Thursday, January 29, 2015

'सोशल साइट्स' बन्दर के हाथ में उस्तरा भी साबित होती है।

राजीव गांधी के 1984 में प्रधानमंत्री बनने के बाद 21वीं सदी में ले जाने के उनके नारे का विश्लेषण कई तरीकों से हुआ जिनमें एक यह भी था कि 1 जनवरी, 2000 में सूर्य क्या पश्चिम से निकलने लगेगा। पता नहीं राजीव गांधी का उक्त कथन दूरदर्शिता लिए था या महज एक राजनीतिक सपना लेकिन जिस तरह की संचार क्रान्ति आई है उससे अचम्भे शब्द के मायने ही बदल गये। इन्टरनेट और स्मार्टफोन ने संचार के जो विकल्प, उपलब्ध करवाये हैं उस पर 2009 की अपनी शुरुआती फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि 'संचार के ये साधन सबकुछ खोल देंगे' यानी छिपा कुछ भी नहीं रह सकेगा। यूट्यूब, वाट्सएप और अन्य कई ऐसी इंटरनेटी चौपालें आने के बाद पांच साल पहले कही बात साबित होती लग रही है। गूगल, विकीपीडिया अन्य कई माध्यमों ने सूचनाएं उपलब्ध करवाने के जो मंच दिये वह तो अद्भुत हैं हीं, अलावा इसके अपनी रुचियों और कुरुचियों को सहलाने की सभी तरह की युक्तियां इक्कीसवीं सदी के इन संचार साधनों ने इस नेट पर डाल रखी हैं। हम अपनी-अपनी रुचि-कुरुचि से ज्ञानार्जन कर सकते हैं, आनन्द ले सकते हैं-और लालसाएं भी पूरी कर सकते हैं। यह आप पर निर्भर करता है कि अपने विवेक का इस्तेमाल किस तरह करें।
पिछले तीन-चार दिनों से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की दिल्ली यात्रा के दौरान और बाद की फेसबुक, ट्विटर पोस्टों और प्रतिक्रियाओं के सन्दर्भों पर विचारने पर उक्त सब स्मरण हो आया।
इन सोशल साइटों पर ओबामा की 'घर वापसी' और उसके बाद उनका संघ गणवेश में साड़ी में थोड़ा घूंघट लिए मिशेल की फोटोशॉपी तो हलके-फुलके आनन्द के लिए थी लेकिन सात-आठ महीनों की सांप-सूंघी शान्ति के बाद मन की कुछ मैल भी फिर झांकने लगी। जनसंघ के दिनों में निष्ठा पर कभी कोई संशय नहीं देखा गया। लेकिन 1977 के बाद जनता पार्टी में उठे दोहरी सदस्यता के मुद्दे के बाद 1980 में जनसंघ रूपान्तरित भारतीय जनता पार्टी में दोहरी निष्ठा जरूर दिखने लगी। भाजपाइयों की पहचान दो रूपों में होने लगी। एक भाजपाई वे जो संघनिष्ठ हैं और दूसरे वे जो गैर संघी भाजपाई हैं। संघ से आशय भारतीय जनता पार्टी की पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है हालांकि इसे स्पष्ट करने की जरूरत नहीं है फिर भी करने में कुछ हर्ज नहीं। 'पार्टी विद डिफरेंस' के दावे वाली भाजपा में अब तक संघनिष्ठ मानते रहे कि उनके इस लेबल पर कालिख गैर संघी भाजपाई लगाते रहे हैं लेकिन इस इक्कीसवीं सदी में पुष्ट यह हो रहा है 'पार्टी एज कांग्रेसÓ बनाने में बड़ी भूमिका मोदी और शाह जैसे संघनिष्ठ भाजपाई ही निभा रहे हैं, गैर संघी भाजपाई तो मात्र इनके कहार की भूमिका में ही हैं।
