Friday, October 26, 2018

बाल दिवस और एबनॉरमल उम्मीदें (14 नवंबर, 2011)

कहते हैं जवाहरलाल नेहरू को बच्चों से बहुत प्रेम था। उन्हें चाचा नेहरू इसीलिए कहा जाता है। सामान्यतः एक उम्र के बाद व्यक्तियों में बच्चों से प्रेम देखा जाता है। नेहरू को बच्चों से प्यार था इसीलिए अपने देश में उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। दिवस विशेष मनाने का प्रचलन शायद इसीलिए शुरू हुआ होगा कि जिसका भी दिवस होगा उनके प्रति जागरूकता का नवीकरण होता रहे। लेकिन देखा यह गया है कि ऐसा कुछ होता नहीं है। इस प्रकार से मनाये जाने वाले दिन एक रस्म अदायगी भर रह गये है।
अब बाल दिवस को ही लें। आजादी के 63 साल बाद भी शिक्षा का अधिकार कानून लाने की जरूरत आन पड़ी। अलावा इसके जो गरीब परिवारों के बच्चे हैं उन्हें मजदूरी करनी पड़ती है, अन्यथा वह जिस परिवार से हैं उसमें उसे और उसके परिवार को भरपेट खाना नहीं मिलेगा, कपड़े-मकान तो दूर की बात है। जो बच्चे मध्यम और उच्च मध्यम परिवारों से आते हैं वे सब केरिअ‍ॅर आधारित शिक्षा के चलते सामान्य बचपन से दूर कर दिए जाते हैं। बच्चे को उसके सहज बचपन का माहौल देने की अपनी जिम्मेदारी के ठीक उलट उससे डॉक्टर, इंजीनियर, सीए, एमबीए और ना जाने क्या-क्या बनने की उम्मीदें जाहिर करने लगते हैं। मध्यम और उच्च मध्यम परिवारों के बच्चों और किशोरों में बचपन की वह बेफिक्री और किशोरावय का अल्हड़पन लगभग गायब होता दीख रहा है।
बच्चा बड़ा होकर नेक इनसान बने ऐसी इच्छा और जिम्मेदारी से सभी मुक्त हुए पाये जाते हैं। टी.वी. और अखबार भी ऐसे बच्चों को दिखाने और उनकी खबरें देने लगे हैं जिन्होंने कुछ असामान्य किया है।
बच्चों में असामान्य उम्मीदें जगा कर आखिर कहां ले जाना चाहते हैं समाज को? क्या सामान्य सोच का सिरा पकड़ने की कोशिश भी करेंगे आज के दिन। सामान्य का उलट असामान्य होता है और असामान्य का अंग्रेजी शब्द है ‘एबनॉरमल’ सब जानते ही हैं कि यह ‘एबनॉरमल’ शब्द आजकल किस रूप में प्रचलित है।
--दीपचंद सांखला
14 नवंबर, 2011

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