Saturday, November 3, 2018

ये सुर्खियां बटोरूं नुमाइंदे (26 दिसंबर, 2011)

रतन बिहारी पार्क क्षेत्र में कल जब सुलभ कॉम्पलेक्स का निर्माण कार्य शुरू हुआ तो कुछ लोगों ने विरोध करके रुकवा दिया। इससे पहले भी लगभग तीस वर्ष पूर्व जब इसी पार्क परिसर में सूचना केन्द्र और रंगमंच का निर्माण शुरू होने वाला था इसी तरह कुछ लोगों ने विरोध किया और मामले को न्यायालय में ले गये। अभी पिछले दिनों इसी पार्क परिसर में दोनों मन्दिर भवनों के पीछे स्थित मैदान में पार्किंग बनाने की घोषणा हुई तो फिर विरोध हुआ और मामले को न्यायालय में ले जाया गया।
आजादी के बाद से विकास का आदर्श जब शहरी विकास को ही मान लिया और गांवों से पलायन कर लोग-बाग शहरों में बसने लगे तो शहरों पर बोझ अंधाधुंध बढ़ने लगा है। ऐसे में यदि आवश्यक सेवाओं को उपलब्ध ना करवाया जाय तो भी परेशानी और अगर प्रशासन इसकी व्यवस्था करता है तो कुछ ऐसे लोग जिनके कुछ स्वार्थ भी हो सकते हैं या इन्हीं बहानों से सुर्खियों में रहना चाहते हैं--आड़े आ जाते हैं। यह कहने का मानी यह कतई नहीं है कि हमेशा ऐसा ही होता है--कई बार इस तरह के विरोध के सार्वजनिक हित के पुख्ता कारण भी हो सकते हैं, लेकिन देखा गया है कि ऐसा बहुत कम होता है कि किसी योजना या कार्य का विरोध व्यापक सार्वजनिक हित में किया गया हो।
रतन बिहारी पार्क परिसर के बहाने से बात करें तो उसमें पार्किंग का विरोध करने वाले उसके आस-पास कोई अन्य इतना बड़ा स्थान बता सकते हैं जहां पार्किंग बन सके। क्या वो इस बात की गारंटी लेते हैं कि भविष्य में इस स्थान का दुरुपयोग होने से रोक पायेंगे। इसी मैदान में कब्जे होने शुरू हो गये हैं, अनधिकृत रास्ते निकाल लिए गए हैं। लोग-बाग खुले में शौच करते हैं बल्कि सुना गया है मन्दिर परिसर के खांचों का उपयोग अनैतिक कार्यों के लिए भी किया जाता रहा है। विरोध करने वाले इस तरह के निर्माण में गुणवत्ता नहीं बरतने पर कितना विरोध करते हैं? या उन्होंने कभी इस तरह का विरोध किया है। क्या शहर में संचालित सुलभ शौचालयों में पर्याप्त सफाई या स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है या तय शुल्क से ज्यादा पैसे तो नहीं लिए जा रहे हैं।
कल के विरोध का बड़ा कारण यह बताया गया कि दोनों तरफ मन्दिर हैं। जबकि प्रस्तावित सुलभ कॉम्पलेक्स मन्दिर परिसरों से पर्याप्त दूरी पर बनना है। क्या शहर के कई मन्दिर परिसरों में ही शौचालय नहीं बने हैं, इस तरह का विरोध करने वालों की असली मंशा क्या है? रतन बिहारी पार्क वर्षों से उजाड़ और दुर्दशा का शिकार है। इस पार्क परिसर का उपयोग जिस तरह से होने लगा है वो क्या सब उचित है। क्या इन विरोध करने वालों ने कभी इसकी दशा सुधारने का सकारात्मक प्रयास किया है--फिर चाहे वह औपचारिक भर ही हो। आम लोगों को इस तरह सुर्खियां बटोरू लोगों के साथ बिना सोचे-समझे नहीं खड़ा होना चाहिए।
टीवी-अखबारों से भी गुजारिश है कि वो ऐसी खबरों को सुर्खियां देने से पहले इसके अन्य पहलुओं पर भी विचार करें कि जब शहर बढ़ रहा है तो उसके लिए उपरोक्त तरह की सार्वजनिक सुविधाओं की जरूरतें भी बढ़ती हैं। सार्वजनिक मामलों में सकारात्मक सोच की जरूरत है।
--दीपचंद सांखला
26 दिसम्बर, 2011

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