कहा जाता रहा है कि लगभग सभी सरकारी आयोजन या तो खानापूर्ति होते हैं या सार्वजनिक धन की बर्बादी का माध्यम। जनवरी के पहले पखवाड़े को कहें तो यह बीकानेर के लिए उत्सवी पखवाड़ा है, चाहे ऊंट उत्सव की बात करें या फिर कला, साहित्य एवं संस्कृति-मेले की। अखबारों की रिपोर्टों को देखें तो कॉमनवेल्थ गेम्स की तर्ज पर ऊंट उत्सव की तैयारियां शायद आयोजन तक पूरी ना हों! इसी तरह साहित्य, कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान के सहयोग से जिला प्रशासन द्वारा आहूत ‘कला, साहित्य एवं संस्कृति मेले’ के निमन्त्रण पत्र को देखें तो साफ जाहिर होता है कि आनन-फानन में केवल कार्यक्रम ही तय किये गये हैं। कौन, कब क्या करेगा, बोलेगा या अपनी प्रस्तुति देगा, आयोजक तय नहीं कर पाये हैं। यहां तक कि माता कि जागरण, पाबूजी की फड़ और रामदेवजी के भजनों का कार्यक्रम जहां होंगे, उनके स्थान तक का उल्लेख नहीं है। शहर के मुखर लोग अपने शहर की गंगा-जमुनी संस्कृति के बखान करते नहीं अघाते हैं, लेकिन इस कला, साहित्य एवं संस्कृति मेले के कार्यक्रमों में वो गंगा-जमुनी संस्कृति शायद नदारद है। प्रस्तुतियों का स्तर कैसा होगा, देखने-गुनने की बात जरूर होगी?
-- दीपचंद सांखला
05 जनवरी, 2012
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