्तगू में उनसे पक्का आश्वासन ले लिया कि एलिवेटेड रोड का भराव वाला (Embankmenk) हिस्सा उनकी दुकान के आगे नहीं आना चाहिए। पाठकों की जानकारी के लिए बता दें कि 2005-06 वाली और अभी पहले बनी योजना में एलिवेटेड रोड का स्टेशन वाला सिरा मोहता रसायन शाला के आगे तक जाना था। यदि ऐसा होता तभी उसका राजीव गांधी मार्ग वाला सिरा बनना तकनीकी तौर पर संभव हो पाता। तकनीकि विशेषज्ञों द्वारा दुर्घटनाओं की दुहाई देना बहाना है, राज जैसा चाहता है, योजना उसी अनुसार बन जाती है।
इस समाधान की तकनीकी व्यावहारिकता पर एक सुझाव तो सात दिसम्बर के अपने आलेख में दिया था। दूसरा, जिसमें दुर्घटना की आशंका और भी कम हो सकती है, वह यह कि राजीव मार्ग से एलिवेटेड रोड पर जाने के लिए वन-वे रोड बनाई जाए और एलिवेटेड रोड से राजीव मार्ग पर आने के लिए स्टेशन रोड स्थित आबकारी विभाग के आगे से डाइवर्टेड एलिवेटेड रोड भी निकाली जा सकती है। लेकिन तब इस रोड का भराव-हिस्सा मोहता रसायन शाला तक ले जाना होगा।
वर्तमान पश्चिम विधायक अपनी अनुकूलता के साथ अपने विधानसभा क्षेत्र के बाशिन्दों की सुविधा का खयाल भी करते तो वे इसे बिस्किट गली तक समाप्त करवाते हुए सरकार से ऐसी योजना भी बनवा सकते थे जिससे शहर के भीतरी यातायात को एलिवेटेड रोड का लाभ मिल पाता।
विधायक गोपाल जोशी अब भी चाहें तो त्यागी वाटिका के पास स्थित सीएमएचओ और स्काउट गाइड कार्यालयों के बीच से होते हुए फोर्ट स्कूल मैदान पीछे के सादुल स्कूल मैदान वाले सिरे की तरफ सड़क निकलवा कर उसे राजीव मार्ग के अणचाबाई अस्पताल डाइवर्जन से मिलवाने की योजना भी साथ ही साथ पारित करवा सकते हैं। यदि गोपाल जोशी ऐसा करवाते हैं तो कम से कम इस योजना में करवाए गये बदलाव के चलते स्वार्थी होने के कलंक से वे कुछ हद तक मुक्त हो सकते हैं अन्यथा यह शहर उन्हें हमेशा कोसेगा। अगला चुनाव चाहे उन्हें नहीं लडऩा हो लेकिन उनके बेटे-पोते कभी लड़ेंगे तो जवाब उन्हें देना होगा।
इस शहर की बड़ी प्रतिकूलता यही है कि विकास की उत्कट इच्छा करने वाला कोई जनप्रतिनिधि इसे अभी तक नहीं मिलाराजकुमार किराड़ू, गोपाल गहलोत, विजय आचार्य, यशपाल गहलोत, जेठानन्द व्यास, अविनाश जोशी, विजयमोहन जोशी आदि-आदि भी शहर की नुमाइंदगी करने की इच्छा को तो पाले दिखते हैं लेकिन इनके पास भी इस शहर के विकास का ना तो कोई खाका है और ना ही कोई तकलीफ। बस रुतबा मिल जाए, इससे ज्यादा कुछ विजन (दृष्टि) इनमें से किसी में भी नहीं दिखता।
दीपचन्द सांखला

21 दिसम्बर, 2017

Sunday, December 10, 2017

मध्यप्रदेश के पत्रकार जीतेन्द्र सुराना की पोस्ट : यह दौर आपातकाल से ज्यादा इस तरह भयावह है।


