Saturday, October 27, 2018

राजनीति : दागियों को संरक्षण नहीं मिलना चाहिए (22 नवंबर, 2011)

प्रदेश के राजनेताओं के चरित्र पर लगातार लग रहे लांछन से पूरा प्रदेश शर्मसार हो रहा है। बड़े घोटालों और चारित्रिक कमजोरियों के नित नए कारनामों की चर्चाओं से अपेक्षाकृत कम चर्चित रहने वाला राजस्थान कुछ महीनों से इन्हीं मामलों को लेकर लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। भूमि और खनन घोटालों के बाद मदेरणा-भंवरी प्रकरण और फिर एक अन्य मंत्री रामलाल जाट के सैक्स स्कैण्डल व आर्थिक घपलों की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि राजनेताओं से संबंधित एक और सीडी प्रकरण सामने आ गया है। उसने प्रदेश के  राजनीतिक गलियारों में फिर हलचल मचा दी। वहीं प्रदेशवासी यह सोचने को विवश हो गए हैं कि जिन राजनेताओं का वे प्रतिदिन जय-जयकार करते नहीं थकते, जिन्हें मालाओं से लादने की होड़ लगी रहती है, वे इतने नीचे तक गिर सकते हैं।
भाजपा शासन में मंत्री रहे जोगेश्वर गर्ग और इसी दल के पूर्व सांसद निहालचंद मेघवाल समेत राजनीति व राजनीतिज्ञों से जुड़े लगभग डेढ़ दर्जन लोगों पर लगे देहशोषण के मामले ने प्रदेशवासियों को झकझोर कर रख दिया है। राजनेता भी समाज का ही हिस्सा हैं और उनके भी आम लोगों की तरह ही सामाजिक-पारिवारिक रिश्ते होते हैं। राजनेताओं की राजनीतिक अपेक्षाओं के चलते व आमजन की सत्ता के निकट रहने की आकांक्षा के लालच में ये रिश्ते और भी प्रगाढ़ व व्यापक होते जाते हैं। पर ताजा घटनाओं से अब लोगों को यह सोचने को विवश होना पड़ेगा कि इन रिश्तों बीच लक्ष्मण रेखा कहां खींची जाए कि नई सीडियां बनने की नौबत नहीं आए।
ऐसा नहीं माना जा सकता कि प्रदेश के राजनेताओं का चारित्रिक पतन कोई अचानक हुआ हो या हाल के वर्षों में इसमें तेजी आई हो। बढ़ती चेतना और एक सीमा तक मीडिया का दायरा बढ़ने से भी कुछ घटनाएं जो पहले आम व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाती थी, अब पहुंचने लगी हैं। इन पर अंकुश लगाने में पहली भूमिका संबंधित राजनीतिक दलों की ही है। मामला पुलिस या कानून की चौखट तक जाने से पहले धुआं देखकर आग का अंदाजा इन दलों को लगा लेना चाहिए और संदिग्ध चरित्र वाले अपने सदस्यों को किनारे कर देना चाहिए। इसका थोड़ा-बहुत राजनीतिक नुकसान भी उन्हें उठाना पड़ सकता है लेकिन पानी के सिर तक चढ़ने के बाद होने वाले नुकसान से तो ये दल बचेंगे, सत्ता-मद में रास्ता भटकने वालों को नसीहत भी मिलेगी। यह भी जरूरी है कि एक प्रकरण सामने आने पर, इसे मात्र राजनीतिक षड्यंत्र करार देकर वोटों के नुकसान को सर्वोपरि समझते हुए दागी सदस्यों को बचाना एकमात्र लक्ष्य नहीं बनाएं। शीर्ष नेतृत्व के लिए जरूरी है कि राजनीतिक शुचिता को भी महत्त्व दें। दीर्घकाल में यह ज्यादा फायदेमंद साबित होगा। यह भी होना चाहिए कि ऐसे मामलों में कानून और व्यवस्था के तंत्र को बगैर किसी दबाव के स्वतंत्रता से काम करने दिया जाए ताकि दोषी राजनेता को दंडित करने में कोई व्यवधान नहीं आए। दंड से बचने की उम्मीद भी राजनेता की निरंकुशता को बढ़ावा देती है।
--दीपचंद सांखला
22 नवंबर, 2011

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