Saturday, February 28, 2015

बीड़ में महापौर

रियासत काल में नगरपालिका के स्टोर को भैंसाबाड़ा कहा जाता था। क्योंकि शहर से कचरा उठाने के विशेष गाड़ों को भैंसे खींचते थे। ये भैंसे सरकारी होते थे। शाम को काम निबटने के बाद भैंसे, गाड़ों और झाड़ू-छाजले आदि-आदि भी यहीं लौटा दिए जाते थे। बीकानेर में चौखूंटी से मुख्य डाकघर की तरफ जहां नगर निगम का स्टोर है उसे आज भी भैंसाबाड़ा क्षेत्र कहा जाता है। इसी तर्ज पर निगम कार्यालय को भी भ्रष्टबाड़ा कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। बीकानेर की पालिका क्रमोन्नत होते-होते परिषद और नगर निगम बन गई है। ऐसे ही यहां काम करने-करवाने के तौर तरीके बद से बदतर होते गये। यहां प्रशासक हो या अध्यक्ष-महापौर उसे अपना कार्यकाल इस दफ्तर के ढर्रे के हिसाब से ही पूरा करना होता है अन्यथा वह कर कुछ नहीं सकता। इनमें से किसी को अपना व्यक्तिगत भी कुछ करवाना होता है तो वह खुद भी किसी रूप में पुनर्भरण के बिना करवा नहीं सकता-लिए किए का हिसाब किताब होता ही है।
नये महापौर भाजपा के नारायण चौपड़ा बने तो शहर में बात यह होने लगी कि ये कहीं पिछले महापौर भानीभाई को अच्छा तो नहीं कहलवा देंगे! इस पर सहमति बहुत कम ही आई। क्योंकि भानीभाई ने महापौरी भोगने के अलावा कुछ किया ही नहीं। इस दफ्तर में कार्य शायद ही कोई करवा सकता है शायद इसीलिए कि इस दफ्तर को भगवान भरोसे कहा जाता है। भगवान यदि हैं और उनका काम इस दफ्तर से पड़ जाये तो लेना-देना वे चाहे करें उन्हें कोई बड़ी सिफारिश तो करवानी ही होगी। फिर भी काम होने के तरीकों में कोई फर्क नहीं आयेगा। इस दफ्तर में जो ले-देकर काम करवाता है उसे भी कई चक्कर तो फिर भी लगाने होंगे और उसने यदि देने का जोम दिखा दिया तो हो सकता है दो बात सुननी भी पड़ जाए। ऐसे में कोई यह वहम लेकर पहुंच जाये कि जब कागजात और अन्य औपचारिकताएं पूरी हैं तो काम क्यों नहीं होगा! उसका एक-एक बट निकाला ही जाता है, काम से भी गया सो अलग।
तीन-चार दिन से बीकानेर का नगर निगम और महापौर सुर्खियों में हैं। इस शहर में रुपये में बारह आना निर्माण कार्य बिना अनुमति के होते हैं, और जो अनुमति से भी हो रहे हैं, उनके नक्शे से निर्माण का मिलान करना चकरघिन्नी से कम नहीं होता। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि इस दफ्तर को जन्म-मृत्यु और शादी-विवाह प्रमाण पत्र के साथ मरने की इजाजत देने का काम भी दे दिया जाय तो शहर में वेन्टीलेटरों की जरूरत बढ़ जायेगी। शहर में वेन्टीलेटरों का अच्छा खासा व्यापार शुरू हो जायेगा। यमदूतों को संभालने खुद यमराज को ही पृथ्वी पर आना पड़ जाय! क्योंकि इस इजाजत में कई दिन तो लगेंगे ही।
इस दफ्तर का दुस्साहस देखो कि खुद महापौर के मुहल्ले के तीन अवैध निर्माणों को बिना उन्हें भनक लगाए सीज कर आए। अब महापौर की स्थिति बड़ी विचित्र हो गई। इधर मुहल्ले वाले जान खाएं तो उधर दफ्तर वाले कहें कि हमने गलत क्या किया है। बिना इजाजत निर्माण हो रहा हो तो नियमानुसार कार्यवाही तो करनी ही होती है। इसमें इस तर्क की ताकत जरा कम हो जाती है कि शहर में अवैध निर्माण तो सैकड़ों हो रहे हैं, कार्यवाही यहीं क्यों। अब यह भी कोई प्रश्न हुआ क्या कि आपकी नजर क्या कुछ देखती है और क्या नहीं। इनके नजर के चश्मे आप भी 'काला' करवा देते तो आप भी नहीं दीखते।
महापौर ने ताव में सीज के जिम्मेदारों में से कुछ को हटाने का आदेश जारी कर दिया है। निगम अधिकारियों और कर्मचारियों को लगा कि महापौर हाव खोलने लगे हैं और ज्यादा खुल गया तो रास्ता हो जायेगा। इसी सावचेती में निगम अधिकारियों-कर्मचारियों ने भी महापौर पर काउण्टर दबाव बनाने के लिए मोर्चा खोल दिया। इस तरह महापौर मोहल्ला- बिरादरी और निगम कार्मिकों की बीड़ में लिए हैं। देखना यही होगा कि वे बीड़ से साफ-सुथरे निकल आते हैं या कोई कलर लेकर। रही बात शहर की तो उसकी नियति चमगूंगे से ज्यादा की नहीं है। वर्षों से भुगत रहा है-यानी शहर वोट भी देता है और भुगतता भी है।

28 फरवरी, 2015