Thursday, July 27, 2023

भाटी : पगलिये करने को फिर आतुर

 लगता है कि देवीसिंह भाटी फिर से सामाजिक न्याय मंच की ओर लौटने का मन बना चुके हैं। उनके हवाले से खबर है कि गोचर-ओरण की रक्षा के नाम पर वे यात्रा पर निकलेंगे। कटारिया प्रकरण के बावजूद उनको लगता है कि इसके लिए पार्टी से पूछने की जरूरत नहीं है। पर्यावरण उन मुद्दों में से एक है जिन पर अपनी जरूरत के अनुसारजब चाहे सवार हो जाओऔर जरूरत हो तो बिसरा दो। पर्यावरण एक ऐसा निर्विवाद मुद्दा भी है जिसे सुर्खियां देना टीवी-अखबार वाले भी अपना धर्म समझते हैं। जिस तरह से भाटी बता रहे हैं उससे साफ जाहिर है कि वे प्रदेश पार्टी सुप्रीमो वसुन्धरा राजे से दो-दो हाथ करने का पूरा मानस बना चुके हैं, ऐसा वे इस सदी के शुरू में भी कर चुके हैं, जब वसुन्धरा राजे को राजस्थान के भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किये जाने की तैयारियां की जाने लगी थी और भाटी की महत्त्वाकांक्षाओं को भारी धक्का लगा। भाटी को पिछली सदी के आखिरी दशक से यह लगता रहा है कि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री हो सकते हैं। इसी के चलते 2003 के विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंनेराजस्थान सामाजिक न्याय मंचकी स्थापना की और केवल अपनी एक सीट से ही सही उन्होंने 12वीं विधानसभा में अपनी पार्टी की उपस्थिति दर्ज करवा दी। लेकिन 2008 के चुनावों तकभुवाजी के मन और फूफाजी के लेने आनेकी तर्ज पर वे पार्टी में लौट आए थे।

अभी हाल में पार्टी के एक बड़े दिग्गज गुलाबचन्द कटारिया की यात्रा को लेकर राजनीति में उनसे काफी जूनियर किरण माहेश्वरी द्वारा मचाए बवाल और उसके बाद कटारिया का बैकफुट होना भाजपा में आश्चर्यजनक घटना इसलिए मानी जाती है कि कटारिया पार्टी में केवल बड़े नेता माने जाते हैं बल्कि आरएसएस की चले तो वे प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार भी हों। सभी जानते हैं कि किरण माहेश्वरी ने अभी वह हौसला हासिल नहीं किया है कि वह अपने बूते कटारिया से भिड़ सकें-उनकी पीठ पर वसुन्धरा राजे के दोनों हाथ थे।

प्रदेश भाजपा में वसुन्धरा का व्यवहार अब मात्र सुप्रीमो तक का ही नहीं है बल्कि उससे भी ऊपर दादागिरी सा ही देखा जाने लगा है। इन सब परिस्थितियों में देवीसिंह भाटी का पार्टी से बिना पूछे यात्रा का शिगूफा छोड़ना साफ-साफ सन्देश देना है कि वे सामाजिक न्याय मंच को पुनर्जीवित करने का मन बना चुके हैं।

अपने छोटे-मोटे विरोधियों को भी कांच दिखाने के मूड में हमेशा रहने वाली वसुन्धरा एक अरसे से या कहें राजनाथ सिंह के समय से ही पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व को भी धारती नहीं हैं। भाजपा मुगलकालीन इतिहास के उस दौर को चरितार्थ करती दीख रही है, जिसके लिए कहा जाता है कि केन्द्र जब-जब कमजोर होता है, क्षत्रप मुंह उठाने लगते हैं।

भाटी यह भी भूल रहे हैं कि सामाजिक न्याय मंच के प्रथम दौर के महेन्द्रसिंह भाटी जैसे राजनीति को बेहद धैर्य से एक्जीक्यूट करने वाले अब उनके पास नहीं हैं। जो देवीसिंह भाटी की कमियों के लगभग पूरक के रूप में हमेशा उपस्थित रहते थे। अलावा इसके भाटी का स्वास्थ्य और उम्र दोनों ही उनके साथ कदमताल करते नहीं दीखते है। जरूरत उन्हें चतुराई से अपनी शेष राजनीतिक पारी खेलने की है और इस सचाई को समझने की भी कि वे मुख्यमंत्री हो सकने की हैसियत का भरोसा पार्टी में बनाने में सफल हुए हैं भौगोलिक दृष्टि से देश के इस सबसे बड़े राज्य के मतदाताओं के बीच लोकप्रिय होने में !!

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दीपचन्द सांखला

29 सितम्बर, 2012