Thursday, October 25, 2018

चुनावों में दबंगों और सफेदपोशों की बदलती भूमिका (5 नवंबर, 2011)

देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीमकोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों को नोटिस भेज कर पूछा है कि आरोपी सांसदों के मामले फास्ट ट्रेक कोर्ट में क्यों नहीं ट्रांसफर कर दिये जायें?
यह नोटिस पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे ए लिंगदोह द्वारा दायर याचिका पर जारी किया गया है। कुल 162 सांसदों पर विभिन्न कोर्टों में गंभीर मुकदमे चल रहे हैं। इनमें से कई सांसद तो हत्या और डकैती के भी आरोपी हैं। यदि यह सभी सांसद लोकसभा से आते हैं तो और भी गंभीर मामला इसलिए है कि फिर तो लोकसभा का हर तीसरा सदस्य आरोपी है और यह भी कि जनता ने उन्हें चुन कर भेजा है।
किसी भी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से इस बिना पर नहीं रोका जा सकता कि वह मात्र आरोपी है या उस पर कोई संगीन अपराध का मुकदमा चल रहा है। अगर ऐसा हो जाए तो देश के कानून और कानून प्रक्रिया में कई बळ पड़ते जाली झरोखे के चलते अधिकतर चुनाव नहीं लड़ सकेंगे क्योंकि फिर तो कोई भी उम्मीदवार अपने संभावित विरोधी उम्मीदवार के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज करवा कर अपना रास्ता आसान करने की सोच सकता है और इसे अंजाम दे सकता है।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त लिंगदोह की चिंता इसलिए भी जायज है कि लोकसभा में अब बहुत से दबंग पहुंचने लगे हैं। उनको रोकने का वैधानिक तरीका यही हो सकता है कि उनके मुकदमे फास्ट ट्रेक कोर्ट को ट्रांसफर करवा कर तुरंत ही दूध का दूध और पानी का पानी करवा लिया जाना चाहिए।
इससे होगा यह कि दबंगों के हौसले पस्त होंगे और उनकी भूमिका पहले की तरह केवल सफेदपोश नेताओं को सहयोग करने भर की रह जाएगी। पिछले तीसेक वर्षों से अधिक से हो यह रहा है कि चुनाव लड़ने वाले अधिकतर उम्मीदवार इन दबंगों का सहयोग लेते रहे हैं। लेकिन अब दबंग खुद चुनाव लड़ने लगे हैं ताकि दबंगों के सहयोग से जीतने वाले नेताओं के सामने उन्हें याचक बन कर खड़ा न रहना पड़े।

--दीपचंद सांखला
5 नवंबर, 2011

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