Thursday, October 25, 2018

भारत और पाकिस्तान : पड़ोसी या भाई-भाई (11नवंबर, 2011)

अंग्रेजी में एक कहावत है जिसका मोटा-मोट मतलब यही है कि आपका पड़ोसी कौन होगा यह आपके बस में नहीं होता। अपने देश के संबंध में बात करें तो पड़ोसी मुल्कों में सभी पड़ोसी देश भारत के लिए कभी न कभी अलग-अलग तरीकों और कारणों से परेशानी का कारण रहे हैं। हो सकता है अपने देश के बारे में भी पड़ोसी देश ऐसा ही सोचते होंगे। इस तरह की धारणा में प्रत्येक के अपने हित होते हैं। अकसर देखा गया है कि यह हित स्वार्थों में परिवर्तित हो जाते हैं। कभी-कभार यह ईगो-हेकड़ी का रूप भी ले लेते हैं या अपनी कमियों या गलतियों को छुपाने का जरिया भी। हित अगर स्वार्थ बनेंगे तो टकराएंगे ही!
पाकिस्तान कभी भारत ही था। भारत-पाकिस्तान को यदि हम आम भारतीय परिवारों में होने वाले दो भाइयों के बंटवारे के रूप में देखेंगे तो ज्यादा सार्थक होगा। अकसर हम देखते हैं या जीवन में दो-चार बार उन्हीं परिस्थितियों से गुजरते भी हैं। एक या दो से अधिक भाई होंगे तो जितने भाई, उतने चूल्हे यानी उतने ही घर भी होंगे। चल-अचल सम्पत्तियां भी होंगी। ऐसा कहा जाता है कि इन संपत्तियों का सौ टका खरा बंटवारा कभी हो ही नहीं सकता है। यह बंटवारा ठीक-ठीक या ठीक-ठाक के नजदीक ही होता है। बंटवारे के दौरान कुछ कहा-सुनी भी हो जाती है। कुछ कारणों और परिस्थितियों के चलते बंटवारे के लिए किसी एक को ही जिम्मेदार मान लिया जाता है जबकि बंटवारा समाज की एक अनिवार्य प्रक्रिया है। यह भी देखा गया है कि बंटवारे के बाद क्षमता, प्रतिभा, स्वभाव, सहयोगी संसाधनों की उपलब्धता-अनुपलब्धता के चलते कोई कम तरक्की करता है तो कोई ज्यादा। यह भी कि एक के निहायत निजी-पारिवारिक कारणों से उपजी अशांति और असफलताओं का दोष दूसरे के मत्थे मढ़ने लगते हैं?
भारत-पाकिस्तान की समस्या को भी कुछ इसी नजरिये से देखने की कोशिश करें तो सकारात्मक होगा। उसे केवल नालायक और शैतान पड़ोसी ही मानते रहेंगे तो समाधान कभी नहीं मिलेगा। हमारे यहां भी ऐसे उन्मादी बयान आते रहते हैं जिनमें पाकिस्तान से वार्ता जारी न रखकर सबक सिखाने की बात की जाती हैं। क्या सचमुच इस तरह से भारत-पाकिस्तान की समस्याओं का निबटारा हो सकता है?
--दीपचंद सांखला
11 नवंबर, 2011

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