एक शब्द है शिष्टाचार। ज्ञान मण्डल के हिन्दी शब्दकोश में इसके अर्थ---शिष्ट व्यक्तियों का आचार, व्यवहार, सदाचार, विनम्रता, किसी समाज संस्था या कार्यालय द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार आचरण और फॉरमैलिटी दिया गया है। हिन्दी के प्रामाणिक माने जाने वाले इस वृहत हिन्दी शब्दकोश में शिष्टाचार का एक मतलब ‘फॉरमैलिटी’ दिया तो ठिठकना लाजमी था कि कोशकार ने ‘औपचारिकता’ ना लिखकर देवनागरी में फॉरमैलिटी ही क्यों लिखा। फादर कामिल बुल्के के अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश को टटोला तो बात कुछ खुलती नजर आयी। बुल्के ने अपने शब्दकोश में फॉरमैलिटी के दो अर्थ दे रखे हैं, पहला औपचारिकता और दूसरा उपचार। दूसरे दिये गये इस अर्थ उपचार से शिष्टाचार का एक अर्थ फॉरमैलिटी भी खुलता-समझने आने लगता है और जब उपचार के विभिन्न अर्थों तक पहुंचते हैं तो बारिश बाद की धूप की तरह सबकुछ चिलकने लगता है। उपचार का सामान्य या लोकाचारी अर्थ इलाज से है लेकिन हिन्दी शब्दकोश कई छायाओं के साथ उसके अलग-अलग अर्थ बताता है जैसे सेवा, इलाज, चिकित्सा, विधान, पूजानुष्ठान, पूजा के अंग या द्रव्य, अभ्यास, व्यवहार, उपयोग, शिष्टाचार, प्रार्थना, चापलूसी, दिखाऊ, रस्मी व्यवहार, बहाना, नमस्कार का एक ढंग।
किसी शब्द के विभिन्न अर्थों की जानकारी के अभाव में अकसर यह मान लिया जाता है कि इस शब्द का दुरुपयोग हो रहा है, लेकिन ऐसे भ्रमों पर यदि शब्दकोशों को टटोला जाय तो असल अर्थ खुलते चले जाते हैं।
शिष्टाचार शब्द से मुठभेड़ की जरूरत इसलिए आन पड़ी कि कई दिनों से बटबटी उन खबरों को लेकर थी जिनसे पता चलता है कि किसी भी तरह से समर्थ यथा अधिकारी, नेता, धनपति आदि-आदि के अभिनन्दन या सम्मान का अवसर लपकने वालों की जमात समाज में लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे लपकों का अधिकांशतः मकसद या तो उनकी किसी कृपा से उॠण या कर्जमुक्त होना होता है या इसी बहाने उन तक पहुंच बना कर उनकी कृपा का भागी होना होता है। ऐसे कृत्यों में ऐसों के साथ वे लोग भी तत्काल शामिल हो जाते हैं जो समानाकांक्षी होते हैं। परिजनों शुभ-चिन्तकों और मित्रों को तो साथ हो ही लेना होता है।
शिष्टाचार शब्द से मुठभेड़ की जरूरत इसलिए आन पड़ी कि कई दिनों से बटबटी उन खबरों को लेकर थी जिनसे पता चलता है कि किसी भी तरह से समर्थ यथा अधिकारी, नेता, धनपति आदि-आदि के अभिनन्दन या सम्मान का अवसर लपकने वालों की जमात समाज में लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे लपकों का अधिकांशतः मकसद या तो उनकी किसी कृपा से उॠण या कर्जमुक्त होना होता है या इसी बहाने उन तक पहुंच बना कर उनकी कृपा का भागी होना होता है। ऐसे कृत्यों में ऐसों के साथ वे लोग भी तत्काल शामिल हो जाते हैं जो समानाकांक्षी होते हैं। परिजनों शुभ-चिन्तकों और मित्रों को तो साथ हो ही लेना होता है।
शिष्टाचार शब्द के बारे में विचार करते हुए अब तक मानते रहे थे कि उक्त उल्लेखित औपचारिकताओं में इस शब्द का दुरुपयोग हो रहा है, दरअसल ये स्वागत, अभिनन्दन सम्मान वगैरह-वगैरह इस जमाने के लोकाचार हो गये हैं जिनकी कोटिंग शिष्टाचार शब्द से कर दी जाती है। शब्दकोश टटोला तो मामूल हुआ कि यह शिष्टाचार शब्द अपने को कितने अर्थों में बरतने की छूट देता है।
पन्द्रह-बीस वर्ष पुराना एक वाकिया याद आता है। किन्ही की सेवानिवृति थी, उनके सहकर्मी को उनका अभिनन्दन पत्र लिखवाना था सो उन्होंने सहयोग के लिए अपने किसी शुभचिन्तन से सम्पर्क किया। उनकी दौड़ जिस लेखन-पठन के सम्पर्की तक थी, उन तक ले गये। सेवानिवृत होने वाले के सहकर्मी ने अपनी जरूरत बताई तो उनके शुभ-चिन्तक बीच में बोल पड़े कि कोई ऐसा लिखारा बताओ जो कई प्रकार की झूठी प्रशंसाओं को सिलसिलेवार खूबसूरती से लिख सके, बस अभिन्नदन पत्र हो जायेगा।
अब जब भी इन अभिनन्दनों, सम्मानों, सेवानिवृत्ति आयोजनों और यहां तक कि शोकसभाओं में शिरकत करते हैं या उनके समाचार पढ़ते-सुनते हैं तब तब लगता है कि ऐसा करने वालों का मन तो स्वार्थी, कृपाओं, औपचारिकताओं से ढका होता है। मृतकों की बात तो नहीं करेंगे लेकिन जो अभिनन्दित हो रहे होते हैं, उनके मन में ऐसे झूठे सम्मान को स्वीकारते हुए ग्लानि का भाव रंच मात्र नहीं आता या कहें कि ऐसे लोग अभिनन्दन, सम्मान के इन मौकों पर जीवन में लोकाचार के नाम पर जैसा भी आचरण वे करते रहे हैं, वह सब बिना अपने मन को मारे नहीं किया होगा और जब मन ही नहीं रहा तो ग्लानि कैसी।
इस लिखे को पढ़ते वक्त एक सावधानी जरूर बरतनी है कि जिनका मन सचमुच अपने किसी को इन सम्मानों और अभिनन्दनों के योग्य मानता है और इन सम्मान आयोजनों को अंजाम देने वाले भी उन्हें सचमुच उनका पात्र मानते हैं, ऐसे सभी लोगों को ऊपर सब लिखे को अपने पर नहीं लेना है।
30 जुलाई, 2013