राज्य सरकार या कहें अशोक गहलोत पर आए तथाकथित संकट का लगभग पटाक्षेप हो गया है। मंत्रिमंडल और मंत्रियों के फेरबदल से यह जाहिर होता है कि मुख्यमंत्री न केवल एक परिपक्व और अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं बल्कि उनकी रीढ़ भी दुरुस्त है। प्रदेश की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में विरोध के बावजूद मुख्यमंत्री ने जिन्हें चाहा उन्हें रखा और जिनसे किनारा करना था उन्हें किनारे कर दिया। विभागों के बंटवारे को ही देखें तो मोटामोट कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आता है। जिन पर भरोसा है उन्हें बनाये रखा है और उनकी कुछ जिम्मेदारियां भी बढ़ाई हैं। अलावा इसके इस दौरान मुख्यमंत्री ने अपने स्वभाव के ठीक उलट एक ऐसा बयान भी दिया जो उन लोगों के लिए जरूरी था जो उन्हें कम आंकने लगे थे। उनमें मीडिया का एक समूह भी है, चाहे वो सनसनी के लिए ऐसा करता हो। ‘मुझे राजनीति करते चालीस साल हो गए हैं, मुझे अब भी क्या हर बात दिल्ली से पूछ कर करनी होगी।’ यह बयान उन्होंने तब दिया जब शपथग्रहण के बाद मीडिया ने यह चला दिया कि विभागों के बंटवारे की सूची भी मुख्यमंत्री दिल्ली से फाइनल करवाकर लायेंगे। अपरोक्ष रूप से यह संदेश पार्टी के उन प्रतिस्पर्धियों के लिए भी था जो आलाकमान और मीडिया को भ्रमित करते रहते हैं।
--दीपचंद सांखला
18 नवंबर, 2011
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