Thursday, November 1, 2018

दुनिया में और भी कई गम है.... (23 दिसंबर, 2011)

डॉक्टर हड़ताल पर हैं। अपने जिला कलक्टर डॉ. पृथ्वी भी डॉक्टरी पढ़े हैं। कल पीबीएम अस्पताल पहुंचे तो उनकी पढ़ाई भी जाग गई। डॉक्टरों की सीट खाली थी तो खुद ही बैठ गए और टटोलने लगे नब्ज मरीजों की। कानों में लगाकर ध्वनि से रोग को पहचानने में सहायक उपकरण को भी काम में लिया। रुक्के में दवाइयां जेनरिक लिखी या ब्रांडेड हमें नहीं पता। पता करने की कोशिश भी नहीं की। उधर करौली के एक डॉक्टर विलायत से लौटे तो घर छुट्टियां मनाने, लेकिन वो भी बैठ गए मरीजों को देखने।
वैसे इतिहास और परम्परा में प्रतीकों और प्रतीकात्मक घटनाओं को बड़ा प्रेरक माना गया है। उनसे प्रेरित वही होता होगा जिनमें कुछ संवेदनाएं शेष रहीं या रहती हो। यहां हम हड़ताली डॉक्टरों पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। करौली के उन डॉक्टरबाबू का तो पता नहीं अपने जिला कलक्टर का डॉक्टर की कुर्सी पर बैठना प्रतीकात्मक ही माना जायेगा। वो अगर पूरी तरह बैठते तो फिर जिले को कौन सम्हालता। ‘दुनिया में और भी कई गम हैं मोहब्बत के सिवा’ की तर्ज पर कहते हैं इन कलक्टरों को ढाई सौ से ज्यादा तरह की कमेटियों और संस्थाओं की पदेन अध्यक्षता करनी होती है। सम्पन्न घरों में बच्चों को यह कह कर रोज 5-10 बादाम खिलाए जाते हैं कि इससे दिमागी ताकत बढ़ती है। अब हमसे यह ना पूछियेगा कि यह कलक्टर लोग रोज कितने बादाम खाते होंगे। हमने तो कभी यह जानने-पूछने की जरूरत नहीं समझी। लेकिन यह जानने की इच्छा जरूर है कि खाने की किस वस्तु से डॉक्टरों सहित समाज के सभी लोगों को अपने कर्तव्यबोध का ज्ञान हो सकता है! किसी को भी पता चले तो हमें जरूर बताइएगा, हमें खुद अपने से ही उसे आजमाना शुरू करना है।
-- दीपचंद सांखला
23 दिसम्बर, 2011

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