Wednesday, October 31, 2018

"चतुर" गहलोत (15 दिसंबर, 2011)

राज्य के मुखिया आज अचानक फिर बीकानेर में होंगे। मुख्यमंत्री ने अभी दो दिन पहले ही जयपुर के पिंकसिटी प्रेस क्लब में पत्रकारों के मुखातिब हो यह ‘स्वीकारा’ था कि उनका पिछला कार्यकाल इस कार्यकाल से बेहतर नहीं था। उन्होंने तर्क दिया कि यदि वो कार्यकाल बेहतर होता तो उनकी पार्टी को उस बुरी हार का सामना नहीं करना पड़ता।
उक्त बयान को सच की स्वीकारोक्ति कहें या एक राजनीतिक बयान, इसे समझना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन असम्भव नहीं। गहलोत के दोनों कार्यकाल में जो एक बड़ा अन्तर नजर आता है वह यह कि पिछले कार्यकाल के उनके कई निर्णय ज्यादा सच्चे, मानवीय और आमजन के लिए दीर्घकालिक हित के थे। लेकिन वे थे अलोकप्रिय इसलिए ही उन्हें भारी रोष का सामना करना पड़ा।
हां, यह जरूर कह सकते हैं कि उस हार को गहलोत ने एक सबक के रूप में लिया और अपने पिछले कार्यकाल के कई अच्छे और दीर्घकालिक आम-हित के निर्णयों से बचते हुए गहलोत अब फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए दिखाई देते हैं। बीच-बीच में वे अपने ‘मूल रूप’ में भी नजर आने लगते हैं, जब डॉक्टरों को और अन्य सेवाओं को वो हड़काते हैं या मंत्रिमंडल के पिछले पुनर्गठन और शपथ ग्रहण समारोह के बीच के समय में जब पत्रकारों को तल्खी में इस बात पर उलाहना देते हैं कि ‘मेरे दिल्ली के कार्यक्रम अब आप ही तय करते हैं।’ तब थोड़ा और तल्ख होते हुए वे यह भी कह जाते हैं कि ‘चालीस साल के अपने राजनीतिक जीवन के इस मुकाम पर उन्हें हर बात के लिए हाइकमान से पूछने की जरूरत नहीं है।’ देखा गया है कि इस तरह की बयानबाजी से गहलोत का कभी वास्ता नहीं रहा है। उनकी इस तल्खी को मीडिया खास कर खबरिया चैनलों पर एक टिप्पणी के रूप में भी देखा जाना चाहिए।
गहलोत के दोनों कार्यकालों को देखें तो यह भी देखा जा सकता है कि उनके पिछले कार्यकाल में अपनाये कुछ निषेधों और वर्जनाओं को इस कार्यकाल में उन्होंने छोड़ दिया है। जैसे पिछले कार्यकाल में वे मितव्ययिता के नाम पर हवाई और हैलिकॉप्टर यात्राओं से बचते थे। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लगातार हवाई दौरों की कांग्रेस ने कई बार आलोचना भी की थी लेकिन खुद गहलोत ही इस बार शायद वसुंधरा राजे की हवाई यात्राओं के उस रिकार्ड को तोड़ दें।  यह गलत भी नहीं है। राजस्थान भौगोलिक दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है। यदि वे इस बार भी उसी आदर्श पर डटे रहते तो शायद वे सभी क्षेत्रों के रू-बरू संपर्क से वंचित रहते या फिर उनमें इतना समय लगता कि वे अन्य शासनिक कार्यों को अपना पूरा समय नहीं दे पाते। और भी बहुत-सी बातें हैं जिनके उदाहरणों से हम कह सकते हैं कि अशोक गहलोत अपने अनुभवों से लगातार सीखने वाले और राजस्थान के अब तक के राजनीतिज्ञों में बेहद सधी चाल से चलने वाले सबसे ‘चतुर’ राजनीतिज्ञ हैं।
--दीपचंद सांखला
15 दिसम्बर, 2011

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