मैंने आपातकाल में भी पत्रकारिता की थी। जी हाँ 1975 से लेकर 1978 तक मैं मंदसौर से प्रकाशित दैनिक दशपुर दर्शन का नीमच संवाददाता था और अखबार के संपादक थे सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार बालकवि बैरागी के अनुज श्री विष्णु बैरागी।
आपातकाल के उस दौर में एक दिन मैं अपनी साइकिल से नीमच के थाने के सामने से गुजर रहा था।मैंने वहाँ देखा कि थाने के खुले मैदान में एक लड़का और लड़की बैडमिंटन खेल रहे हैं और बैडमिंटन की नेट पकड़ कर खड़े हैं पुलिस के दो जवान! उस समय मेरी उम्र जरूर 20 वर्ष के आसपास थी लेकिन वो दृश्य देखकर मेरा न्यूज़ सेंस एकाएक जाग गया! मैं थाने में प्रवेश कर गया और वहाँ मौजूद दीवानजी  से बैडमिंटन खेल रहे बच्चों के ,एवं नीमच थाने के कुल पुलिस बल के बारे में जानकारी ली।
अगले ही दिन दशपुर दर्शन के मुख पृष्ठ पर समाचार प्रकाशित हो गया।उस समाचार में पुलिस स्टाफ की भारी कमी के साथ प्रमुख बात थी "मंदसौर के एसपी उत्पल के बच्चे नीमच के सेंट्रल स्कूल में पढ़ने के लिए एक निजी बस चित्तोड़-अरनोद, से आते हैं।स्कूल की छुट्टी और बस के मंदसौर वापसी के बीच करीब दो घंटे का अंतराल रहता था इस दौरान बच्चे थाना परिसर में ही रहते थे और चूंकि बच्चे एसपी साहब के थे तो पूरा स्टाफ उनकी सेवा और देखभाल में लगना स्वाभाविक ही था सो समाचार में पुलिस स्टाफ की कमी के साथ ही आरक्षकों की अलग अलग जगह लगने वाली ड्यूटी के साथ यह बात भी प्रमुखता से प्रकाशित हुई कि स्टाफ की कमी के बावजूद एसपी उत्पल के बच्चे जब थाना परिसर में बैडमिंटन खेलते हैं तो पुलिस के दो जवान नेट पकड़कर अपनी ड्यूटी बजाते हैं!
एसपी और उनके बच्चों को लेकर इस तरह की खबर छपने के बाद स्वाभाविक है बवाल तो मचना ही था। उस समय नीमच के एसडीओ पुलिस थे स्वराज पुरी(जो कि बाद में मध्यप्रदेश के डीजीपी बने) उन्होंने मुझे इस समाचार पर मेरा बयान लेने के लिए उनके कार्यालय पर बुलाया।संपादकजी से चर्चा की तो उन्होंने आश्वस्त किया कि डरने की कोई बात नही है,बेख़ौफ़ होकर बयान दो!मैं बयान देने पहुंचा और स्वराज पूरी ने मुझसे फुसलाकर यह उगलवा लिया कि पुलिस बल की संख्या की जानकारी किसने दी तो मैंने बचपने में पुलिस के दीवानजी बनेसिंहजी का नाम बता दिया। दूसरे दिन मुझे पता चला कि पुरी साहब ने उन दीवानजी को लाईन हाजिर कर दिया है।
लेकिन आपातकाल के उस आतंक के माहौल में पुरी जैसे दबंग आईपीएस की हिम्मत नही थी कि मुझ जैसे एक कम उम्र के नौजवान पत्रकार पर हाथ डाल दे!
और अब देखिए आज का दौर जबकि नीमच से 350 किमी दूर खरगोन में मेरे फेसबुक मित्र वहां के डीआईजी ए के पांडे को शासन के एक निर्णय पर कसे एक व्यंग और तंज पर इतना बुरा लग जाता है कि खरगोन थाने में मेरे विरुद्ध बलात्कार सहित कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हो जाता है! यह है आज को दौर जो शायद आपातकाल से भी कई गुना बदतर है!

