Friday, November 23, 2018

नगर विकास न्यास, बीकानेर : मक्खन जोशी से मकसूद अहमद तक (7 फरवरी, 2012)

पिछली सदी के आठवें दशक की बात है, देश में और प्रदेश में आजादी के बाद की पहली गैर कांग्रेसी सरकारें राज कर रही थीं। आम-अवाम की उम्मीदें अलग तरह की अंगड़ाई ले रही थीं। बीकानेर के नगर विकास न्यास के अध्यक्ष के रूप मक्खन जोशी मनोनीत हुए। इसी दौरान सार्वजनिक शहरी जमीनों पर कब्जे भी धड़ाधड़ होने लगे। जरूरतमंदों की छतों के साथ भू-माफियाओं की चारदीवारियों से जगह-जगह ढिंगाणियां बस्तियां आकार लेने लगीं। तब के विपक्षी (कांग्रेसी) सहमे से थे वहीं अपने वोट से प्रदेश और देश की सरकार बनवाने वालों में से कई लगभग बेलगाम मनःस्थिति में। कांग्रेसी खुली-दबी जबान से न्यास पर कब्जे करवाने के आरोप लगाने लगे। तब मीडिया मुखर तो था पर आज की तरह हाका नहीं करता था। सप्ताहांत और मरुदीप तब शहर के दो चर्चित साप्ताहिकों में थे। कब्जों को लेकर मरुदीप में एक रिपोर्ट छपी। इसमें भू-माफियाओं द्वारा किये जाने वाले कब्जों का तो विरोध था लेकिन छतों के असल जरूरतमंदों का पक्ष इस भाव के साथ लिया गया कि इन्हें जहां कहीं से भी हटाया जायेगा--वे रहेंगे जमीन पर ही, हवा में तो रह नहीं सकते। एक जगह से उजड़-विस्थापित होकर बसेंगे यहीं कहीं, तो उनकी इस यंत्रणा से छुटकारा स्थाई होना चाहिए। मरुदीप में छपी यह रिपोर्ट चर्चा में इसलिए रही क्योंकि इसके प्रबंध संपादक मक्खन जोशी स्वयं थे और प्रधान संपादक नन्दकिशोर आचार्य।
आज जब मोहता सराय के विस्थापितों को न्यास द्वारा भूखंड आवंटित कर बसाने का समाचार पढ़ा तो मरुदीप की उस रिपोर्ट का स्मरण हो आया। न्यास अध्यक्ष मकसूद अहमद की इस पहल को सकारात्मक, मानवीय और व्यावहारिक कहा जा सकता है। मकसूद अहमद से उम्मीद की जाती है कि वे भू-माफियाओं के अनुचित दबाव में आये बिना न्यास की सभी कब्जाई जमीनों को इसी भावना से पुनर्नियोजित करें। काम यह मुश्किल जरूर है क्योंकि लगभग सभी भू-माफिया अब राजनीति भी करने लगे हैं, बावजूद इसके न्यास की जमीनों को पुनर्नियोजन नामुमकिन नहीं। जरूरतमंदों को इस तरह से छत मिलने लगेगी तो वे इन भू-माफियाओं के टूल नहीं बनेेंगे, वे सीधे न्यास को और तदनंतर मकसूद अहमद को इसका श्रेय देंगे। श्रेय लेने की अटकल है हाजी मकसूद में, ऐसा कई बार देखा गया है।
-- दीपचंद सांखला
7 फरवरी, 2012

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