‘खबर है कि निजी स्कूलों के विद्यार्थियों को घर से स्कूल और स्कूल से घर पहुंचाने वाली बसों के ऑपरेटरों ने हड़ताल कर दी। हड़ताल का जो कारण दिया जा रहा है वह बड़ा विचित्र है। ये बसें जिन स्कूलों के विद्यार्थियों को लाती-ले जाती हैं, वे स्कूल इन बसों की साख भरने को तैयार नहीं हैं। मतलब वे यह लिखकर देने से इन्कार करती हैं कि फलां बस हमारे स्कूल के विद्यार्थियों को लाती-ले जाती है। जबकि परिवहन विभाग ने ऐसा जरूरी इसलिए कर दिया कि कुछ अनियमितता या दुर्घटना होने पर सम्बन्धित स्कूल भी अपना उत्तरदायित्व समझें।
27 जुलाई 2013, ‘विनायक’ सम्पादकीय का अंश
उक्त पंक्तियों को लिखे कल तीन दिन भी नहीं बीते कि संभाग के हनुमानगढ़ जिले में एक निजी स्कूल बस उसके ड्राइवर की हड़बड़ी के चलते ट्रक से जा भिड़ी। जिससे ग्यारह बच्चों की मौत हो गई और शेष जो घायल हैं वह अपने जीवन को किस तरह सहेजेंगे कहना मुश्किल है।
आज के अखबारों ने अपनी यह कह कर ड्यूटी पूरी कर ली कि बच्चों को स्कूल लाने ले जाने वाले वाहनों के लिए क्या-क्या नियम-कानून-कायदे हैं। साथ ही यह भी कि शहर में कहां-कहां, किस-किस तरह से इन नियम-कायदों का उल्लंघन हो रहा है। अखबार ही क्यों एक बारगी तो पूरे प्रदेश का प्रशासन, पुलिस महकमा और परिवहन विभाग भी मुस्तैद हुआ है। कुछ धर-पकड़ाई होगी, कुछ बसों के परमिट रद्द होंगे और स्कूलों को हिदायतें दी जायेंगी।
दिल्ली अकसर आने जाने वाले ये देखते हैं कि जब-जब कोई आतंकवादी घटना होती है तो उसके बाद कुछ दिनों के लिए ऐसी घटनाओं को रोकने से सम्बन्धित सभी तरह के पुलिस और बल दिल्ली के विभिन्न चौराहों और भवनों पर चाक-चौबंद नजर आने लगते हैं। कुछ समय बाद वे इस तरह गायब होते दिखते हैं, जैसे कि वे आतंकवादियों के लिए अगली वारदात करने का अवकाश छोड़ रहे हैं।
इस तरह की किसी घटना-दुर्घटनाओं के बाद की इस तरह की मुस्तैदी की तुलना ‘मसाणिया बैराग’ से कर सकते हैं। शहर में यह अखाणा प्रचलित है कि किसी दाह संस्कार के समय के दौरान होने वाली वैराग्य की या कोई समर्थ है तो श्मशान भूमि में कुछ खर्च करने की बातों को हमारे यहां मसाणिया वैराग कहा जाता है, क्योंकि दुनियादारी में लौटते ही वे सभी श्मशान में कही बातों को भूल जाते हैं। ठीक इसी तरह की स्थिति आतंकवादी घटनाओं और दुर्घटनाओं के बाद बरती जाने वाली सावचेती और दी जाने वाली हिदायतों के बारे में कही जा सकती है। कुछ देर बाद वैसी ही आशंकाओं को फिर न्यौतने लगते हैं।
यह बातें परिवहन पर ही नहीं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू होती है। सावचेती के विभिन्न नियम-कायदों को लेकर हम कितने सावचेत हैं, किसी से छुपा नहीं है। ‘विनायक’ ने नियम-कायदों और कानूनों के प्रति बरती जाने वाली लापरवाहियों पर कई बार लिखा है। यह संभव करना बहुत मुश्किल होता है कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्यवहार के मानदण्ड भिन्न हों। यह लगभग असंभव है कि कुछ व्यवहारों में दक्षहीनता से और संवेदनहीन होकर काम करें और कुछ में पूरी तरह दक्ष और संवेदना से। मात्रा में थोड़ा-बहुत कम-ज्यादा हो सकता है लेकिन ठीक उलट व्यवहार की उम्मीदें करना असलियत से मुंह फेरना होगा।
जरूरत समाज में सभी तरह के व्यवहारों, फिर चाहे वह नियम, कायदे हों या कानून और व्यापार हो या लोकव्यवहार। सभी क्षेत्रों में खरे और दक्ष नहीं होंगे और इनको बरतने में संवेदनशीलता नहीं लाएंगे, तब तक कुछ ना कुछ बुरा घटने की गुंजाइश छोड़ते रहेंगे। कहने वाले कह सकते हैं कि अब पूर्ण ईमानदारी और दक्षता संभव नहीं है तो फिर गलत-सलत भुगतने को भी हमेशा तैयार रहना चाहिए।
31 जुलाई, 2013