अवैध जिप्सम पकड़े जाने के समाचार अखबार में आये दिन आने लगे हैं। कहते हैं रोजाना जितना जिप्सम पकड़ा जाता है उससे सौ गुणा से ज्यादा अवैध खनन होता है। एक-दो गाड़ियों को पकड़े जाने की रस्म अदायगी से खनन विभाग और पुलिस महकमे दोनों की कर्त्तव्यपरायणता भी सिद्ध हो जाती है और इस व्यापार में लगे दबंग और उनको संरक्षण देने वाले राजनीतिज्ञों को भी खुश कर दिया जाता है। अतिरिक्त लाभ यह कि चौथ वसूली में हिस्सेदारी तब भी बनी रहती है।
कर्नाटक का बेल्लारी जितना तो न सही लेकिन राजस्थान का छोटा-मोटा बेल्लारी तो बीकानेर होता जा रहा है। यद्यपि वजन के हिसाब से देखें तो बेल्लारी का खनन बीकानेर में हो रहे जिप्सम के खनन के सामने कुछ नहीं है। बड़ा फर्क भावों का है, बेल्लारी में लोहे की खाने हैं जिसका भाव जिप्सम से कई गुना ज्यादा है।
पिछले 10-15 वर्षों में देखते ही देखते न केवल राजनेता और राजनीतिक पहुंचवाले बल्कि दबंगों ने भी इस व्यवसाय को धड़ल्ले से अपना लिया है और इसी के चलते पीओपी की फैक्ट्रियां भी इन वर्षों में कुकुरमुत्ते की तरह लग गयी हैं। इन फैक्ट्रियों में ईंधन की जरूरत बहुतायत में होती है। इस इलाके में सबसे सुलभ और सस्ता ईंधन खेजड़ी पेड़ के रूप में मिलता है। गंगानगर रोड पर आप सड़क के दोनों और नजर दौड़ाएंगे तो पायेंगे कि डीजल से चलने वाली पोर्टेबल आरा मशीनों द्वारा सैकड़ों पेड़ों को काट कर पीओपी की भेंट चढ़ा दिया गया है। कहते हैं अर्जुनसर से पल्लू मार्ग के दोनों और दूर अन्दर तक के अधिकतर पेड़ों को काट लिया गया है और काटा जा रहा है।
जिप्सम के अवैध खनन में लगे दबंग, उनको संरक्षण देने वाले राजनीतिज्ञ, खनन विभाग, उद्योग विभाग, वन विभाग, पुलिस महकमा इससे आंखें मूंदे हैं कि इस थार रेगिस्तान की कल्पवृक्ष कहलाने और इस इलाके के हवा-पानी को सहेज कर रखने वाली खेजड़ी यदि खत्म हो गई तो अपनी ही अगली पीढ़ियों द्वारा वे कोसे जायेंगे। यह होता दीख भी रहा है।
नहीं जानते कि अपनी ड्यूटी न करना हरामखोरी कब मानने लगेंगे हम।
--दीपचंद सांखला
मंगलवार, 1 नवंबर, 2011
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