Tuesday, November 20, 2018

बीकानेर का नया आर टी ओ कार्यालय (14 जनवरी, 2012)

दुपहिया वाहनों के रजिस्ट्रेशन व लाइसेंस बनाने और उनके नवीनीकरण की सुविधा रथखाना स्थित कार्यालय में देने की मांग की खबर आज के अखबारों में है। शहर से लगभग पन्द्रह किलोमीटर दूर आरटीओ के कार्यालय को स्थानान्तरित करने की प्रक्रिया जब शुरू हुई थी तब भी राजनेताओं से लेकर आम उपभोक्ताओं तक किसी ने इस पर विचार नहीं किया कि आम जरूरत के इस ऑफिस को शहर से 15 किलोमीटर दूर, वो भी नेशनल हाइवे से लगभग 500 मीटर अन्दर बनवाने का औचित्य भला क्या है? वह इलाका आज भी न केवल निर्जन है बल्कि इसका मार्ग सर्वाधिक दुर्घटना संभावित हाइवे से होकर जाता है। जिसमें लाइसेंस बनवाने या नवीनीकरण करवाने वाले को स्वयं उपस्थिति देनी होती है। यह भी कि इस कार्यालय से सबसे ज्यादा जिनका काम पड़ता है वे, किशोर और युवा होते हैं या फिर ऐसे लोग हैं जो अपने जीवन में किसी दुपहिया वाहन के होने का सपना पूरा होता देखते हैं! उक्त कार्यालय को उस जंगल में जगह आवंटित करवाने से पहले शायद ही इस तरह से विचार किया गया हो!
हमारे शहर में विकास के नाम पर ज्यादातर निर्णयों को प्रभावित करने वाले हमारे राजनेता आमजन की सुविधा-असुविधा का ध्यान करने से ज्यादा अपने और अपने परिजनों के हितों का खयाल ज्यादा रखते हैं। यह आरटीओ ऑफिस भी इसी मानसिकता का शिकार हुआ था। शहर में यह चर्चा आम है कि पिछले तीस वर्षों में शहर में हुए प्रत्येक कार्य को अपनी उपलब्धियों में गिनाने, यहां तक कि पिछले तीस वर्षों में होने वाले सामान्य और सहज विकास के कार्यों को भी अपने खाते में गिनाने से नहीं चूकने वाले एक राजनेता के परिजन की वहां जमीन थी और उस जमीन की कीमत को बढ़ाने के लिए ही आरटीओ ऑफिस को वहां ले जाया गया। होना तो यह चाहिए था कि जहां कहीं भी आबादी क्षेत्र समाप्त हो रहा था वहीं इस कार्यालय को स्थानान्तरित किया जाता!
-- दीपचंद सांखला
14 जनवरी, 2012

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