Tuesday, October 30, 2018

राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (1 दिसंबर, 2011)

राज्य सरकार द्वारा राजनीतिक मनोनयन और नियुक्तियां हो रही हैं। साहित्य एवं कला से संबंधित चार अकादमियों के अध्यक्षों का मनोनयन भी हो गया है। अकादमियों के इन मनोनयनों को मीडिया ने राजनीतिक नियुक्तियां ही कहा है। पता नहीं इन्हें सरकारें ही राजनीतिक नियुक्तियां मानती रही है या मीडिया ने चलत में ही ऐसा मान लिया। वैसे एक अरसे से जिस तरह से मनोनयन होता रहा है, वह राजनैतिक ही कहा जाएगा।
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का कार्यालय बीकानेर में है। इसके अध्यक्ष पद पर पहली बार जिले के ही श्याम महर्षि का मनोनयन हुआ है। वैसे यह आग्रह भी कि बीकानेर से ही अध्यक्ष हो उचित नहीं जान पड़ता। ऐसे मनोनयन तो केवल इस बिना पर तय होने चाहिएं कि कौन उस अकादमी के उद्देश्यों की पूर्ति करने में सक्षम होगा।
श्याम महर्षि को भाषा, साहित्य एवं संस्कृति से संबंधित सफल आयोजनों का लंबा अनुभव है। विचारों को लेकर और अपनी पसंद-नापसंद को लेकर भी बहुत आग्रही वे लगते नहीं हैं। थोड़े-बहुत हैं तो भी अकादमी हित में उन आग्रहों से मुक्त होने की क्षमता उनमें है।
अकादमी के नाम से जाहिर है कि यह केवल साहित्य अकादमी नहीं है। साहित्य के साथ भाषा एवं संस्कृति भी जुड़े हैं। बीच-बीच में यह आरोप भी लगते रहे हैं कि यह मात्र साहित्य अकादमी होकर रह गई है। महर्षि को देखना होगा कि ऐसे आरोपों की पुष्टि उनके कार्यकाल में ना हो।
महर्षि के लिए बड़ी चुनौती अकादमी कार्यालय को दुरुस्त करने की है। बरसों से सचिव का पद खाली है। पहले तो इस पद के काबिल को ढूंढ़ना ही मुश्किल होगा। मिल भी गया तो यह भी देखना होगा कि वर्तमान व्यवस्था में उसके लिए काम करने की संभावनाएं कितनी होंगी। सचिव के अलावा लगभग आधे पद खाली हैं। नियमित लेखाकार तो आज तलक लगा ही नहीं। कार्यालयी अनियमितताओं के आरोप तो खुले या दबे मुंह बारह महीनों ही लगते रहे हैं। पुस्तकालय और स्टोर का भौतिक सत्यापन लम्बे समय से नहीं हुआ है। बीच में कभी हुआ भी है तो रस्म अदायगी से ज्यादा नहीं। यह भी देखना होगा कि कर्मचारी और अधिकारी पूरे कार्यालय समय में रहते हैं या नहीं। श्याम महर्षि इस सब को व्यवस्थित कर पायेंगे या पिछले सब अध्यक्षों की तरह जैसे-तैसे अपना कार्यकाल पूरा करने की जुगत में लगे रहेंगे। यह सब लिखने के मानी महर्षि से नाउम्मीदगी जाहिर करना नहीं, आगाह भर करना है।
--दीपचंद सांखला
1 दिसंबर, 2011

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