Thursday, December 7, 2017

आधा-अधूरा एलिवेटेड रोड : डा. गोपाल जोशी और सिद्धिकुमारी के लिए धर्म निभाने और रुतबा दिखाने का अवसर

बीकानेर शहर की बड़ी प्रतिकूलता यह रही है कि इसे अभी तक ऐसा कोई जनप्रतिनिधि नहीं मिला जो इसके विकास की समझ रखता हो, कुछ करने-करवाने का इतना जुनून रखता हो कि उसे सपने भी इससे संबंधित ही आएं। वोट लेने आने वाले दावे तो कई करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद उनके दावों का हश्र वही होता है जो उनकी पार्टी के चुनावी घोषणापत्रों का होता है। जीते हुए प्रतिनिधियों के काल में रूटीन में कुछ कार्य हुए तो अगले चुनावों में उन्हीं की सूची बना वोट लेने फिर हाजिर हो जाते हैं।
पिछले पचीस से ज्यादा वर्षों से कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या पर शहर में खदबदाहट है। समाधान पर असहमतियों के बावजूद इसका उल्लेख जरूरी है कि पूर्व विधायक एडवोकेट रामकृष्ण दास गुप्ता लगातार मोर्चे पर डटे हुए हैं। एलिवेटेड रोड जैसे इस व्यावहारिक समाधान को लेकर लूनकरणसर से विधायक मानिकचन्द सुराना की सक्रियता भी उल्लेखनीय है। लेकिन मजाल है कि शहर का कोई जनप्रतिनिधि इस मसले पर पूरे मन से व्यावहारिक तौर पर सक्रिय हुआ हो।
इसीलिए इस आलेख के शीर्षक में शहर के दोनों विधायकों का आह्वान किया है। दस-बारह वर्षों से ही सही समस्या का सर्वाधिक व्यावहारिक समाधान एलिवेटेड रोड किसी मुकाम तक पहुंचता दीख रहा है, लेकिन आधा-अधूरा। सरकारी कामों में बिगड़े तारतम्य का यह अनोखा उदाहरण है। 2005-06 में इन्हीं वसुंधरा राजे के शासन में एलिवेटेड रोड की योजना बनी, तब यह काम आरयूआईडीपी को दिया गया। तब इसके मुखिया सरदार अजित सिंह ने, जिन्होंने केन्द्र के परिवहन मंत्रालय के मुख्य अभियंता पद से सेवानिवृत्त होकर यह जिम्मेदारी संभाली, इस योजना का प्रारूप बनाने के लिए स्थानीय अभियन्ताओं का सहयोग लियाहेमन्त नारंग और अशोक खन्ना की सेवाओं और रेलवे के एन. के. शर्मा की सलाह से तब जो योजना बनी वह पूर्ण व्यावहारिक थी।
बात अब दुबारा बनी एलिवेटेड योजना के मिनिट्स के हिसाब से कर लेते हैं, महात्मा गांधी रोड जिसे केईएम रोड भी कहा जाता है, पर आवागमन करने वाला यातायात लगभग 60 प्रतिशत से ऊपर वह है जिसे कोटगेट के भीतर की ओर से आना और जाना होता है। इसी के मद्देनजर कोटगेट की तरफ आने-जाने वालों की सुविधा का ध्यान रखते हुए तब बनी योजना में एलिवेटेड रोड का एक सिरा राजीव मार्ग पर उतारा गया था। यानी शार्दूलसिंह सर्किल, रेलवे स्टेशन और राजीव मार्ग इन तीनों सिरों के साथ तब बनी योजना कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या का समाधान अधिकांशत: करती। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि सौ फीसदी समाधान की तकनीक विज्ञान अभी तक विकसित नहीं कर पाया है। अत: अधिकतम पर सन्तोष करना लाचारी है।
