Thursday, October 25, 2018

दुर्घटनाओं से बिखरते जीवन के ताने-बाने (9 नवंबर, 2011)

हरिद्वार में आयोजित गायत्री महाकुंभ में कल मची भगदड़ में 16 से 20 जनों के मारे जाने और इनसे कई गुणा घायल होने के समाचार हैं। इस तरह की दुर्घटनाओं के समाचारों में पाया गया है कि घटना होने के दो-चार दिन ही उससे संबंधित समाचार आते हैं। यदि कोई बड़ी दुर्घटना है तो उसकी बरसी पर भी रस्म अदायगी कर ली जाती है।
भोपाल गैस कांड को छोड़ दें तो शायद ही किसी दुर्घटना में घायल हुए लोगों की वर्तमान स्थिति से अखबारों के पाठकों और टीवी के दर्शकों को अवगत करवाया जाता है। ज्यादा घायल होने से ताजिन्दगी शारीरिक-मानसिक अपंगता भुगत रहे घायल खुद और उसके परिजनों की पीड़ा मृत्यु से थोड़ा कम ही त्रासद होती है। इस त्रासदी को भुक्तभोगी ही समझ सकता है।
ऐसी दुर्घटनाओं के कारणों और व्यवस्था में रही लापरवाहियों व कमियों को इंगित करती हुई रिपोर्टें तथा भुक्तभोगियों का उल्लेख टीवी, अखबारों को बार-बार दिखानी व प्रकाशित करनी चाहिए जिससे ऐसे कार्यक्रमों के प्रतिभागी शिक्षित हों और उनके आयोजक सबक ले ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटना में कमी आ सके।
ऐसी दुर्घटनाएं ज्यादातर धार्मिक आयोजन स्थलों पर ही होती हैं। धर्म शुद्ध आस्था का मामला है और आस्थाएं तर्कों से परे और भावनाओं से सराबोर होती हैं। दुर्घटनाओं के कारणों का विश्लेषण करें तो पाया गया है कि इस तरह के आयोजनों में होने वाली अधिकतर दुर्घटनाएं आस्था और भावनाओं में अधैर्य और स्वार्थ की मिलावट से होती है यानी दर्शन, आहुति और स्नान से जो पुण्य हासिल होना है उस पुण्य को अन्यों से पहले पाने का लालच!
ऐसे लालच से उपजी भगदड़ सबसे पहले प्रभावितों की समझ और विवेक का स्विच ऑफ करती हैं। इसीलिए इस तरह के हादसे बार-बार होते हैं और कितने ही परिवारों के जीवन के ताने-बाने हमेशा के लिए बिखेर जाते हैं।
                                                    --दीपचंद सांखला
9 नवंबर, 2011

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