संघ और भाजपा की बात के बाद सोशल साइट्स की बात पर लौट आते हैं जिससे पता चलता है कि भाजपा में निष्ठा का भी रूपान्तरण होने लगा है। संघनिष्ठों के साथ मोदीनिष्ठों की एक बड़ी जमात ने पिछले सवा साल से यहां अपनी पहचान बनायी है। कुछेक संघनिष्ठों और गैर संघी भाजपाइयों के अलावा बड़ी संख्या में जुड़े नये लोगों को मोदीनिष्ठ होना ज्यादा सुविधाजनक लगा। उम्मीद करनी चाहिए कि इस नयी निष्ठा के पनपने के बाद पार्टी में निष्ठाओं को लेकर कोई द्वंद्व नहीं होगा।
लम्बे समय तक सूचनाओं का माध्यम रहे समाचार पत्रों और आकाशवाणी के अतिरिक्त, दूरदर्शन और उनके बाद आए खबरिया चैनल लगभग व्यवस्थित माध्यम माने जाते हैं। लेकिन इन सोशल साइट्स ने लगभग अराजक विकल्प देकर विवेकी असमंजसताओं को बढ़ा दिया है। विभिन्न पार्टियां और निष्ठाओं के अराजक जहां एक-दूसरे की निष्ठाओं की छिछालेदर करने से नहीं चूकते वहीं संघनिष्ठ अपनी परम्परागत चतुराई से इन नये साधनों का दुरुपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। ऐसे में सत्य-असत्य और प्रामाणिक अप्रामाणिक का निर्णय बिना विवेक के संभव नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी के मात्र बातों के रसोइये साबित होने के बाद से लो-प्रोफाइल हुए कट्टरपंथी हर समय ऐसे अवसरों की तलाश में रहते हैं कि अपनी खाज कैसे मिटाएं। मुजफ्फरनगर के दंगे इन्हीं सोशल साइटों के माध्यम से गुमराह करके करवाए गये और इन्हीं सोशल साइटों के माध्यम से दोनों ओर के नासमझों ने आग में घी का काम किया।
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड खत्म होते होते मुख्य मंच का एक फोटो वायरल किया जाता है जिसमें राष्ट्रगान के दौरान प्रोटोकॉल अनुरूप राष्ट्रपति तिरंगे को सलामी देने की मुद्रा में खड़े हैं तो उनके बायीं ओर बराक ओबामा और भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी सावधान की मुद्रा में तो दायीं ओर प्रधानमंत्री मोदी और रक्षामंत्री पर्रीकर सैल्यूट की मुद्रा में हैं।  इसे वायरल करने का मकसद और पहचान तुरन्त इसलिए हो गई कि उन्होंने इन पांचों में से केवल हामिद अंसारी को ही हड़काया कि ये देश के झण्डे को भी सैल्यूट नहीं करना चाहते। संघ और मोदीनिष्ठ की मिलीजुली इस जमात ने यह जानना भी जरूरी नहीं समझा कि इस अवसर का प्रोटोकॉल क्या है। शाम होते-होते जाहिर हो गया कि इस अवसर पर केवल राष्ट्रपति ही सलामी देते हैं, इस तरह मोदी और पर्रीकर ने ही अति उत्साह में प्रोटोकॉल को तोड़ा है। इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि इन सोशल साइट्स का उपयोग अराजक मानसिकता वाले किस तरह करते हैं।
लेकिन इसमें दो राय नहीं कि इस नये प्रकार के मीडिया ने जहां सूचनाओं के ढेरों माध्यम उपलब्ध करवाए वहीं इस तक पहुंच रखने वाले प्रत्येक को अपने को अभिव्यक्त करने का हौसला और माध्यम दोनों दिए हैं। जरूरत इस अराजक माध्यम का उपयोग विवेक से करने की है। यदि वह अपने में विकसित नहीं कर पाते हैं तो यह माध्यम बन्दर के हाथ में उस्तरे से कम साबित नहीं होता।

29 जनवरी, 2015