अब जब यह समाधान सिरे चढ़ता दीख रहा है तो आधा-अधूरा। आधा-अधूरा इसलिए कि अब बनी योजना में राजीव मार्ग वाले सिरे को गायब कर दिया गया है। ऐसे में इस अधकचरे समाधान पर शहर अपने को ठगा महसूस क्यों ना करें? दरअसल इस योजना की जो कंसल्टिंग एजेन्सी आईसीटी है, ऐसा लगता है वह इसे शुद्ध राष्ट्रीय राजमार्ग के तौर पर ही देख-समझ रही है। शायद उसे इसी तरह देखना समझाया गया हो। जबकि इस योजना को राष्ट्रीय राजमार्ग के तौर पर देखने का मकसद मात्र केन्द्र से वित्तीय संसाधन जुटाना भर ही है। असल में तो यह शहरी यातायात की समस्या है। इसलिए होना तो यह चाहिए था कि इसे उसकी असल जरूरतों के अनुसार ही बनाया जाता। चूंकि कंसल्टिंग एजेन्सी इसे राष्ट्रीय राजमार्ग के तौर पर ही देख रही है इसलिए राजीव मार्ग के तिराहे से वह इसलिए बचना चाह रही है कि इससे दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ेगी, यह सही भी है। यदि यह एलिवेटेड रोड राष्ट्रीय राजमार्ग पर होता तो तेज रफ्तार के चलते दुर्घटना की आशंकाएं होती भी।
लेकिन यह एलिवेटेड रोड तो शहर के उस हिस्से में बनना है जहां यातायात की रफ्तार ही सामान्यत: 20-25 कि.मी. के ऊपर की संभव नहीं है। जयपुर का उदाहरण लें तो तेज रफ्तार जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर ट्रांसपोर्ट नगर के बाद जो फ्लाइओवर बना है उसमें से एम.आई. रोड की तरफ जाने के लिए तीसरा सिरा निकाला गया। यह सुविधा शहर के उस बाहरी हिस्से में विकसित की गई है जहां भारी वाहनों के साथ यातायात की रफ्तार सामान्यत: तेज रहती है। बीकानेर कोटगेट क्षेत्र में तो यातायात इससे आधी रफ्तार में भी नहीं होगा और भारी वाहनों के आवागमन का तो कोई मसला भी नहीं है।
बीकानेर शहर की इस समस्या के अधिकतम समाधान के लिए एलिवेटेड रोड का राजीव मार्ग वाला सिरा 'टू-वे' रखना भी जरूरी है, यह सावचेती इसलिए जरूरी है कि कंसल्टिंग एजेन्सी कल को कहीं 'वन-वे' का ही विकल्प दे।
राजीव मार्ग वाला सिरा 'टू-वे' रखना तकनीकी तौर पर संभव है। इस एलिवेटेड रोड योजना में कुल चौड़ाई आधार मार्ग के संकरेपन के चलते 12 मीटर ही तय हो पाई है। लेकिन नागरी भण्डार के आगे जहां राजीव मार्ग वाला सिरा एलिवेटेड रोड से मिलेगा, वहां के आधार मार्ग की चौड़ाई अन्य सड़कों की चौड़ाई से ज्यादा है, ऐसे में एलिवेटेड रोड पर बनने वाले इस तिराहे के तीनों ओर पर्याप्त तकनीकी दूरी तक एलिवेटेड रोड की चौड़ाई 14 मीटर (जो बिना तोड़-फोड़ के संभव है) कर आगे 12 मीटर में मिलान की जा सकती है। अलावा इसके इस तिराहे पर संभावित दुर्घटनाएं रोकने के लिए तीनों ओर 14 मीटर की चौड़ाई तक मैटल बीम क्रेश बेरियर (एम सी बी) का डिवाइडर दिया जा सकता है। इसके साथ ही एलिवेटेड रोड के इस तिराहे पर ट्रेफिक लाइटें लगा कर तथा 14 मीटर के 'टू-वे' पर एक तरफ मिल रही साढ़े पांच मीटर सड़क पर मीडियेटर लेन डालकर भी यातायात को संयमित किया जा सकता है। ऐसे में एलिवेटेड रोड के तिराहे को तकनीकी तौर पर खारिज करना उचित नहीं लगता।
इतनी सब खेचल का मकसद यही है कि जब काम हो ही रहा है तो अधिकतम सुविधावाला हो। और इसके लिए शहर अपने जनप्रतिनिधियों से उम्मीदें नहीं करे तो किनसे करेगा? बीकानेर पश्चिम विधायक डा. गोपाल जोशी और बीकानेर पूर्व विधायक सुश्री सिद्धिकुमारी के लिए विशेष ध्यानार्थ ही इसका शीर्षक लगाया है। इस एलिवेटेड रोड का अधिकांश हिस्सा चाहे बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में हो लेकिन सिद्धिकुमारी को ध्यान होना चाहिए कि इस एलिवेटेड रोड का उपयोग करने वालों में 20 से 25 प्रतिशत वे लोग भी होंगे जो पूर्व विधानसभा क्षेत्र के मतदाता हैं और जिन्हें किसी ना किसी काम से कोटगेट के अन्दर और रेलवे स्टेशन की ओर आने-जाने का काम पड़ता है।
दीपचन्द सांखला

07 दिसम्बर, 2017